संपूर्ण इतिहास मे किसी न किसी जगह पर युद्ध हमेशा से होते रहे हैं। यह काफी आश्चर्यजनक है कि द्वितीय विश्वयुद्ध में जो देश पूर्णतया नष्ट हो चुके थे, आज वे शक्तिशाली और स्वावलंबी हैं। हम विश्वास करते हैं कि केवल शांति ही मानव-मात्र की सहायता करती है, लेकिन ऐसा नहीं है। युद्ध हमारी इच्छा के विपरीत है, लेकिन प्रकृति के नियमों के विपरीत नहीं है और इसके भी अपने लाभ हैं। लेकिन जिस तरह विज्ञान ने जीवन को और ज्यादा सुविधाजनक बनाया है, उसने युद्ध को भी अति भीषण बनाया है। प्राचीन समय में जीवन इतना सुविधाजनक बिल्कुल नहीं था, न ही युद्ध ही इतने विनाशकारी होते थे। इस ग्रह पर युद्ध तब तक जारी रहेंगे जब तक प्रत्येक व्यक्ति की समझदारी, जागरूकता ऊंचे स्तर की नहीं होती है। यह तो होना ही है।

युद्ध, प्रत्येक व्यक्ति के अंदर मौजूद हिंसात्मक प्रवृति की अभिव्यक्ति मात्र है। आप देखेंगे कि आप लगातार लड़ाई कर रहे हैं, या तो अपने आसपास के लोगों के साथ, या अपने अतंस में। ये लड़ने की प्रवृति प्रत्येक व्यक्ति में मौजूद है इसलिए हिंसा के बीज को जला डालने के लिये कुछ 'साधना' कि आवश्यकता है। जब हिंसा का बीज जल जाएगा, तब तक निश्छल प्रेम का उदय होगा। अन्यथा प्रेम भी हिंसात्मक हो जाता है। जब तक, लोगों के दिमाग से हिंसा उखाड़ कर नहीं फेंकी जाएगी, युद्ध अवश्यंभावी है। और जब युद्ध अपरिहार्य है, तब यह कहने का कोई औचित्य नहीं कि 'मैं शांति हूं।‘ प्रत्येक को इस बात का पूरा ज्ञान होना चाहिए कि युद्ध और शांति दोनों इस जीवन का हिस्सा हैं। समय-समय पर बाहरी दबाव पड़ने पर, डरे हुए लोग एकजुट हो जाते हैं। यह किसी भी समुदाय या देश के साथ हो सकता था।

इसी तरह युद्ध में भी कुछ सहयोग होता है। आपस में सामंजस्य होता है, जैसे शांति में होता है। इस विरोधाभास पर हम केवल आश्चर्य ही कर सकते हैं। जीवन में, ऊपरी सतह पर कुछ जोकि सुंदर दिखता है, अंदर गहराई में कुछ अरुचिकर का बीज हो सकता है। और ऊपरी सतह पर जो कुछ अत्यंत अप्रिय है, उसके अंदर गहराई में सौंदर्य हो सकता है।

जरूरी है विवेक और बुद्धिमत्ता

विवेक और बुद्धिमत्ता बहुत जरूरी हैं। विवेक, यह समझने के लिए कि जहां तलवार है, वहां शांति जरूरी है और जहां शांति है, वहां तलवार। जो अपरिहार्य है, उसे देखने के लिए बुद्धिमत्ता की जरूरत है। जो कुछ घटित हो रहा है, वह एक दैवी विधान है। उसका विरोध न करें। असीम तत्व असीम प्रेम है। और यदि वह कुछ घटित दे रहा है, तो उसके पीछे एक उद्देश्य होता है, होना ही है।

श्री श्री रवि शंकर जी

 

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