- ट्रैफिक एक्सपर्ट ने कहा यू टर्न के साथ कई आइडिया पर काम करने की दरकार

PATNA (10 Nov):

देश के सबसे प्रदूषित शहरों में से एक पटना में प्रदूषण सबसे आम समस्या बनती जा रही है। दीपावली के बाद से अब तक प्रदूषण का स्तर सामान्य से कम से कम चार गुना अधिक रहा है। बीते शनिवार को भी पटना में हवा की गुणवत्ता (एक्यूआई) वेरी अनहेल्थी कैटेगरी में रही। शहर में बढ़ रहे प्रदूषण के कारण शहर के सभी हॉस्पिटलों में सांस संबंधी बीमारियों के पेशेंट में कम से कम 30 प्रतिशत तक बढ़ोतरी हो गई है।

सरकार की ओर से प्रदूषण पर कंट्रोल को लेकर कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए गए हैं, लेकिन इन निर्णयों पर अमल होने में वक्त लगेगा। अभी भी कंस्ट्रशन वर्क में ग्रीन कवर का अभाव है। सड़क निर्माण के दौरान रात में कई किलो अकलतरा और कार्बन मैटेरियल जलाए जा रहे हैं। इसकी वजह से कार्बन डाई ऑक्साइड और सल्फर डाई ऑक्साइड आदि जहरीले पदार्थ हवा में घुलते हैं।

- आंकड़े का फर्क, राहत नहीं

यदि पटना में प्रदूषण से राहत की बात करें तो यह फिलहाल दूर की कौड़ी है। प्रदूषण विशेषज्ञ एवं सीड्स की सीनियर प्रोग्राम मैनेजर अंकिता ज्योति ने कहा कि बस आंकडे़ का फर्क होता है, न कि राहत की बात। जब क्लीन एयर एक्शन प्लान दो वर्ष पहले अस्तित्व में आया तब उन निर्णयों पर कड़ाई के साथ अमल क्यों नहीं किया गया। यदि यही स्थिति रही तो कभी भी बेहतर स्थिति की कल्पना नहीं की जा सकती है। हालांकि कुछ फैसले लिए गए हैं जिसका बेहद सामान्य सा असर दिख रहा है। जैसे सड़कों पर पानी का छिड़काव।

तीन बडे़ कारण, लेकिन वाहनों से प्रदूषण सबसे बड़ी समस्या

ट्रैफिक एवं पॉल्यूशन विषय के एक्सपर्ट नरेंद्र कुमार ने बताया कि शहर में तीन प्रकार के प्रदूषण होते हैं। इसमें वाहनों से निकलने वाला प्रदूषण, इंडस्ट्रियल वेस्ट का प्रदूषण और इफ्लुएंड मिसमैनेजमेंट के कारण उत्पन्न प्रदूषण। इफ्लुएंड मिसमैनेजमेंट का अर्थ है वेस्ट का सही तरीके से निपटारा नहीं होना। जैसे फैक्ट्री से निकला कचरा बिना ट्रीटमेंट के पानी या हवा में छोड़ दिया जा रहा है। लेकिन पटना में प्रदूषण का कारण वाहन जनित प्रदूषण है।

देर से फैसला निराशाजनक

पटना के संदर्भ में एक्सपर्ट बताते हैं कि जब वाहनों से ही करीब 35 प्रतिशत से अधिक प्रदूषण होता है तो सीएनजी और ई रिक्शा चलाने के फैसले पर तेजी से काम क्यों नहीं हो रहा है। जबकि दिल्ली जैसे शहरों में यह कम से 12 साल से प्रयोग में है। यह सरकार के पॉलिसी लेवल पर बड़ी कमी रही। टेक्नोलाजी का प्रदूषण कम करने में योगदान है जबकि इसका प्रयोग कम हो रहा है।

बेली रोड पर बढ़ी गति

प्रदूषण के असर में कमी लाने के मकसद से बेली रोड पर सभी ट्रैफिक सिग्नलों को हटा देने का फैसला थोड़ी राहत दे रहा है। नरेंद्र कुमार ने बताया कि इसकी वजह से गाडि़यों की औसत स्पीड बेहतर हुई है। उन्होंने कहा कि एवरेज स्पीड बढ़ने के कारण डेस्टिनेशन तक पहुंचने का समय भी घट जाता है और वाहन जनित प्रदूषण में कमी दर्ज की गई है। क्योंकि इससे पहले हर टै्रफिक सिग्नल पर कम से कम तीन से पांच मिनट के अंतराल पर सैकड़ों गाडि़यां स्टार्ट रहती थी और ट्रैफिक खुलने का इंतजार होता था।

अभी 'यू टर्न' से आगे बढ़ना जरूरी

एनआईटी पटना में प्रोफेसर संजीव सिन्हा ट्रैफिक विषय पर अच्छे जानकार हैं। उन्होंने ही पटना में जाम की समस्या के विषय पर कई सुझाव दिए थे। इसमें बेली रोड पर यू टर्न का भी सुझाव शामिल था। प्रोफेसर संजीव सिन्हा ने बताया कि टू टर्न से ट्रैफिक थोड़ा स्मूथ हुआ है लेकिन हमें इससे आगे बढ़ने की जरूरत है। उदाहरण के लिए इसके कारण गाडि़यों की औसत स्पीड बढ़ी है लेकिन पैदल चलने वालों को विकल्प नहीं मिला। जबकि सुझाव में ऐसे लोगों के लिए ओवरब्रिज या अंडरपास का जिक्र था। इसलिए यह तो करना ही होगा। उन्होंने कहा कि अभी सड़क पर ही रोड पर यू टर्न बना है। यदि इसके लिए रैम्प बना दिया जाए तो थ्रू ट्रैफिक डिस्टर्ब नहीं होगा। इससे स्पीड में आगे मूव करना आसान होगा। इसे ग्रेड सेपरेटेड यू-टर्न कहा जाता है।

अन्य सड़कों पर भी होगा लागू

प्रो संजीव सिन्हा ने बताया कि बेली रोड की तर्ज पर अन्य सड़कों जैसे कंकड़बाग, भूतनाथ रोड, न्यू बाइपास (एनएच 30) सहित अन्य सड़क पर लागू किया जा सकता है। लेकिन यहां पर भी ग्रेड सेपरेटेड यू-टर्न का प्रयोग किया जाना बेहतर विकल्प होगा।