इलाहाबाद (पीटीआई)। उत्तर प्रदेश के हाथरस मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाथरस कांड की पीड़िता के परिजनों द्वारा दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका को गुरुवार को खारिज कर दिया है। यह याचिका एक वाल्मीकि समुदाय संगठन द्वारा दायर की गई थी। जस्टिस प्रीतिंकर दिवाकर और प्रकाश पाडिया की पीठ ने अखिल भारतीय वाल्मीकि महापंचायत की याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि यह न्यायिक स्वामित्व के खिलाफ होगा जब सुप्रीम कोर्ट पहले ही इस मुद्दे पर संज्ञान ले चुका हो। सु्रपीम कोर्ट इस पूरे मामले की एक जनहित याचिका के तौर पर सुनवाई कर रहा है।

अब इस याचिका पर विचार करना उचित नहीं होगा

इस दाैरान जस्टिस प्रीतिंकर दिवाकर और प्रकाश पाडिया की पीठ ने कहा कि उत्तर प्रदेश सरकार को अपना रुख स्पष्ट करते हुए हलफनामा दाखिल करने का निर्देश पहले ही दिया जा चुका है। इसलिए उपरोक्त तथ्यों और इस मामले की परिस्थितियों को देखते हुए अब इस याचिका पर विचार करना उचित नहीं होगा। खासकर तब जब सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी निर्देश पर याचिकाकर्ताओं को सुरक्षा उपलब्ध कराई जा चुकी है।

परिवार के सदस्यों को उनके घर में सीमित कर दिया

पीठ ने कहा अगर याचिकाकर्ताओं को कोई शिकायत है, तो वे शीर्ष अदालत के समक्ष एक उचित याचिका दायर करने के लिए स्वतंत्र हैं। अखिल भारतीय वाल्मीकि महापंचायत ने बुधवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट में दावा किया कि हाथरस प्रशासन कथित सामूहिक दुष्कर्म पीड़िता के परिवार के सदस्यों को उनके घर में सीमित कर दिया है। उन्हें स्वतंत्र रूप से कहीं आने जाने की और लोगों से मिलने की अनुमति नहीं दे रहा है।

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