मैं मेंटल हॉस्पिटल के उद्यान में टहल रहा था। वहां मैंने एक युवक को बैठे देखा जो तल्लीनता से दर्शन शास्त्र की पुस्तक पढ़ रहा था। वह युवक पूरी तरह से स्वस्थ प्रतीत हो रहा था और उसका व्यवहार अन्य रोगियों से बिल्कुल अलग था। वह यकीनन रोगी नहीं था। मैं उसके पास जाकर बैठ गया और उससे पूछा कि, तुम यहां क्या कर रहे हो। उसने मुझे आश्चर्य से देखा। जब वह समझ गया कि मैं डॉक्टर नहीं हूं तो वह बोला कि, देखिए यह बहुत सीधी बात है। मेरे पिता बहुत प्रसिद्ध वकील थे और मुझको अपने जैसा बनाना चाहते थे।

मेरे अंकल का बहुत बड़ा एम्पोरियम था। सो वह भी चाहते थे कि मैं उनकी राह पर चलूं और ऐसा ही कुछ काम करूं। गलत भी नहीं था। मेरी मां मुझमें हमेशा मेरे मशहूर नाना की छवि देखती थीं, मेरी बहन चाहती थी कि मैं उनके पति की कामयाबी को दोहराऊं और मेरा भाई चाहता था कि मैं उस जैसा शानदार एथलीट बनूं। यही सब मेरे साथ स्कूल में, संगीत की कक्षा में और अंग्रेजी की ट्यूशन में होता रहा।

कठिनाइयों में भी चलते रहने का नाम है जीवन, कष्टों से दूर न भागें सामना करें

बुरा मत देखो, मत सुनो, मत बोलो धोखा है, बुराई तो भीतर से आती है: ओशो

वे सभी दृढ़ मत थे कि अनुसरण के लिए वे ही सर्वथा उपयुक्त और आदर्श व्यक्ति थे। उन सभी ने मुझे एक मनुष्य की भांति नहीं देखा। मैं तो उनके लिए बस एक आईना था। तब मैंने यहां भर्ती होने के बारे में तय कर लिया। आखिर यही एक जगह है जहां मैं अपने स्वत्व के साथ रह सकता हूं।

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