अमृतसर (एएनआई)। 6 जून 2020 को ऑपरेशन ब्लू स्टार को 36 साल पूरे हो जाएंगे। साल 1984 में भारतीय सेना ने अमृतसर में स्वर्ण मंदिर के अंदर खालिस्तानी अलगाववादियों को हटाने के लिए ऑपरेशन ब्लूस्टार चलाया था। इस ऑपरेशन की पूरी कहानी राजनैतिक अवसरवादी जरनैल सिंह भिंडरावाले के ईद-गिर्द घूमती है। जिसे सिर्फ इसलिए मारना पड़ा क्योंकि उसने भारत की संप्रभुता के खिलाफ हथियार उठा लिए थे। भिंडरावाले वास्तव में वो हत्यारा था जिसने सिख धर्म को बदल दिया और सिखों के पवित्रतम मंदिर, स्वर्ण मंदिर में ऐसी साजिश रची जिससे पूरा भारत हिल गया।

36 साल पहले की है यह कहानी

1984 से पहले अृमतसर का स्वर्ण मंदिर धर्म, आस्था और एक पवित्र स्थान हुआ करता था, हालांकि ये जगह आज भी उतनी ही पवित्र है मगर 36 साल भिंडरावाले ने इसे खून से रंग दिया था। भिंडरावाले ने यहां वही काम किया जो 18वीं सदी में अहमद शाह अब्दाली ने किया था।1762 में, अब्दाली ने स्वर्ण मंदिर के पवित्र सरोवर को जानवरों के खून और अंतड़ियों से भर दिया। मगर करोड़ों सिखों ने अपनी जान की बाज़ी लगाकर मंदिर की गरिमा को बरकरार रखा। हालांकि इस धार्मिक स्थल पर किसी शख्स, संस्था या ट्रस्ट ने अधिकार नहीं जताया। वह इसे पवित्र स्थल मानते थे मगर भिंडरावाले ने 1984 में सबकुछ बदलकर रख दिया।

अकाल तख्त पर किया कब्जा

भिंडरावाले के लिए कोई नियम या नैतिकता मायने नहीं रखती थी। वह खालिस्तान की मांग के लिए स्वर्ण मंदिर की भेंट चढ़ाने के लिए भी तैयार था। कोई सिख अगर उसके खिलाफ आवाज उठाता, तो उसे मार दिया जाता था। साल 1983 में भिंडरावाले के विरोधी बब्बर खालसा टेररिस्टों ने जब उसे स्वर्ण मंदिर के गुरु नानक निवास से बाहर कर दिया तो उसने अकाल तख्त पर अपना दरबार लगाना शुरु कर दिया। यहां उसके साथ सैकड़ों की संख्या में बंदूकधारी रहते थे। अकाल तख्त वो जगह थी जहां किसी भी धार्मिक नेता या गुरुओं को भी रहने की अनुमति नहीं थी। इसके बावजूद भिंडरावाले ने यहां अपना अड्डा बना लिया।

गुरु ग्रंथ साहिब का किया अपमान

किसी भी सिख व्यक्ति के लिए गुरु ग्रंथ साहिब के ऊपर खड़े होना पापा था। मगर भिंडरावाले की महत्वाकांक्षाओं ने उससे यह पाप भी करवाया। उसने गुरु ग्रंथ साहिब को स्वर्ण मंदिर के ग्राउंड फ्लोर में रखा जबकि खुद ऊपरी तल पर रहता था। भिंडरावाले के इस अत्याचार के खिलाफ आवाज उठाने की हिम्मत किसी में नहीं थी, हालांकि कुछ लोग थे जो आस्था में चोट बर्दाश्त नहीं कर पाए। उनमें से एक अकाल तख्त के पूर्व जत्थेदार ज्ञानी प्रताप सिंह थे। उस समय उनकी उम्र 80 साल के आसपास थी। जो सिखों के लिए एक उच्च सम्मानित आध्यात्मिक मार्गदर्शक थे। उन्होंने सिख पवित्र मंदिर के अंदर अकाल तख्त पर कब्जा करने और हथियारों का स्टॉक करने के लिए भिंडरावाले की खुलकर आलोचना की। लेकिन, ताहली चौक पर उनके घर पर भिंडरावाले के समर्थकों ने गोली मारकर उनकी हत्या कर दी।

अकाल तख्त के भीतर की हत्याएं

भिंडरावाले ने अकाल तख्त पर सिर्फ कब्जा ही नहीं किया बल्कि उसने इसे यातना और कसाई घर में बदल दिया। जब भिंडरावाले के खास आदमी सुरिंदर सिंह सोढ़ी की हत्या कर दी गई तो उसने अपने साथियों से साजिशकर्ता का पता लगवाकर उसे अकाल तख्त बुलवाया और उसकी गला काटकर हत्या कर दी। यही नहीं सोढ़ी की हत्या में शामिल बलजीत कौर नाम की एक महिला साजिशकर्ता को भी काफी यातनाएं दी गईं, उसके स्तनों को काट दिया गया और फिर अकाल तख्त के भीतर ही उसकी हत्या कर दी गई। तीसरे साथी सुरेंद्र सिंह चिंदा की हत्या कर उसके शव को बैग में रखकर बाहर फेंक दिया गया। सभी साजिशकर्ताओं की हत्या के बाद भिंडरावाले ने मंदिर की दीवारों पर शेखी बघारते हुए कहा था, "चौबीस घंटों के भीतर, हमने हत्यारों और उनके दो सहयोगियों को खत्म कर दिया है।

300 लोगों को उतारा मौत के घाट

यह सिर्फ एक शुरुआत थी। स्वर्ण मंदिर के बाहर नालों में न जाने कितने कटे हुए शव नजर आते थे। ये सब भिंडरावाले की क्रूरता का सबूत थे। 1981 से 1983 के बीच, भिंडरावाले के समर्थकों ने 100 से अधिक नागरिकों को मारा। जनवरी 1984 और 3 जून 1984 के बीच, पंजाब भर में इन आतंकवादियों द्वारा 298 अन्य लोगों की हत्या कर दी गई थी। भिंडरावाले ने जिन लोगों को मारा, उसमें कुछ नामी-गिरामी थे। इसमें निरंकारी संप्रदाय के प्रमुख, बाबा गुरबचन सिंह, हिंद समचार मीडिया समूह के प्रमुख, लाला जगत नारायण, दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक समिति के अध्यक्ष, एचएस मनचंदा, कांग्रेस के संसद सदस्य, प्रो वीएन तिवारी, हरबंस लाल खन्ना, भारतीय जनता पार्टी से विधान सभा के सदस्य और पुलिस उपमहानिरीक्षक, एएस अटवाल, जो हरमंदिर साहिब में अयोग्य और असुरक्षित भुगतान करने के लिए आए थे, इन सब की मंदिर परिसर में गोली मारकर हत्या कर दी गई थी।

ऑपरेशन ब्लू स्टार से हुआ खत्मा

भिंडरावाले का अत्याचार यहीं खत्म नहीं होता। उसने मार-काट के अलावा जबरन वसूली, लोगों को डराना धमकाना भी जारी रखा। इस धोखेबाज ने दसवें गुरु, गोबिंद सिंह के 'आध्यात्मिक उत्तराधिकारी' होने का ढोंग भी किया, जो हर समय अपने हाथ में एक स्टील का तीर लेकर चलते थे। अपने कई अत्याचारों और अपराधों के कार्यों के माध्यम से, भिंडरावाले ने सिख गुरुओं द्वारा निर्धारित सिद्धांतों का उल्लंघन किया और सिख विश्वास को बदनाम किया। हालांकि इस अपराधी का अंत ऑपरेशन ब्लू स्टार के चलते हुआ। 6 जून को भारतीय सेना ने भिंडरावाले को स्वर्ण मंदिर में ही मौत के घाट उतारकर लोगों को उसकी क्रूरता से आजादी दिलाई।

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