Laxmii Movie Review: फिल्म लक्ष्मी तमिल भाषा की कंचना फिल्म का हिंदी रीमेक है, लेकिन फिल्म तमिल भाषा वाली फिल्म के मुकाबले अधिक असर छोड़ने में कामयाब नहीं हो पाती है। फिल्म ट्रांसजेंडर, हिंदू और मुस्लिम को लेकर समाज में मौजूद संकीर्ण सोच पर प्रहार करने की कोशिश करती है। सोच अच्छी है, लेकिन चूड़ियां पहन लूंगा, जैसी कहावतों से, महिलाओं का मखौल बनाने की ही कोशिश है। पढ़ें पूरा रिव्यू।

फ़िल्म: लक्ष्मी

निर्माता: तुषार कपूर, शबीना और अक्षय कुमार

ओटीटी प्लेटफार्म: डिजनी हॉटस्टार

कलाकार: अक्षय कुमार, कियारा आडवाणी, राजेश कुमार, मनु ऋषि,अश्विनी कलसेकर,आएशा रज़ा, शरद केलकर

निर्देशक: राघव लॉरेंस

रेटिंग: ढाई

क्या है कहानी

फिल्म की कहानी आसिफ (अक्षय कुमार) से शुरू होती है। उसको भूत-प्रेत पर यकीन नहीं है। वह अपनी पत्नी रश्मि (कियारा) के साथ बेहद खुश है, लेकिन इस शादी से रश्मि के परिवार वाले खुश नहीं हैं। वह हिन्दू मुस्लिम वाले मसले पर ही कायम हैं। कहानी में ट्विस्ट तब आता है, जब आसिफ को रश्मि के मम्मी पापा को मनाना पड़ता है, तभी वह उसके घर जाता है, लेकिन वहां उसके शरीर में ट्रांसजेंडर लक्ष्मी की आत्मा का प्रवेश होता है। इसके बाद एक के बाद एक हत्याएं होती रहती हैं, ऐसा लक्ष्मी के साथ क्या हुआ था, जिसकी वजह से आसिफ के शरीर में वह प्रवेश करती हैं। यह फिल्म का सार है और यहीं फिल्म का राज भी है। लेकिन स्क्रीन प्ले इस कदर लचर है कि आगे क्या होना है, पहले से पता होता है। जबरदस्ती का ड्रामा है। कुछ दृश्य अच्छे हैं, लेकिन फिल्म खास डरावनी नहीं है। कंचना 2011 की साउथ इंडियन हिट फिल्म है। इसलिए तब से अबतक बहुत कुछ बदल भी चुका है। वर्तमान परिपेक्ष्य में कहानी उलझी लगती है। हॉरर और कॉमेडी का मिश्रण करने के चक्कर में दोनों के साथ पूरी तरह से न्याय नहीं हो पाया है।

क्या है अच्छा

कहानी की सोच अच्छी है, कलाकारों ने अच्छा अभिनय किया है, खासतौर से शरद केलकर के &बम भोले&य गाने में भी ग्रैंड पिक्चराइजेशन है।

क्या है बुरा

जबर्दस्ती का फैमिली ड्रामा अच्छा नहीं लगता है। कई बेकार डायलॉग भी हैं, 9 साल के गैप के बावजूद फिल्म के विजुअल्स पुराने ढर्रे पर ही हैं। कंचना वाली कॉमेडी फीलिंग मिसिंग हैं। हिन्दू मुस्लिम मसले को लेकर बेवजह की ज्ञानबाजी है। हिन्दू बाबा बता रहे हैं कि घर में भूत है, लेकिन भगाने वाले मुस्लिम बाबा ही आएंगे। ऐसे कई घिसे पिटे दृश्यों से फिल्म पटी हुई है। प्यार के लिए प्रेमिका के परिवार को मनाना पता नहीं कब बॉलीवुड इससे बाहर निकलेंगे।

अदाकारी

अक्षय कुमार ने एक महिला के किरदार में अच्छी जान डाली है, लेकिन कई जगह वह अक्षय ही लगे हैं, इस लिहाज से उनके अभिनय में थोड़ी कमी लगती हैं। कियारा के लिए फिल्म में बहुत कुछ करने के लिए नहीं था। मनु ऋषि और राजेश शर्मा ने भी खास कमाल नहीं दिखाया है। अश्विनी और आयशा रजा का अभिनय भी अत्यधिक बनावटी है, फिर भी किसी की तारीफ़ होनी चाहिए तो शरद केलकर की। छोटी सी भूमिका में दम है।

वर्डिक्ट

अक्षय कुमार के फैंस निराश ही होंगे, लेकिन अक्षय की इस फिल्म का जिन्‍हें इंतजार था. वो एक बार तो देख ही सकते हैं।

Review by: अनु वर्मा

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