दैनिक जागरण आई नेक्स्ट के रीडर ने फेसबुक पर शेयर किए एक्सपीरियंस

Meerut. यह आम का फलदार वृक्ष मेरे घर के बिल्कुल सामने हमारे घर के समीप खेत में है. इस फलदार वृक्ष से मेरी और मेरे पिताजी की बहुत यादें जुड़ी हुई है. यह वृक्ष हमारे घर के समीप होने के कारण हमारे हर संघर्ष का गवाह भी है.

अजीब किस्सा

इस आम का वृक्ष के पैदा होने का किस्सा भी अजीब है. 1976 में बुआ जी की ससुराल से कुछ आम आए थे उनकी गुठली हमारे पिताजी ने ऐसे ही डाल दी थी. बाद में यह विशालकाय वृक्ष बना और आज भी उसी तरह खड़ा है इस दौरान इस फलदार वृक्ष ने कई उतार चढ़ाव देखे.

आंधियों से मुकाबला

एक बार 2006 में आकाशीय बिजली भी गिरी जिसके कारण इस पर बहुत असर पड़ा और कई वषरें तक फल भी खराब आए. आंधी और तूफान का सामना करने के बाद यह आज भी ऐसे ही पहले की तरह अपने और हमारे संघर्षो की कहानी और यादे संजोय खड़ा है. मेरे पिताजी का बचपन भी इसी के नीचे खेलकूद कर बिता और मेरा बचपन भी.

बीत गया बचपन

मैं और मेरे दोस्त गर्मियों की छुट्टियों के दिनों मे इस पेड़ पर कान पत्ता नामक एक खेल खेला करते थे. साथ ही आम के फलों के मौसम मे आम खाया करते थे और इसके नीचे खाट बिछाकर हम पूरे दिनभर अपने पूरे गांव की चर्चा करते थे. बचपन इस पेड़ के नीचे रहकर कब बीत गया पता ही नही चला लेकिन यह पेड़ हमारे बचपन के दिनों की यादो को आज तक संजाए हुए है. जब भी मै इस पेड़ को देखता हूँ बचपन और वो यादें जिन्दा हो जाती है यह पेड़ मेरे गांव अकबरपुर गढ़ी में है.

(हमारे रीडर छात्र संघ के पूर्व महामंत्री अंकित अधाना ने यह स्टोरी फेसबुक के माध्यम से शेयर की है.)