यमुना में प्रदूषण की शिकायात के बाद एनजीटी ने उठाए कदम

एनजीटी में कुछ लोगों ने शिकायत की थी कि यमुना किनारे इतने बड़े कार्यक्रम से पर्यावरण को नुकसान पहुंचने का अंदेशा है। इससे पहले एनजीटी ने डीडीए को इस बात के लिए फटकारा था कि उसने यहां इतने बड़े कार्यक्रम की इजाजत कैसे दी। जिसके बाद आर्ट ऑफ लिविंग के श्रीश्री रविशंकर ने कहा है कि सब कुछ कानून के मुताबिक ही किया जाएगा। उन्होंने कहा कि उनका मकसद यमुना को गंदा करना नहीं बल्कि यमुना की सफ़ाई है। आर्ट ऑफ लिविंग यमुना नदी को साफ करने में सबसे आगे है। कार्यक्रम का मकसद नदी को साफ करना है गंदा करना नहीं।

राष्ट्रपति ने किया कार्यक्रम में आने से इंकार

राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने इस कार्यक्रम में शिरकत करने से इनकार कर दिया है। माना जा रहा है कि यह फैसला आयोजन की जगह पर लगतार उठ रहे विवाद के बाद लिया गया है। दिल्ली में यमुना किनारे होने वाले आर्ट ऑफ लिविंग के कार्यक्रम में सेना से पंटून पुल बनवाने को लेकर विवाद हो गया है। अब तक सेना एक पुल बना चुकी है और दूसरा पुल बनाने का काम चल रहा है। संभावना है कि सेना तीसरा पुल भी बना सकती है। असम राइफल्स के पूर्व डीजी लेफ्टिनेंट जनरल रामेश्वर राय का कहना है कि बेशक ये रक्षा मंत्रालय के कहने पर हो रहा हो, लेकिन यह सरासर गलत है। यह कोई राष्ट्रीय पर्व नहीं है, जिसके लिए सेना की गरिमा को दांव पर लगाया जाए।

सेना के काम करने पर उठ रहे हैं सवाल

यह महोत्सव श्रीश्री रविशंकर की संस्था आर्ट ऑफ लिविंग की ओर से कराया जाने वाला निजी कार्यक्रम है। फिर इसके लिए सेना क्यों जुटी है। सेना का तर्क है कि वह यह काम रक्षा मंत्रालय के आदेश पर कर रही है। वहीं सेना के सूत्रों ने बताया है कि पुलों को बनाने के लिए 120 जवान लगाए गए थे। पीएम के आने और किसी तरह की भगदड़ न मचे इसलिए सेना ने पुल बनाए हैं। आर्ट ऑफ लिविंग को बकायदा इसका बिल भेजा जाएगा। सेना यह भी कह रही है कि वह कुंभ और कॉमनवेल्थ गेम्स में पुल निर्माण का काम कर सकती है तो फिर यहां क्यों नहीं। कुंभ और कॉमनवेल्थ गेम्स जैसे कार्यक्रम सीधे सरकार करवाती है जबकि यह कार्यक्रम आर्ट ऑफ लिविंग नाम की रजिस्टर्ड संस्था की तरफ से कराया जा रहा है।

सुप्रीम कोर्ट भी कर सकती है सुनवाई

सुप्रीम कोर्ट में यमुना की सफाई को लेकर आज अहम सुनवाई हो सकती है। पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने यमुना की सफाई में करोड़ों रुपये बहाने के बाद भी नदी की हालत में सुधार न होने पर केंद्र और राज्य सरकार को फटकार लगाई थी। यमुना की सफाई के मामले पर सुप्रीम कोर्ट में पिछले 18 साल से सुनवाई हो रही है। अब तक यमुना की सफाई पर 1200 करोड़ रुपये खर्च किए हैं। इसके बाद भी नदी की हालत जस की तस बनी हुई है।

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