इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सरकार से पूछा, न्याय पालिका को अन्य विभागों की तुलना में कितना बजट आवंटन

पूर्ण पीठ ने राज्य सरकार से 22 अक्टूबर को मांगी जानकारी

अन्य विभागों की तुलना में न्याय पालिका को कितने फीसदी बजट दिया जाता है। सरकार कानून बना कर विशेष अदालतों की व्यवस्था तो कर देती है किन्तु कोर्ट व सुविधाएं नहीं देती। ऐसा क्यों है? यह सवाल इलाहाबाद हाई कोर्ट की पूर्ण पीठ ने राज्य सरकार से पूछा है और 22 अक्टूबर तक जवाब दाखिल करने को कहा है। पूर्ण पीठ प्रदेश की अधीनस्थ अदालतों में जजों एवं कोर्ट रूम की कमी को लेकर कायम जनहित याचिका की सुनवाई कर रही है।

जज देने को तैयार, बैठेंगे कहां

पूर्ण पीठ ने सुनवाई के दौरान कहा कि कोर्ट जज देने को तैयार है किन्तु उनके बैठे कर न्याय देने के लिए कमरे नहीं हैं और न ही स्टाफ है। मजबूत कोर्ट से कानून व्यवस्था सुदृढ़ हो सकती है। सरकार कानून बनाकर कोर्ट व इंफ्रास्ट्रक्चर की सुविधाएं देना भूल जाती है। एससी-एसटी एक्ट के तहत विशेष अदालतों की व्यवस्था की किन्तु अदालतें गठित नहीं हो सकीं। कमर्शियल व भूमि अधिग्रहण कानून की विशेष अदालतों के भवन, रिहायश व वाहन की व्यवस्था नहीं है, कोर्ट ने सभी मुद्दों पर राज्य सरकार से जानकारी मांगी है। याचिका की सुनवाई चीफ जस्टिस डीबी भोसले, जस्टिस गोविन्द माथुर और जस्टिस यशवंत वर्मा की पूर्णपीठ कर रही है।

अपर महाधिवक्ता मनीष गोयल ने कोर्ट को बताया

371 कोर्ट रूम जून 19 तक तैयार हो जायेंगे।

सरकार किराये पर मकान लेकर अदालतों की व्यवस्था पर विचार कर रही है

लोक सेवा आयोग के अधिवक्ता जीके सिंह ने बताया

610 न्यायिक अधिकारियों की भर्ती विज्ञापन निकाला गया।

20 मई 19 तक परिणाम घोषित कर दिया जायेगा।

कोर्ट की आपत्ति

जजों के प्रशिक्षण की पर्याप्त व्यवस्था नहीं है

लखनऊ व इलाहाबाद के झलवा में प्रशिक्षण केंद्र की व्यवस्था में तेजी लायी जाय

सभी नियुक्त जजों को एक साथ प्रशिक्षित करने की व्यवस्था की जाय

कानपुर में जर्जर खपरैल मकान में कामर्शियल कोर्ट बनाने पर आपत्ति की और छत्तीसगढ़ व राजस्थान का उदाहरण दिया।