हाईकोर्ट बार एसोसिएशन का 24 नवंबर को होने वाला चुनाव एक बार फिर टल सकता है। इसके पीछे बड़ा कारण बनेगा नगर निगम चुनाव जिसके लिए इलाहाबाद में 26 नवंबर को वोट डाले जाएंगे। चुनाव टालने और सदस्यों को बार के देयों के भुगतान का समय दिए जाने की मांग को लेकर दाखिल अर्जियों की इलाहाबाद हाईकोर्ट में पूर्णपीठ ने सुनवाई की। जस्टिस तरुण अग्रवाल, दिलीप गुप्ता और कृष्ण मुरारी की पूर्णपीठ, घनश्याम दुबे व अन्य की याचिका की सुनवाई एक नवंबर को दोपहर बाद पौने चार बजे करेगी।
वरिष्ठ अधिवक्ता यूएन शर्मा का कथन
बार एसोसिएशन के बाइलॉज के नियम 14 के तहत यदि सदस्य का शुल्क तीन महीने तक बाकी है तो नोटिस जारी कर मौका दिया जाएगा
बार एसोसिएशन ने सदस्यों को बार के शुल्क का भुगतान करने की नोटिस नहीं दी
कोर्ट के आदेश पर 'वन बार वन वोट' का फार्म जमा कराया गया
स्क्रूटनी कर 15 सितंबर को फार्म जमा करने वालों की संख्या घोषित की गई।
नियम 55 के तहत वार्षिक आमसभा की तारीख के एक माह पूर्व का शुल्क जमा करने वाले सदस्यों को ही मताधिकार का नियम है
चूंकि सदस्यों को शुल्क जमा करने की नोटिस नहीं दी गई इसलिए दोनों उपबंध एक साथ पढ़े जाएंगे
तीन वर्ष की सदस्यता रखने वाले सक्रिय सदस्य जिनका शुल्क जमा है, उन्हें ही वोट देने का अधिकार है
शुल्क जमा न करने पर मताधिकार सीज करने का नियम है।
कोर्ट का कहना
शुल्क जमा करने पर सदस्यता बहाल होगी लेकिन, मताधिकार नहीं मिल सकता है
अधिवक्ता दयाशंकर मिश्र ने बार के हित में चुनाव तारीख टालने और सदस्यों को शुल्क जमा करने की मोहलत मांगी।
आइके चतुर्वेदी और अशोक सिंह ने भी सदस्यों को शुल्क जमा करने की मोहलत देने की मांग की। रितेश श्रीवास्तव और विजय चंद्र श्रीवास्तव ने सात जजों की पीठ के आदेश की तरफ कोर्ट का ध्यान आकृष्ट कराया।
अंतरिम कमेटी के अध्यक्ष रविकांत का तर्क
सदस्यों को नोटिस न देकर वोट के अधिकार से वंचित किया गया है।
यदि समय दिया जाता है तो मतदाता सूची तैयार करने में समय लगेगा
इसलिए कार्यक्रम नए सिरे से तैयार किया जाए
वैसे भी 26 नवंबर को नगर निगम के चुनाव हैं। 24 नवंबर को पुलिस बल मिलने में परेशानी होगी।
वरिष्ठ अधिवक्ता वीसी मिश्र ने बार की स्वायत्ता पर बल देते हुए कहा कि कोर्ट एल्डर कमेटी को चुनाव कराने दे। उन्होंने याचिका के पक्षकार से अपना नाम हटाने की मांग की। इस पर कोर्ट ने कहा कि बाद में विचार होगा, अभी मताधिकार का मुद्दा है। कई अन्य वकीलों ने भी पक्ष रखा। सामान्य वकीलों की कोर्ट से मांग थी कि शुल्क जमा करने का समय दिया जाए।