फर्जी है बैंकों में एकाउंट्स
बिहार-झारखंड से लेकर बेस्ट बंगाल, ओडि़सा, छत्तीसगढ़ए आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र में नक्सली एक्टिव हैं। अलग.अलग नामों से कई नक्सली संगठन बने हैं। पुलिस के आला अधिकारियों की मानें तो बैंकों में जो एकाउंट्स नक्सलियों ने खुलवा रखे हैं, उनमें अधिकांश फर्जी नाम, पते पर हैं। ऐसे में कैश मनी ट्रांजक्शन के जरिए ही ये अपने ऑपरेशन को अंजाम देते हैं. 
हथियार तो मिलेंगे, पर गोली नहीं

नक्सलियों की पहली पसंद एके-47 जैसे अत्याधुनिक हथियार है। ऐसे हथियार नक्सली अपने संगठन में अधिक से अधिक रखना चाहते हैं। सोर्स की मानें नक्सलियों को हथियार की सप्लाई अब भी जारी रहेगी। लेकिन परेशानी इन्हें गोलियों की खरीददारी में होगी। क्योंकि अब तक कैश ट्रांजक्शन के जरिए ही नक्सली हथियारों के लिए गोली खरीदते आए हैं। लैंड माइंस बनाने के लिए बारूद के सामान भी कैश मनी के जरिए ही खरीदे जाते रहे हैं.
मिले थे कैश ट्रांजक्शन के सबूत 
कुछ दिनों पहले ही सुरक्षा बलों ने बिहार के गया और औरंगाबाद जिले में नक्सलियों के खिलाफ एक बड़े ऑपरेशन को अंजाम दिया था। ऑपरेशन के दौरान बिहार-झारखंड स्पेशल एरिया कमेटी के नक्सली त्यागी सिंह भोक्ता को मार गिराया था। सीआरपीएफ  के हाथ घटनास्थल पर एक पॉकेट डायरी लगी थी। जब डायरी को खंगाला गया तो उसमें 1 करोड़ 39 लाख रुपए का कैश इनकम लिखा था। जिसमें 70 लाख रुपए कैश बांटे जाने का जिक्र भी था. 
जंगलों में दबा है काला धन 
नक्सली अपना हर ट्रांजेक्शन कैश में करते हैं। हथियार खरीदने से लेकर अपनों को रुपए देने तक सारा लेन-देन कैश में होता है। वह लेवी से वसूले गए रुपयों को जंगलों में पेड़ों के नीचे दबाकर रखते हैं। वहां एक निशान लगा देते हैं, जिसे नक्सलियों के कुछ कमांडर और ट्रेजरर ही जानते हैं.
लेवी वसूली में भी आएगी कमी

नक्सलियों के टारगेट पर रोड व पुल कांट्रैक्टर और ईंट भट्टा के मालिक ही होते हैं। जिनसे लाखों रुपए बतौर लेवी वसूली जाती है। खुफिया एजेंसियों की मानें तो कुछ समय के लिए लेवी वसूली में भी कमी आएगी। क्योंकि कैश की कमी होने के कारण न तो कौंट्रैक्टर और न ही ईंट भट्टा के मालिक या फिर कोई भी नक्सलियों को लेवी देने की स्थिति में नहीं होगा। भारी संख्या में कैश होने के बाद भी नक्सली रुपयों का यूज नहीं कर सकेंगे। जब हथियार, गोली और बम की खरीददारी नहीं होगी तो जाहिर सी बात है कि इनकी गतिविधियों में भी कमी आएगी। लेकिन जानकार मानते हैं कि नक्सली गतिविधियों की ये कमी महज कुछ महीनों के लिए हो सकती है.

 

फर्जी है बैंकों में एकाउंट्स

बिहार-झारखंड से लेकर बेस्ट बंगाल, ओडि़सा, छत्तीसगढ़ए आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र में नक्सली एक्टिव हैं। अलग.अलग नामों से कई नक्सली संगठन बने हैं। पुलिस के आला अधिकारियों की मानें तो बैंकों में जो एकाउंट्स नक्सलियों ने खुलवा रखे हैं, उनमें अधिकांश फर्जी नाम, पते पर हैं। ऐसे में कैश मनी ट्रांजक्शन के जरिए ही ये अपने ऑपरेशन को अंजाम देते हैं. 

 

हथियार तो मिलेंगे, पर गोली नहीं

नक्सलियों की पहली पसंद एके-47 जैसे अत्याधुनिक हथियार है। ऐसे हथियार नक्सली अपने संगठन में अधिक से अधिक रखना चाहते हैं। सोर्स की मानें नक्सलियों को हथियार की सप्लाई अब भी जारी रहेगी। लेकिन परेशानी इन्हें गोलियों की खरीददारी में होगी। क्योंकि अब तक कैश ट्रांजक्शन के जरिए ही नक्सली हथियारों के लिए गोली खरीदते आए हैं। लैंड माइंस बनाने के लिए बारूद के सामान भी कैश मनी के जरिए ही खरीदे जाते रहे हैं।

 

मिले थे कैश ट्रांजक्शन के सबूत 

कुछ दिनों पहले ही सुरक्षा बलों ने बिहार के गया और औरंगाबाद जिले में नक्सलियों के खिलाफ एक बड़े ऑपरेशन को अंजाम दिया था। ऑपरेशन के दौरान बिहार-झारखंड स्पेशल एरिया कमेटी के नक्सली त्यागी सिंह भोक्ता को मार गिराया था। सीआरपीएफ  के हाथ घटनास्थल पर एक पॉकेट डायरी लगी थी। जब डायरी को खंगाला गया तो उसमें 1 करोड़ 39 लाख रुपए का कैश इनकम लिखा था। जिसमें 70 लाख रुपए कैश बांटे जाने का जिक्र भी था. 

 

जंगलों में दबा है काला धन 

नक्सली अपना हर ट्रांजेक्शन कैश में करते हैं। हथियार खरीदने से लेकर अपनों को रुपए देने तक सारा लेन-देन कैश में होता है। वह लेवी से वसूले गए रुपयों को जंगलों में पेड़ों के नीचे दबाकर रखते हैं। वहां एक निशान लगा देते हैं, जिसे नक्सलियों के कुछ कमांडर और ट्रेजरर ही जानते हैं।

 

लेवी वसूली में भी आएगी कमी

नक्सलियों के टारगेट पर रोड व पुल कांट्रैक्टर और ईंट भट्टा के मालिक ही होते हैं। जिनसे लाखों रुपए बतौर लेवी वसूली जाती है। खुफिया एजेंसियों की मानें तो कुछ समय के लिए लेवी वसूली में भी कमी आएगी। क्योंकि कैश की कमी होने के कारण न तो कौंट्रैक्टर और न ही ईंट भट्टा के मालिक या फिर कोई भी नक्सलियों को लेवी देने की स्थिति में नहीं होगा। भारी संख्या में कैश होने के बाद भी नक्सली रुपयों का यूज नहीं कर सकेंगे। जब हथियार, गोली और बम की खरीददारी नहीं होगी तो जाहिर सी बात है कि इनकी गतिविधियों में भी कमी आएगी। लेकिन जानकार मानते हैं कि नक्सली गतिविधियों की ये कमी महज कुछ महीनों के लिए हो सकती है।