-यूनिवर्सिटी में 42.27 लाख का नहीं मिल रहा है कोई हिसाब

-शासन ने विभिन्न निर्माण कार्यो के मद में दिया था पैसा

-एक साथ चल रहे थे पांच प्रोजेक्ट, कोई भी चीज नहीं हो सकी है हैंडओवर

GORAKHPUR: डीडीयू गोरखपुर यूनिवर्सिटी में इन दिनों लापरवाहियों का दौर सा चल गया है। 56 करोड़ घाटे का बजट पास करने के बाद भी जिम्मेदारों की लापरवाही से यूनिवर्सिटी की सूरत बदलने के मद में मिलने वाला पैसा पानी की तरह बह रहा है, लेकिन इसका रिजल्ट कहीं पर भी सामने नहीं आ रहा है। जिम्मेदारों की अनदेखी और लापरवाही से महोत्सव के दौरान यूनिवर्सिटी को 10 लाख रुपए अपने अकाउंट से पेमेंट करना पड़ा है। वहीं अब करीब 42 लाख रुपए खर्च होने के बाद भी जिम्मेदारों के पास इसका हिसाब-किताब मौजूद नहीं है। हालत यह है कि मिलान किया जा रहा है कि यह किस मद में खर्च हुआ है, लेकिन इसका कोई पता नहीं चल सका है।

शासन से मिला था पैसा

गोरखपुर यूनिवर्सिटी में शासन की तरह से करीब पांच परियोजनाओं का काम चल रहा है। इसके लिए शासन ने कार्यदायी संस्था यूपी निर्माण निगम को निर्माण एजेंसी नामित किया था। सभी पांचों परियोजनाओं के मद में कंपनी ने काफी हद तक पैसा रिलीज भी करा लिया है, लेकिन सिर्फ एक मूट कोर्ट और कैंटीन की बात छोड़ दें तो अभी बाकी योजनाओं का काम अटका पड़ा हुआ है। इन सभी मद में शासन ने सारा पैसा यूनिवर्सिटी को रिलीज भी कर दिया है। अब इसमें करीब 42.27 लाख का हिसाब जिम्मेदारों को मिल नहीं पा रहा है। जिसकी वजह से वह एक के बाद एक फाइल पलटने में लगे हुए हैं।

2013 का है मामला

गोरखपुर यूनिवर्सिटी में पेमेंट का यह मामला 2013 का है, लेकिन इस मामले में किसी ने भी यह पता करने की जहमत गवारा नहीं की है कि आखिर यूनिवर्सिटी के 42 लाख रुपए गए कहां हैं। सोर्सेज की मानें तो तत्कालीन इंजीनियर ने निर्माण एजेंसी के नाम पैसा चढ़ाकर पेमेंट की फाइल भी बढ़ाई थी और एक के बाद एक सभी जिम्मेदारों ने उस पर सिग्नेचर कर कार्यदायी संस्था को पैसा भी दे दिया। लेकिन यह किस मद में दिया जा रहा है, इस बारे में न तो फाइल में ही कोई जिक्र किया गया है और न ही किसी ने यह पूछने की ही जहमत गवारा की है कि आखिर यह पैसा किस मद में खर्च किया गया है।

यूपी निर्माण निगम से मांगा लेखा-जोखा

42 लाख रुपए की हेरा-फेरी के इस मामले में यूनिवर्सिटी के रजिस्ट्रार ने पहल करते हुए कार्यदायी संस्था को लेटर लिखकर उनसे सारे काम का ब्यौरा तलब किया है। उन्होंने संस्था से यह भी मांगा है कि वह अलग-अलग वर्क को मेंशन करते हुए यह भी बताएं कि वह कौन-कौन सा काम कर रहे हैं?, काम की प्रोग्रेस क्या है? अब तक इसका कब-कब और कितना-कितना पेमेंट दिया जा चुका है? किस काम का पेमेंट पूरा दिया गया है और किसका अभी बाकी है? उम्मीद की जा रही है कि यह सारा ब्यौरा मिलने के बाद यह साफ हो जाएगा कि यूनिवर्सिटी का आखिर यह 42 लाख रुपए गया कहां है। अगर कार्यदायी संस्था के पास भी इसका रिकॉर्ड नहीं मिलता है तो यह 42 लाख रुपए भी यूनिवर्सिटी को ही वहन करने पड़ सकते हैं।

यह काम थे यूपीएनएन के जिम्मे

स्पो‌र्ट्स स्टेडियम

वाईफाई सिस्टम

कैंटीन

मूट कोर्ट

ब्वॉयज हॉस्टल

वर्जन

42 लाख रुपए पेमेंट कर दिए गए हैं, लेकिन यह किस मद में हुआ है इसकी जानकारी नहीं मिल पा रही है। कार्यदायी संस्था से अब तक के सभी पेमेंट और वर्क प्रोग्रेस की डीटेल मांगी गई है। यह साफ हो जाएगा कि किस मद में यह पैसा खर्च किया गया है।

- शत्रोहन वैश्य, रजिस्ट्रार, डीडीयूजीयू