प्रशिक्षण से संभव है कबूतरों का ब्रेस्ट कैंसर पहचानना
जब से शोधकर्ताओं ने ये सुनिश्चित किया है कि कबूतरों में इंसानों की तरह ब्रेस्ट कैंसर को पहचाने की क्षमता हो सकती है अस्पतालों में ऐसे पक्षियों को लेकर आने वालों की भीड़ बढ़ने लगी है। दूसरी तरफ वैज्ञानिक हैरान हैं कि कैसे किसी चिड़िया को चिकित्सकों की तरह स्वस्थ और संक्रमित कैंसर टिश्यूज को बायोप्सी स्लाइडस और मेमोग्राम स्कैन के जरिए देख कर पहचानना सिखाया जा सकता है। सच तो ये है कि कई बार इंसानों को सालों के अभ्यास और अध्ययन के बाद भी इन टिश्यूज को पहचानने में दिक्कत होती है लेकिन इन प्रशिक्षित कबूतरों ने 85 प्रतिशत मामलों में बिलकुल सही पहचान की है। प्रोफेसर रिचर्ड लिवेंसन के अनुसार सही प्रशिक्षण और खानपान के कुछ नियमों के पालन से कबूतरों में बिलकुल इंसानों की तरह काम करने की योग्यता पैदा की जा सकती है।

A Pigeons can spot breast cancer

एकदम सही पकड़ते हैं कैंसर संक्रमण को
शोधकर्ताओं ने बताया है कि ये प्रशिक्षित पक्षी सौम्य और संक्रमित ब्रेस्ट कैंसर कोशिकाओं को सही तरीके से ना सिर्फ पहचानते हैं बल्कि उनके घटने और बढ़ने के क्रम को भी सही तरीके समझ लेते हैं। ये कबूतर पहले दिन जब संक्रमण कम होता है से लेकर उसके विकास को पूरी शुद्धता के साथ जांच लेते हैं और जांच 50 प्रतिशत से लेकर 85 प्रतिशत सही पायी गयी है। इस परिक्षण के आठ प्रशिक्षित कबूतरों का चयन किया गया और उनसे नीले और पीले बटन के माध्यम से सौम्य और संक्रमित कैंसर सेल्स को पहचानने के लिए कहा गया। सही जवाब पर उन्हें खाने के रूप में ईनाम दिया जाता था। पता चला कि ये पक्षी किसी प्रशिक्षित और अच्छे रेडियोलाजिस्ट की तरह बेहतरीन काम कर रहे थे। 

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लिपि और चित्रों का फर्क भी पहचानते हैं कबूतर
शोधकर्ताओं ने बताया कि बेशक मानव मस्तिष्क की तुलना में कबूतरों के मस्तिष्क का आकार एक उंगली के टिप जितना छोटा होता है, परंतु उसका तंत्रिका मार्ग बिलकुल इंसानों जैसा होता है। इसीलिए वो प्रशिक्षण कें बाद इतने सक्षम हो जाते हें कि अल्फाबेट और विभिन्न चित्रकारों की पेंटिंग के बीच का फर्क स्पष्ट साफ समझ आता है। प्रोफेसन लिवेंसन तो मानते हें कि कबूतर नैदानिक प्रक्रियाओं में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकते हैं। 

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