रांची: बीएसएनएल के लिए अपने ए और बी ग्रेड के अधिकारियों को सैलरी देना मुश्किल हो गया है। सैलरी के लिए बीएसएनएल को 850 करोड़ रुपयों की दरकार है जो उसके लिए एक चुनौती बन गयी है। रांची में बीएसएनएल के एक पदस्थ अधिकारी ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि कंपनी ने भारत सरकार से कहा है कि कैश कमी के कारण जून मंथ का 850 करोड़ रुपये सैलरी दे पाना संभव नहीं है। क्योंकि कंपनी पर अभी करीब 13 हजार करोड़ रुपये की आउटस्टैंडिंग लायबिलिटी है, जिसके चलते बीएसएनएल का कारोबार डांवाडोल हो गया है। राष्ट्रीय स्तर पर एक सरकारी टेलीकॉम कंपनी की ऐसी हालत के खुलासे के बाद हड़कंप का माहौल है।

केंद्र को लिखा त्राहिमाम संदेश

देश की सरकारी टेलीकॉम कंपनी बीएसएनएल की हालत बिल्कुल खस्ता हो गयी है। कर्मचारियों को वेतन देने के लिए भी लाले पड़े हुए हैं। वेतन के लिए कंपनी ने केंद्र सरकार से गुहार लगायी है। सरकार को भेजे गये त्राहिमाम संदेश में कहा गया है कि कंपनी को चला पाने में वह अक्षम है।

राजस्व और खर्च में बढ़ा अंतर

बीएसएनएल के कारपोरेट बजट एंड बैंकिंग डिवीजन के सीनियर जनरल मैनेजर पूरन चंद्र ने टेलीकॉम मंत्रालय में संयुक्त सचिव को लिखे एक पत्र में कहा है कि हर महीने के राजस्व प्राप्ति और खर्चो में अंतर के कारण अब कंपनी को चला पाना चिंता का विषय बन गया है। पत्र में यह भी कहा गया है कि यह अंतर अब यह एक ऐसे स्तर पर पहुंच चुका है, जहां बिना किसी पर्याप्त इक्विटी को शामिल किये बिना बीएसएनएल के ऑपरेशन को जारी रखना नामुमकिन होगा।

सरकार को है जानकारी

अधिकारियों का कहना है कि ऐसा नहीं है कि बीएसएनएल की इस हालत की जानकारी सरकार को नहीं है। कुछ महीने पहले बीएसएनएल के चेयरमैन ने सरकार के समक्ष एक प्रेजेंटेशन भी दिया था। हालांकि इसके बाद भी इस समस्या का समाधान नहीं निकल पाया कि आखिर 1.7 लाख कर्मचारियों वाली कंपनी इस संकट से खुद को किस तरह से उबार पायेगी।

सैलरी सबसे बड़ा बोझ

कंपनी के समक्ष कर्मचारियों की सैलरी के अलावा अन्य बेनीफिट्स भी सबसे बड़ी समस्या बनी हुई हैं। फाइनेंशियल ईयर 2018 में रिटायरमेंट बेनीफिट्स सहित कर्मचारियों पर खर्च बीएसएनल के परिचालन राजस्व का 66 परसेंट रहा, जबकि वित्तीय वर्ष 2006 में यह 21 परसेंट था।