-बज्म-ए-नूर के ऑल इंडिया मुशायरा में जाने माने शायरों ने बांधा समां

-देर रात तक तालियों और वाह-वाह से गूंजता रहा आईएमए हॉल

बरेली। जो जिम्मेदारियां किस्मत ने मेरे सर रख दीं, तो फिर नजाकतें हमने उठा के घर रख दीं। सिया सचदेवा के इस शेर पर आईएमए हॉल तालियां और वाह वाह से गूंज उठा। मौका था आईएमए हॉल में बज्म-ए-नूर की ओर से आयोजित ऑल इंडिया मुशायरा का, जिसमें जाने माने शायरों ने देर रात तक समां बांधा। मुशायरे की अध्यक्षता शायर वसीम बरेलवी ने की और संचालन नदीम फर्रुख ने किया।

देर रात तक बांधा समां

मनोज कुमार ने पढ़ा- चंद सिक्के फिर पसीने में बहा ले आऊंगा, आज चावल ला सका मां कल दवा ले आऊंगा। अकील नोमानी के शेर बिछड़ने वाले किसी दिदन ये देखने आजा, चराग कैसे हवा के बगैर जलता है पर आईएमए हॉल तालियों से गूंज गया। हसीब रौनक ने पढ़ा- उनकी नजर के सामने दुश्वार कुछ भी नहीं, वो देखना चाहे तो दीवार कुछ भी नहीं। ताहिर सकलैनी ने पढ़ा- पैगाम मुझे भेजता मशरूफ अगर था, दुनिया ही मेरी लुट गई तू जाने किधर था। निशांत असीम ने पढ़ा। उसका अंदाजे वफा है या कोई चाल है, जख्म देकर पूछता है कैसे हो क्या हाल है। इनके अलावा चांद ककरालवी, राहिल सकलैनी, अजम शाकरी, नूर ककरालवी ने अपने शेर और गजल सुनाकर खूब वाहवाही लूटी।

बच्चे भी हुए सम्मानित

कार्यक्रम के दौरान अपनी पॉकेट मनी से रुपए बचाकर शहीदों के परिवारों की मदद करने वाले हार्टमन कॉलेज के स्टूडेंट शजरुल इस्लाम, मोहम्मद सैफ और मोहम्मद निकवात को सम्मानित किया गया।

ये रहे मौजूद

मुशायरा में डॉ। विनोद पागरानी, डॉ। सतेंद्र सिंह, डॉ। हाजी अयूब अंसारी, हमजा नूर, हाजी डॉ। हमीद उद्दीन सकलैनी, ताहिर नूरी सकलैनी आदि मौजूद रहे।