पं राजीव शर्मा (ज्योतिषाचार्य)। हिंदू धर्मग्रंथों के अनुसार, अक्षय तृतीया वर्ष के सबसे शुभ दिनों में से एक है। संस्कृत में, अक्षय का अर्थ शाश्वत है और तृतीया का अर्थ शुक्ल पक्ष के तीसरे दिन या पूर्णिमा के चरण से है। अक्षय तृतीया को देश के कुछ हिस्सों में अखा तीज के रूप में जाना जाता है। इस दिन पूजा के लिए मुहूर्त या शुभ मुहूर्त देखने की आवश्यकता नहीं होती है। पूरे दिन में कभी भी पवित्र माना जाता है।

पूजन विधि-विधान
यह व्रत वैशाख मास के शुक्लपक्ष की तृतीया को रखा जाता है।इस दिन उपवास करके भगवान विष्णु, लक्ष्मी,श्रीकृष्ण(वासुदेव) का पूजन किया जाता है।व्रती को इस दिन प्रातः कालीन कर्मो से निवृत्त होकर स्नान करना चाहिए।विधि-विधानानुसार भगवान का पूजन तुलसीदल चढ़ाकर धूप-दीप,अक्षत,पुष्प आदि से करने के पश्चात भीगे हुए चने की दाल का भोग लगाएं।इसमें मिश्री और तुलसीदल भी मिला लें।फिर भक्तों में प्रसाद वितरित करें।भगवान की प्रिय वस्तुओं का दान अवश्य करें। इस दिन जौ के दान और सेवन का भी विधान है।

व्रत कथा
प्राचीन काल में किसी नगर में महोदय नामक एक बनिया रहता था,जो सत्यवादी,देव एवं ब्राह्मणों का पूजक तथा सदाचारी था।वह प्रायः दुखी और चिंतित रहा करता था क्योंकि उसका परिवार बहुत बड़ा और आमदनी कम थी। एक दिन उसने रोहिणी नक्षत्र में वैशाख शुक्ल पक्ष में तृतीया के माहात्म्य सुना कि इस तिथि को जो कुछ भी दान किया जाता है, उसका फल अक्षय होता है यह जानकर उसने गंगा स्नान किया और पितृ एवं देवताओं का तर्पण किया फिर घर आकर देवी-देवताओं का विधिवत पूजन किया। ब्राह्मणों को दान-दक्षिणा के रूप में जौ,गेहूं,घड़ा,पंखा,सोना शक्ति अनुसार शुद्ध मन से प्रदान किये।यद्यपि उसकी पत्नी ने दान का विरोध भी किया,लेकिन वह धर्म-कर्म से विमुख न हुआ।परिणाम यह हुआ की वह दूसरे जन्म में कुशावती पुरी नामक नगर का राजा बना और धन सम्पन्न हुआ।उसने सम्पन्नता के बल पर बड़े-बड़े यज्ञ पूरे किए,गौ दान,स्वर्ण दान दिए।अपनी इच्छानुसार भोगों को भोगा।अनेक दींन-दुखियों को धन देकर सन्तुष्ट किया,फिर भी उसका धन कभी समाप्त नहीं हुआ, क्योंकि उसके पास का धन अक्षय भंडार था।अक्षय तृतीया को श्रद्धा पूर्वक दान का ही यह सब फल था।इसीलिये हिंदुओं में इस व्रत का बड़ा माहात्म्य है।

विशेष
यह पर्व दान प्रधान है।अतः इस दिन स्वर्गीय आत्माओं की प्रसन्ता के लिए कलश,पंखा,छाता, चावल,दाल, नमक, घी,चीनी,साग,इमली,फल,वस्त्र,सत्तू,ककड़ी,खरबूजा और दक्षिणा आदि का दान करना चाहिए।

गौरी पूजा
वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को गौरी व्रत की समाप्ति होती है।इसलिए यह पूजा भी वैशाख शुक्ल तृतीया को ही की जाती है।इस दिन श्रद्धा और विश्वास से पार्वतीजी का पूजन करना चाहिए तथा धातु या मिट्टी के कलश में जल,फल,पुष्प,गंध,तिल व अन्न भरकर निम्न मंत्र का उच्चारण करना चाहिए:-

एष धर्मघटो दत्तो ब्रह्मविष्णुशिवात्मकः।
अस्य प्रदानातस्कल मम संतु मनोरथ:।।

इससे जीवन मे सुख-शांति व सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
विशेष:- इस बार अपने अपने घरों पर 5 घी के दिये (दीप दान)दान अवश्य करें।