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Meerut : केसरिया बालम प्यारे पधारो मारे देश रे..लकड़ी की काटी काटी का घोड़ा कुछ इसी तरह के गीतों के बोल सुनाते हुए मेरठ पहुंचे वायलिन वादक पंडित डॉ. संतोष नाहर ने शास्त्रीय संगीत की महत्ता व राग की जानकारी दी. पंडित नाहर जो बिहार के सुप्रसिद्ध संगीत परिवार भागलपुर के मिश्र घराना में जन्में है. भारतीय संगीत जगत में एक प्रख्यात वायलिन वादक के रुप में उन्होंने अपनी जगह बना ली है. पंडित नाहर ने बताया अब फिल्मों में भी वादन को मिला जुलाकर नयापन लाकर ही परोसा जा रहा है, नयापन अच्छा लगता है, पर इतना भी नयापन न हो कि संगीत की आत्मा ही खत्म हो जाए.

कलाकारों को सच्चाई समझनी होगी
पंडित संतोष नाहर ने कहा कि हम कलाकारों को आने वाली पीढ़ी को भी आगे बढ़ने देने का मौका देना चाहिए,हमें सोचना होगा कि पहलवानी और संगीत दोनों ही ऐसी चीज है जो जवानी में अच्छी की जा सकती है. इसलिए हमें दूसरों को आने का मौका देना चाहिए.

मानसिक रोग हो सकते हैं दूर
पंडित नाहर ने बताया आजकल हर दस में पांच को कम उम्र में ही नींद न आने व स्ट्रेस की बीमारी पनपने लगी है. वैसे तो शास्त्रीय संगीत तनाव से दूर रहने की पूर्ण औषधि मानी जाती है. लेकिन तीन राग हैं अगर उनको सुन लिया जाए तो मानसिक रोग नहीं होगा. राग विहाग सुनने से आपको नींद न आने की बीमारी 80 प्रतिशत से भी अधिक मात्रा में दूर हो जाएगी, भैरव राग मेडिटेशन का काम करता है वहीं यमन राग सुनने से 90 प्रतिशत स्ट्रेस दूर किया जा सकता है, इसलिए हमें संगीत सुनने की आदत डालनी चाहिए कभी मानसिक तनाव की बीमारी नहीं होगी.

पहले इंडियन रेलवे में बजता था
पंडित नाहर ने बताया कि अबसे दो साल पहले इंडियन रेलवे में शास्त्रीय संगीत बजा करता था. जिसे बहुत चाव से सुना जाता था. आज हालात ये है किसी को इसकी नॉलेज तक नहीं है, न ही इंडियन रेलवे में बजाया जाता है.

केवल क्लासलेवल के बीच हो
उन्होंने म्यूजिक में आने वाले बदलाव के बारे में कहा कि आज बदलाव की जरुरत को देखते हुए संगीत के साथ कई तरह के छेड़छाड़ किए जाते हैं. यह बदलाव भी आज की मजबूरी है, क्योंकि युवा ऐसा बदलाव चाहते हैं. उन्होंने कहा कि वायलिन केवल क्लास लेवल के बीच होना चाहिए, क्योंकि यह हर किसी की समझ में नहीं है.

कर रहे है स्कूल्स मार्केटिंग
पंडित नाहर ने कहा कि आज स्कूल्स भी मार्केटिंग पर ही फोकस कर रहे हैं, क्या शिक्षा दी जा रही है पुरानी परम्पराएं तो मानों भूला ही चुके हैं. स्कूलों में संस्कृत के टीचर भी बहुत कम है, ये संस्कृत भाषा के साथ भेदभाव है, बच्चा पढ़ना तो चाहता है पर स्कूल ही नहीं सिखाना चाहते है. ये जिम्मेदारी स्कूलों व पेरेंट्स की है वो उनको अपनी परम्पराओं को सिखाएं, भागदौड़ भरी जिंदगी में में पेरेंट्स बिजी है संयुक्त परिवार भी खत्म हो गए है, जिसके चलते आ ऐसे हालात है बच्चा फिल्मी गीतों को मजे से सुनता व पसंद तो करता है पर उसको ये नहीं पता ये कौन सा राग से लिया गया है.

मेरठ में भी चाहिए मौका
पंडित नाहर ने कहा वैसे वो शनिवार व रविवार को जब स्कूलों की छुट्टी होती है तो स्कूलों में बच्चों से इंट्रक्शन करके उनको संगीत की नॉलेज निशुल्क देते है ताकि वो जागरुक हो सके. अगर उनको मौका मिलता है तो वो मेरठ के स्कूलों में दैनिक जागरण आई नेक्स्ट के साथ मिलकर अभियान चलाना चाहेंगे.