- दृढ़ इच्छाशक्ति से कैंसर को दे दी मात, जी रहे खुशहाल जिंदगी

- जागरूकता और समय रहते इलाज से कैंसर से जंग हो जाती है आसान

ALLAHABAD: कैंसर एक ऐसी बीमारी है जिसका नाम सुनते ही हर किसी का कलेजा कांप उठता है। ऐसे में जो लोग इसकी चपेट में आ जाते हैं भला उन पर क्या बीतती होगी इसका सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है। लेकिन जहां चाह हो वहां राह निकल ही आती है। विश्व कैंसर दिवस पर आज हम आपको कुछ ऐसे ही लोगों से रूबरू करा रहे हैं, जिन्होंने अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति से इस घातक बीमारी को भी मात दे दी।

केस वन

हंडिया के 74 वर्षीय दीनदयाल पांडेय (काल्पनिक नाम) को 2009 में जबड़े के कैंसर का पता चला था। कैंसर रीजनल सेंटर में सात साल के इलाज के बाद अब वह स्वस्थ हैं। उन्होंने तंबाकू और सुपाड़ी खाने की आदत थी। अब उन्होंने बुरी लत छोड़ दी है। डॉक्टर बताते हैं कि वह फोर्थ स्टेज में थे लेकिन सफल इलाज ने जान बचा ली। मरीज ने जमीन बेचकर इलाज कराया।

केस टू

थरवई की रहने वाली 85 साल की दीपकली (काल्पनिक नाम) के बच्चेदानी के कैंसर का इलाज वर्ष 2002 से रीजनल कैंसर सेंटर में चल रहा है। फिलहाल वह खतरे से बाहर हैं। डॉक्टर बताते हैं कि पेशाब में खून आने के बाद जांच में बीमारी की पुष्टि हुई और इसके बार कंटीन्यू रेडिएशन थेरेपी से उनको क्योर किया जा सका। दीपकली अब गांव की दूसरी औरतों को इस खतरे से आगाह कर रही हैं।

केस थ्री

कौशांबी के रहने वाले 58 साल के बिहारीलाल (काल्पनिक नाम) का तीन साल से गले के कैंसर का इलाज चल रहा है। वह बताते हैं कि अचानक आवाज निकलना बंद हो गई तो उन्हें खतरे का अहसास हुआ। अब उन्होंने तंबाकू की लत छोड़ दी है। एडवांस स्टेज में ही उनका इलाज शुरू होने से डॉक्टरों को सफलता मिली है।

बाक्स-

बुरी आदत है बदल डालो

तमाम प्रतिबंध के बाद भी न गुटखा खाने वालों में कमी आयी है और न धूम्रपान करने वालों में। इससे यही कारण है कि लंग्स कैंसर के मरीजों की संख्या में भी बढ़ रही है। मौजूदा वित्तीय वर्ष में ऐसे मरीजों की संख्या सात फीसदी से बढ़कर दस फीसदी हो गई है। जबकि, मुंह और गले के कैंसर के मरीज तीन से चार फीसदी तक घटकर 23 फीसदी हो गए हैं।

रास्ते हैं डरना नहीं है

कैंसर के केसेज में इजाफा होने के बीच मेडिकल सांइस लगातार इस पर अपनी पकड़ बना रहा है। इससे डरने की जरूरत नहीं है। समय से इलाज और जागरूकता कैंसर से जंग में बेहद कारगर होती है। कमला नेहरू मेमोरियल हॉस्पिटल के रीजनल कैंसर सेंटर के आंकड़े बताते हैं कि बाजार में वैक्सीन की उपलब्धता और जागरुकता के चलते कैंसर के कई मामलों में गिरावट आ रही है। अगर समय रहते बीमारी का पता चल जाए तो कैंसर का इलाज संभव है। रीजनल कैंसर सेंटर में पिछले कुछ सालों में कैंसर के मरीजों की मृत्यु दर तीस फीसदी से घटकर बीस फीसदी रह गई है।

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गंगा बेल्ट के लिए पित्त की थैली का कैंसर बना चुनौती

- तेजी से बढ़ रहे मामले, महिलाओं पर ज्यादा संकट

ALLAHABAD: इलाहाबाद जैसे गंगा बेल्ट से जुड़े शहरों में पित्त की थैली के कैंसर के मामले बढ़ते जा रहे हैं। यह बीमारी चुनौती बनकर उभरी है। वाराणसी, पटना, मुर्शिदाबाद के साथ इलाहाबाद में इस साल ढाई हजार से अधिक कैंसर के मरीजों ने दस्तक दी है। जो जिले के कुल मरीजों के 25 फीसदी हैं। इनमें से 18 फीसदी महिलाएं और 7 फीसदी पुरुष शामिल हैं।

जानलेवा केमिकल्स मौजूद

केंद्र सरकार ने माना है कि गंगा में जानलेवा तत्व मौजूद हैं। ये पेयजल के जरिए शरीर में जाकर पित्त की थैली में पथरी बनाते हैं, जो बाद में कैंसर में परिवर्तित हो जाते हैं। नेशनल काउंसिल ऑफ रेडिएशन प्रोटेक्शन एंड मेजरमेंट्स की स्टडी में भी पाया गया कि गंगा में मेटल, यूरेनियम जैसे तत्व मौजूद हैं, जो सेहत के लिए खतरनाक हैं। देश भर में चल रही रिसर्च के जरिए पित्त की थैली के कैंसर की वजह तलाशी जा रही है।

हार्मोनल चेंज भी है वजह

पित्त की थैली में कैंसर के मामलों में पुरुषों से अधिक महिलाओं को खतरा है। रीजनल कैंसर सेंटर के एचओडी डॉ। वी पाल बताते हैं कि मोटापा और चालीस साल की उम्र के बाद शरीर में होने वाले हार्मोनल चेंजेस इसकी अहम वजह हैं। केयरलेस होने की वजह से महिलाएं शुरुआत में इसका ध्यान नहीं देती और बाद में बीमारी बढ़ने पर परेशानी होती है।

गंगा में मौजूद हानिकारक तत्व

यूरेनियम

आर्सेनिक

फ्लोराइड

मेटल

क्या हैं लक्षण

- पेट के दाहिने कोने में दर्द उठना

- लगातार गैस बनने की शिकायत

- लीवर के नीचे गांठ बनना

- उठने- बैठने में तकलीफ होना

- पीलिया की शिकायत हो जाना