- 80 फीसद डॉक्टर बिना जरूरत देते हैं एंटीबायोटिक

- 90 परसेंट आईसीयू में भर्ती मरीजों को देनी पड़ती है एंटीबायोटिक

- 60-70 परसेंट मरीजों को दी जाती है हाई लेवल एंटीबायोटिक

- 118 एंटीबायोटिक चलन में

- 24 से ज्यादा दवाओं के प्रति जीवाणुओं के प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर ली

-केजीएमयू के मेडिसिन आईसीयू ने लगाई हाई एंटीबायोटिक पर रोक

-बेवजह एंटीबायोटिक यूज से सामान्य बीमारियां भी होंगी जानलेवा

-लोगों में बढ़ रहा एंटीबायोटिक प्रतिरोध

-बीमार हुए तो दवा लेने पर नहीं करेगी असर

sunil.yadav@inext.co.in

LUCKNOW: राजधानी के बहुत से अस्पताल करीब 70 फीसद से अधिक मरीजों को आईसीयू में हाई लेवल की एंटीबायोटिक का धड़ल्ले से प्रयोग कर रहे हैं। जबकि इन मरीजों में इन दवाओं की आवश्यक्ता ही नहीं थी। बीमारी गंभीर होने पर वह मरीज केजीएमयू पहुंचे तो पता चला कि बिना जरूरत के ही दवाएं दी जा रही थी। इससे कम क्षमता वाली दवाओं से ही मरीज ठीक हो गए। गौरतलब है कि दो दिन पूर्व ही एम्स दिल्ली की एक रिपोर्ट में एंटीबायोटिक दवाओं बिना जरूरत प्रयोग पर चिंता जताई गई है।

गैर जरूरी एंटीबायोटिक पर रोक

केजीएमयू में मेडिसिन आईसीयू के इंचार्ज डॉ। डी हिमांशु ने बताया कि ग्राम निगेटिव के लिए कार्बीपेनम और उससे हाई लेवल की कोलिस्टिन और ग्राम पाजिटिव बैक्टीरिया के लिए हाई लेवल की एंटीबायोटिक वैंकोमाइसिन का धड़ल्ले से बिना जरूरत प्रयोग किया जा रहा है। केजीएमयू में भी पहले ज्यादातर मरीजों को दी जाती थी, लेकिन पिछले एक वर्ष में इन पर रोक लगाई गई। हर मरीज की जांच की जाने लगी तो पिछले एक वर्ष में वैंकोमाइसिन एक भी मरीज को नहीं देनी पड़ी। जबकि कोलिस्टिन केवल छह मरीजों को देनी पड़ी। जबकि पहले ये दवाएं 35 से 40 फीसद मरीजों में दी जाती रही हैं।

ओवर यूज रोकने को आईसीयू में अपनाएं सेफ्टी मीजर

मेडिसिन आईसीयू और इंफेक्शियस डिजीज के इंचार्ज डॉ। डी हिमांशु ने बताया कि एंटीबायोटिक के ओवर यूज को रोकने के लिए आईसीयू में कुछ सेफ्टी मीजर अपनाए गए। हर मरीज की जांच की गई। तो पता चला कि आईसीयू में आने वाले 60 से 70 फीसद मरीजों को पहले से ही दूसरे अस्पताल में हाई लेवल एंटीबायोटिक की जरूरत नहीं थी और वे दवाएं दी जा चुकी हैं। यहां आईसीयू में साफ सफाई और इंफेक्शन वाले मरीजों को अलग करके सामान्य एंटीबायोटिक से ही उन्हें ठीक कर लिया गया। यानी इन मरीजों को हाई लेवल एंटीबायोटिक की जरूरत नहीं थी।

कम कर सकते हैं ओवरयूज

डॉ। डी हिमांशु ने बताया कि एंटीबायोटिक का बिना जरूरत और ओवर यूज को सभी अस्पतालों में कम किया जा सकता है। इसके लिए जरूरी है कि अलग प्रतिरोध वाले बैक्टीरिया के मरीज को अलग किया जाए। नर्स, डॉक्टर्स और अन्य सभी कर्मचारी हैंड रब, हैंड वाश, साफ सफाई का ध्यान रखें तो मरीजों को इंफेक्शन का खतरा कम होगा। डॉ डी हिमांशु ने बताया कि आईसीयू में 90 परसेंट मरीजों को एंटीबायोटिक देनी पड़ती हैं। लेकिन जरुरी नहीं कि सभी को हाई लेवल एंटीबायोटिक दी जाएं। बहुत से मरीजों को बिना दवा ठीक किया जा सकता है और बिना जरूरत दवा देने से बचना चाहिए।

अपने आप न लें एंटीबायोटिक

डॉ। राम मनोहर लोहिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज के डॉ। विनीता मित्तल ने बताया कि बिना डॉक्टरी सलाह के अपने आप एंटीबायोटिक का प्रयोग न करें। वायरल फीवर, सर्दी जुकाम जैसी बीमारियों में किसी एंटीबायोटिक मेडिसिन की जरूरत नही पड़ती। इसलिए भी अपने आप दवा न लें क्योंकि पता ही नहीं होता है कि बैक्टीरिया से इंफेक्शन या अन्य प्रकार का। यदि दवा के प्रति बैक्टीरिया में रजिस्टेंस हो गया तो अगली बार बीमारी होने पर वही दवा फायदा नहीं करेगी। डॉ। विनीता मित्तल ने बताया कि आईसीयू के मरीजों को एंटीबायोटिक शुरू करने के साथ ही कल्चर टेस्ट भी करा लेना चाहिए। जिससे पता चल सके कि मरीज के शरीर में इंफेक्शन करने वाले बैक्टीरिया पर कौर सी एंटीबायोटिक दवाएं असर नहीं करेंगी। रिपोर्ट में यदि सभी असर कर सकती हैं तो सबसे सामान्य दवाएं दी जाएंगी। ताकि उससे हाई लेवल की दवाएं बड़ी बीमारी को ठीक करने में काम आ सकें।

यह भी जानें

अधिकांश लोग समझते हैं कि एंटीबायोटिक दवाएं सर्दी, गैस्ट्रोएंट्राइटिस जैसी बीमारियों का इलाज कर सकती हैं। ये धारणा गलत है क्योंकि ये अधिकतम वायरस के कारण होती हैं जिन पर एंटीबायोटिक का असर नहीं होता है।

दुनिया में सात लाख की मौत

डब्ल्यूएचओ की दो वर्ष पहले की रिपोर्ट के अनुसार एंटीमाइक्रोबियल प्रतिरोध (एएमआर) से दुनिया में प्रति वर्ष करीब सात लाख लोगों की मौत होती है। भारत विश्व में एंटीबायोटिक दवाओं के सबसे बड़े उपभोक्ताओं में से है। 2050 तक यह आंकड़ा एक करोड़ या इससे अधिक पहुंचने का अनुमान है।

नहीं आ रही नई दवाएं

एंटीबायोटिक दवाओं के गलत यूज के कारण साइंटिस्ट और डॉक्टर इसलिए चिंतित हैं क्योंकि पिछले तीन दशकों से नई एंटीबायोटिक दवाएं खोजी नहीं जा सकी है। जबकि पुरानी दवाओं के प्रति लोगों में प्रतिरोध बढ़ रहा है और दवाओं का असर होना बंद हो चुका है। अगर यही हाल रहा तो छोटी छोटी बीमारियां भी आने वाले समय में इंसानों के लिए जानलेवा साबित होंगी। एंटीबायोटिक दवाओं का प्रयोग आईसीयू में भर्ती मरीजों को , गंभीर बीमारियों से पीडि़त मरीज और सर्जरी, चीर फाड़ के बाद घाव भरने के लिए प्रयोग करना पड़ता है।

24 से ज्यादा दवाएं बेअसर

वैज्ञानिकों के अनुसार वर्तमान समय में 22 ग्रुप की 118 एंटीबायोटिक दवाएं चलन में हैं। जिनमें से 24 से ज्यादा दवाओं के प्रति जीवाणुओं या बैक्टीरिया ने प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर ली है। यानी ये दवाएं अब बेअसर हैं। उदाहरण के तौर पर टाइफाइड के लिए फ्लॉक्सोसिन ज्यादातर मरीजों में बेअसर है।

बेअसर होने के कारण

एंटीबायोटिक के बेअसर होने के तीन प्रमुख कारण हैं।

- कम या अधिक इस्तेमाल

- एक से अधिक एंटीबायोटिक एक साथ प्रयोग और बिना आवश्यकता के ही एंटीबायोटिक लेना। - ऐसे में इन दवाओं के प्रति बैक्टीरिया में प्रतिरोधक क्षमता पैदा हो जाती है और ये दवाओं आगे चलकर मरीज में बेअसर हो जाती हैं।

बिना जांच दे रहे दवाएं

डॉक्टर्स के अनुसार बहुत से डॉक्टर बिना समझे या बिना जांच कराए ही हाई लेवल की एंटीबायोटिक दवाओं का प्रयोग शुरू कर देते हैं। जोकि खतरनाक है। जबकि हाई लेवल की दवाओं का प्रयोग सबसे अंत किया जाना चाहिए। बीमारी की शुरुआत में ही हाई लेवल की एंटीबायोटिक प्रयोग से दोबारा इंफेक्शन होने पर एंटीबैक्टीरियल दवाएं असर नहीं करतीं। जिससे बैक्टीरियल इंफेक्शन बढ़ता है।