इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि स्वतंत्रता संग्राम सेनानी की पेंशन स्वीकृत होने के बाद विवाहित पत्‍‌नी सेनानी आश्रित के रूप में पारिवारिक पेंशन पाने की हकदार नहीं है। कोर्ट ने सेनानी की पत्‍‌नी को पारिवारिक पेंशन देने से विभाग द्वारा इन्कार करने के आदेश को विधि सम्मत करार दिया है और याचिका खारिज कर दी है।

यह आदेश जस्टिस पंकज मित्तल और सरल श्रीवास्तव की खंडपीठ ने बागपत की श्रीमती रोशनी की याचिका पर दिया है। याचिका पर भारत सरकार के अधिवक्ता अरुण कुमार उपाध्याय ने प्रतिवाद किया। भारत सरकार के गृह मंत्रालय ने याची को पारिवारिक पेंशन देने से यह कहते हुए इन्कार कर दिया है कि 1980 की स्कीम के तहत पेंशन स्वीकृत होने के बाद यदि सेनानी ने शादी की है तो उस पत्‍‌नी को पारिवारिक पेंशन नहीं मिलेगी। इस आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी गयी थी। याची के पति करम सिंह को सेनानी पेंशन 1974 में स्वीकृत की गयी और याची की शादी इसके बाद हुई तथा 13 नवम्बर 1995 को विवाह पंजीकृत हुआ। विवाह प्रमाण पत्र में विवाह की अन्य कोई तिथि नहीं दी गयी। 1980 की पेंशन स्कीम के तहत सेनानी को जब 1974 से पेंशन मंजूर हुई उस समय याची उसकी विवाहित पत्‍‌नी नहीं थी। इसलिए उसे स्वतंत्रता सेनानी पेंशन पाने का अधिकार नहीं है। कोर्ट ने केन्द्र सरकार के आदेश में कोई गलती या अवैधानिकता न होने के आधार पर याचिका खारिज कर दी।