सत्र न्यायालय के फैसले पर दो जजों की बेंच ने लगायी मुहर

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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने छपरौली, बागपत के अली मुहम्मद को हत्या के आरोप का दोषी करार देते सत्र न्यायालय द्वारा दी गयी आजीवन करावास की सजा को सही मानते हुए बहाल रखा है और कहा है कि हत्या के अपराध में आजीवन कारावास की सजा न्यूनतम सजा है। अभियोजन पक्ष घटनाक्रम व साक्ष्यों के आधार पर आरोप की पुष्टि करने में सफल रहा है। ऐसे में सुनायी गयी सजा पर हस्तक्षेप का कोई आधार नहीं है। आरोपी पर ट्यूबवेल पर खेत में सोये व्यक्ति को फायर कर मार डालने का पर्याप्त साक्ष्य उपलब्ध है।

सोते समय मारी थी गोली

यह आदेश जस्टिस सुधीर अग्रवाल तथा ओम प्रकाश की खण्डपीठ ने दिया है। नसीम अहमद ने प्राथमिकी दर्ज कराकर अपीलार्थी पर आरोप लगाया कि उसने 29 मई 2005 की रात 2 बजे खेत में सोये अली हसन की हत्या कर दी। जिसे दो लोगों ने टार्च की रोशनी में देखा था। परिस्थितिजन्य साक्ष्यों, गवाहों के बयानों के आधार पर अभियोजन पक्ष अपराध साबित करने में सफल रहा है। कोर्ट ने आदेश की प्रति जेल अधीक्षक को भेजने का निर्देश देते हुए अनुपालन रिपोर्ट मांगी है। अपील जेल से दाखिल की गयी थी, जिसमें सत्र न्यायालय बागपत के आजीवन कारावास व 500 के जुर्माने की सजा को चुनौती दी गयी थी।