पं राजीव शर्मा (ज्योतिषाचार्य)। वैशाख शुक्ल तृतीया तिथि को "अक्षय तृतीया" की संज्ञा दी गई है।यह पर्व पूर्वाह्न व्यापिनी में मनाया जाता है अथार्त 3 मुहूर्त से 6 मुहर्त के मध्य।इस बार दिनाँक 3 मई 2022,मंगलवार को तृतीया तिथि सूर्योदय से रात्रि तक रहेगी,रोहिणी नक्षत्र सूर्योदय से रात्रि तक रहेगा, शोभन योग सांय 4:14 बज़े तक ततपश्चात अतिगड योग लगेगा, इस दिन वृष का चंद्र होगा। शास्त्रोक्त मध्यन्ह काल 11:54 बज़े से अपराह्ण 2:54 बज़े का होग़ा, इस दिन प्रातःकालीन स्थिर लग्न वृष 6:04 बज़े से 8:01बज़े तक रहेगी, अभिजित मुहूर्त पूर्वहन 11:30 बज़े से अपराहन 12:15 बज़े तक रहेगा।

अक्षय तृतीया का फल हमेशा बना रहता
मान्यता है कि इस दिन किया गया कोई भी धार्मिक कार्य अक्षय होता है,उसका फल कभी भी समाप्त नहीं होता।भविष्य पुराण के अनुसार इस तिथि से युगादि तिथियों का प्रारंभ हुआ था, इसलिए इसका धार्मिक महत्व है।ब्रह्माजी के पुत्र अक्षय कुमार का अविर्भाव भी इसी दिन हुआ था। मुहूर्त ज्योतिष में इस दिन को "अबूझ मुहूर्त" के रूप में मान्यता प्राप्त है। *इस दिन तिल सहित कुशों से पितरों का जलदान करने से पित्तीश्वरों की अनंत काल तक तृप्ति होती है।इस दिन मूंग एवं चावल की खिचड़ी बिना नमक डाले बनाई जाती है।

खाता पूजन प्रथम मुहर्त:- प्रातः कालीन स्थिर वृष लग्न 6:04 बज़े से प्रातः काल 8:02 बज़े तक रहेगी। इस मुहूर्त में सूर्य उच्च का होकर व्यय भाव में जोकि शुभप्रद रहेगा।
दूसरा मुहूर्त:- द्वस्वाभाविक मिथुन लग्न मुहुर्त प्रातः काल 8:03से 10:15 बजे तक रहेगी ।इस लग्न में प्रातः काल अमृत का चौघड़िया मुहूर्त भी रहेगा। इस मिथुन लग्न में धनेश चंद्र अपनी उच्च राशि वृष में विराजमान रहेंगे।
तृतीय खाता पूजन मुहूर्त:- इस मुहूर्त में स्थिर लग्न सिंह अपराह्न 12:32 बजे से अपराह्न 2:46 बजे तक रहेगी।इस मुहूर्त में अमृत का चौघड़िया मुहूर्त रहेगा।इसमें गणेश,महालक्ष्मी,कुबेर,इन्द्रादि का पूजन करके खाता पूजन करना श्रेष्ठ रहेगा।

चौघड़िया खरीदारी मुहूर्त:-
चर -लाभ-अमृत की सँयुक्त बेला मुहूर्त:-प्रातः काल 8:41बजे से अपराह्न 1:54 बजे तक, शुभ की बेला अपराह्न 3:33 बज़े से सांय 5:12 बज़े तक रहेगी परन्तु इस समय राहु काल भी रहेगा एवं रात्रि 8:12 बज़े से रात्रि 9:33 बज़े तक

महात्म्य
पुराणों के अनुसार इसी दिन से सतयुग एवं त्रेतायुग का आरम्भ हुआ था। विष्णु धर्मोतर पुराण में कहा गया है कि जो व्यक्ति एक भी अक्षय तृतीया के व्रत कर लेता है, वह सब तीर्थों का फल प्राप्त पा जाता है। भगवान श्री कृष्ण का कथन है कि अक्षय तृतीया के दिन स्नान,जप,तप, होम,स्वध्याय,पित्र, तर्पण और दान जो कुछ भी किया जाता है, वह सब अक्षय हो जाता है।इसलिए इस तिथि को "अक्षय तृतीया" के नाम से जाना जाता है।शास्त्रों के अनुसार बहुत से शुभ व पूजनीय कार्य इसी दिन आरम्भ किये जाते हैं जिनसे सुख,समृद्वि और सफलता की प्राप्ति होती है। इसलिए नये व्यवसाय, भूमि का क्रय,भवन,संस्था का उदघाट्न, विवाह,हवन आदि इस तिथि को किये जाते हैं।जो मनुष्य इस दिन गंगा स्नान करता है, वह सब पापों से मुक्त हो जाता है।भगवान परशुराम का अवतरण भी इसी दिन होने के कारण उनकी जयंती भी इसी दिन मनाई जाती है।यदि ये व्रत सोमवार, रोहिणी, कृतिका नक्षत्र से युक्त हो, तो अधिक फलदायक माना जाता है। भगवान बद्रीनाथ धाम के पट(द्वार) भी इसी दिन खुलते हैं।

पूजन विधि-विधान
यह व्रत वैशाख मास के शुक्लपक्ष की तृतीया को रखा जाता है।इस दिन उपवास करके भगवान विष्णु, लक्ष्मी,श्रीकृष्ण(वासुदेव) का पूजन किया जाता है।व्रती को इस दिन प्रातः कालीन कर्मो से निवृत्त होकर स्नान करना चाहिए।विधि-विधानानुसार भगवान का पूजन तुलसीदल चढ़ाकर धूप-दीप,अक्षत,पुष्प आदि से करने के पश्चात भीगे हुए चने की दाल का भोग लगाएं।इसमें मिश्री और तुलसीदल भी मिला लें।फिर भक्तों में प्रसाद वितरित करें।भगवान की प्रिय वस्तुओं का दान अवश्य करें। इस दिन जौ के दान और सेवन का भी विधान है।

व्रत कथा
प्राचीन काल में किसी नगर में महोदय नामक एक बनिया रहता था,जो सत्यवादी,देव एवं ब्राह्मणों का पूजक तथा सदाचारी था।वह प्रायः दुखी और चिंतित रहा करता था क्योंकि उसका परिवार बहुत बड़ा और आमदनी कम थी। एक दिन उसने रोहिणी नक्षत्र में वैशाख शुक्ल पक्ष में तृतीया के माहात्म्य सुना कि इस तिथि को जो कुछ भी दान किया जाता है, उसका फल अक्षय होता है यह जानकर उसने गंगा स्नान किया और पितृ एवं देवताओं का तर्पण किया फिर घर आकर देवी-देवताओं का विधिवत पूजन किया।