खतरे में 'सितारे'

Allahabad High Court judgement


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 Allahabad: ईश्वर करें नया साल इनके लिए शुरुआत में ही अशुभ न हो। क्योंकि, इनके कंधे पर सितारे बढ़े थे च्बहादुरीच् के आधार पर। सरकार ने खुद इनकी बहादुरी को सम्मानित करते हुए इनका ओहदा बढ़ाया था। लेकिन, चाहने मात्र से होता क्या है। मामला फंस गया है। एग्जैक्टली क्या होगा? यह तो वक्त और गवर्नमेंट का एक्शन तय करेगा लेकिन सिटी के चार कोतवाली में तैनात इंस्पेक्टर और देहात में तैनात एक दरोगा अपने पद पर आगे भी बने रहेंगे या डिमोट होकर पुराने पद पर लौटना पड़ जाएगा। ऐसा होगा हाइ कोर्ट इलाहाबाद के एक आदेश के चलते जो सोमवार को ही आया है.

जांच के लिए गठित करें कमेटी
इलाहाबाद हाइ कोर्ट ने मंडे को एक महत्वपूर्ण फैसले में प्रदेश में 2008 के बाद पुलिस विभाग में हुए आउट ऑफ टर्न प्रमोशन को अवैध करार दिया है। कोर्ट ने कहा है कि उत्तर प्रदेश (सिविल पुलिस) कांस्टेबल व हेड कांस्टेबल सर्विस रूल्स के प्रभाव में आने के बाद इसका कोई प्रावधान नहीं रह गया है। कोर्ट ने प्रमुख सचिव गृह उत्तर प्रदेश तथा डीजीपी उप्र लखनऊ को निर्देश दिया है कि इस मामले की जांच के लिए एक कमेटी गठित करें। कमेटी देखेगी कि पुलिस सेवा नियमावली आने के बाद कितने पुलिस अधिकारियों की आउट ऑफ टर्न प्रमोशन दिया गया है। इसके लिए कोर्ट ने छह महीने का समय दिया है। कोर्ट ने अवैध रूप से दिए गए प्रमोशन को वापस लेने का भी निर्देश दिया है, साथ ही यह भी कहा है कि ऐसा करने से पहले पक्षों को सुनवाई का पूरा मौका दिया जाए। यह आदेश न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल ने प्रेम कुमार उपाध्याय व अन्य की याचिकाओं पर दिया है. 

अनुचित लाभ न लेने पाए कोई
याचिकाओं में आउट ऑफ टर्न प्रमोशन दिए जाने की मांग की गई थी। याची के एडवोकेट विजय गौतम का कहना था कि पराक्रम दिखाने वाले पुलिस अधिकारियों को आउट ऑफ टर्न प्रमोशन पाने का अधिकार है। कोर्ट ने इसे नकार दिया कि पुलिस सेवा नियमावली के लागू होने के बाद ऐसी व्यवस्था नहीं है। कोर्ट ने सरकार से कहा है कि प्रमोशन पाए लोगों का पता लगाकर सरकार निर्णय ले ताकि वे इसका अनुचित लाभ अधिक समय तक न लेते रहें।  कोर्ट के संज्ञान में लाया गया कि 2 जनवरी 98 व 29 दिसम्बर 98 के शासनादेशों से आउट ऑफ टर्न प्रमोशन दी जाती रही है। इसके तहत विभाग में दो प्रतिशत पुलिसकर्मियों को आउट आफ टर्न प्रोन्नति का प्रावधान था और इसके लिए शर्तें भी तय की गई हैं। कोर्ट का कहना था कि जब सर्विस रूल्स बने हैं तो उसमें भी इसका जिक्र होना चाहिए था। शासनादेश सर्विस रूल्स पर प्रभावी नहीं होगा. 

Promotion पाकर बने कोतवाल 
बात इलाहाबाद की जाए तो यहां आउट आफ टर्न प्रमोशन पाने वालों की लम्बी लिस्ट है। कई तो कोतवाल  बन चुके हैं जिन्हें 2008 के बाद आउट आफ टर्न प्रमोशन मिला है। कुछ हेड कांस्टेबल भी हैं जिन्हें आउट आफ टर्न प्रमोशन मिलने के बाद सब इंस्पेक्टर बनाया गया है। सिविल लाइंस इंस्पेक्टर अमर नाथ यादव, धूमनगंज इंस्पेक्टर राम सूरत सोनकर, क्राइम ब्रांच इंस्पेक्टर मनोज रघुवंशी को 2008 के बाद आउट ऑफ टर्न के आधार पर इंस्पेक्टर बनाया गया है। सिविल लाइंस में बदमाशों के साथ मुठभेड़ में सब इंस्पेक्टर नागेन्द्र चौबे को लास्ट इयर प्रमोशन मिला था। वह वर्तमान समय में लखनऊ में क्राइम ब्रांच से जुड़े है। शहर कोतवाली के इंस्पेक्टर शैलेन्द्र सिंह को 2008 में प्रमोशन मिला था। हेड कांस्टेबल के रूप में एसएसपी ऑफिस में हेड पेशी रहे दुर्ग विजय सिंह को आउट आफ टर्न प्रमोशन मिल चुका है। वे ट्रेनिंग भी कर रहे है। कुछ इसी तरह मऊआइमा थाने में पोस्टेड सब इंस्पेक्टर जय प्रकाश शर्मा को हेड कांस्टेबल से प्रमोट करके सब इंस्पेक्टर बनाया गया है। प्रमोट किए गए पुलिस वालों ने कहा कि जरूरत पड़ी तो वे डबल बेंच में अपील करेंगे. 

जांच के लिए गठित करें कमेटी
इलाहाबाद हाइ कोर्ट ने मंडे को एक महत्वपूर्ण फैसले में प्रदेश में 2008 के बाद पुलिस विभाग में हुए आउट ऑफ टर्न प्रमोशन को अवैध करार दिया है। कोर्ट ने कहा है कि उत्तर प्रदेश (सिविल पुलिस) कांस्टेबल व हेड कांस्टेबल सर्विस रूल्स के प्रभाव में आने के बाद इसका कोई प्रावधान नहीं रह गया है। कोर्ट ने प्रमुख सचिव गृह उत्तर प्रदेश तथा डीजीपी उप्र लखनऊ को निर्देश दिया है कि इस मामले की जांच के लिए एक कमेटी गठित करें। कमेटी देखेगी कि पुलिस सेवा नियमावली आने के बाद कितने पुलिस अधिकारियों की आउट ऑफ टर्न प्रमोशन दिया गया है। इसके लिए कोर्ट ने छह महीने का समय दिया है। कोर्ट ने अवैध रूप से दिए गए प्रमोशन को वापस लेने का भी निर्देश दिया है, साथ ही यह भी कहा है कि ऐसा करने से पहले पक्षों को सुनवाई का पूरा मौका दिया जाए। यह आदेश न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल ने प्रेम कुमार उपाध्याय व अन्य की याचिकाओं पर दिया है. 

अनुचित लाभ न लेने पाए कोई
याचिकाओं में आउट ऑफ टर्न प्रमोशन दिए जाने की मांग की गई थी। याची के एडवोकेट विजय गौतम का कहना था कि पराक्रम दिखाने वाले पुलिस अधिकारियों को आउट ऑफ टर्न प्रमोशन पाने का अधिकार है। कोर्ट ने इसे नकार दिया कि पुलिस सेवा नियमावली के लागू होने के बाद ऐसी व्यवस्था नहीं है। कोर्ट ने सरकार से कहा है कि प्रमोशन पाए लोगों का पता लगाकर सरकार निर्णय ले ताकि वे इसका अनुचित लाभ अधिक समय तक न लेते रहें।  कोर्ट के संज्ञान में लाया गया कि 2 जनवरी 98 व 29 दिसम्बर 98 के शासनादेशों से आउट ऑफ टर्न प्रमोशन दी जाती रही है। इसके तहत विभाग में दो प्रतिशत पुलिसकर्मियों को आउट आफ टर्न प्रोन्नति का प्रावधान था और इसके लिए शर्तें भी तय की गई हैं। कोर्ट का कहना था कि जब सर्विस रूल्स बने हैं तो उसमें भी इसका जिक्र होना चाहिए था। शासनादेश सर्विस रूल्स पर प्रभावी नहीं होगा. 

Promotion पाकर बने कोतवाल 
बात इलाहाबाद की जाए तो यहां आउट आफ टर्न प्रमोशन पाने वालों की लम्बी लिस्ट है। कई तो कोतवाल  बन चुके हैं जिन्हें 2008 के बाद आउट आफ टर्न प्रमोशन मिला है। कुछ हेड कांस्टेबल भी हैं जिन्हें आउट आफ टर्न प्रमोशन मिलने के बाद सब इंस्पेक्टर बनाया गया है। सिविल लाइंस इंस्पेक्टर अमर नाथ यादव, धूमनगंज इंस्पेक्टर राम सूरत सोनकर, क्राइम ब्रांच इंस्पेक्टर मनोज रघुवंशी को 2008 के बाद आउट ऑफ टर्न के आधार पर इंस्पेक्टर बनाया गया है। सिविल लाइंस में बदमाशों के साथ मुठभेड़ में सब इंस्पेक्टर नागेन्द्र चौबे को लास्ट इयर प्रमोशन मिला था। वह वर्तमान समय में लखनऊ में क्राइम ब्रांच से जुड़े है। शहर कोतवाली के इंस्पेक्टर शैलेन्द्र सिंह को 2008 में प्रमोशन मिला था। हेड कांस्टेबल के रूप में एसएसपी ऑफिस में हेड पेशी रहे दुर्ग विजय सिंह को आउट आफ टर्न प्रमोशन मिल चुका है। वे ट्रेनिंग भी कर रहे है। कुछ इसी तरह मऊआइमा थाने में पोस्टेड सब इंस्पेक्टर जय प्रकाश शर्मा को हेड कांस्टेबल से प्रमोट करके सब इंस्पेक्टर बनाया गया है। प्रमोट किए गए पुलिस वालों ने कहा कि जरूरत पड़ी तो वे डबल बेंच में अपील करेंगे.