डिजिटलाइज्ड हो चुकी मुकदमो की फाइलें आनलाइन न करने से बढ़ी मुसीबत

तीन साल पहले निर्णित हो चुके मामलों की नकल पाना वादकारियों के लिए इन दिनो बेहद चैलेंजिंग हो गया है। आदेश की प्रतियों को डिजिटलाइज किया जा चुका है लेकिन इसे आनलाइन न किये जाने से मुसीबत दिन ब दिन बढ़ती जा रही है। इसके चलते एक क्लिक पर सालों पुराने रिकार्ड को देखने की हसरत फिलहाल सपना ही बनी हुई है।

मुंबई की कंपनी कर रही है काम

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने तीन साल पहले निर्णीत हो चुके मुकदमो के रिकार्ड संजोकर रखने से निजात पाने के लिए फाइलों को डिजिटलाइज्ड करने का फैसला लिया और मुंबई की स्टॉक होल्डिंग कम्पनी को इसकी जिम्मेदारी सौंपी गयी है। अभी तक कम्पनी ने 40 लाख फाइलें स्कैन कर चुकी है। यह काम न्यायाधीशों की कमेटी की निगरानी में हो रहा है। स्कैन हुई फाइलों को आनलाइन करने पर अभी निर्णय नहीं हो सका है। इसके चलते फाइलों का ढेर बढ़ता जा रहा है। हजारों अर्जियां विचाराधीन हैं।

तीन जजों की कमेटी की निगरानी

डिजिटलाइजेशन वर्क की निगरानी के लिए कई कमेटियां बनी। वर्तमान में जस्टिस विपिन सिन्हा, अंजनी कुमार मिश्र व एसडी सिंह की कमेटी की निगरानी में करोड़ों के खर्चे से फाइलों का डिजिटलाइजेशन वर्क तेजी से हो रहा है। डिजिटलाइज्ड फाइलों को ऑनलाइन न किये जाने से वकीलों व वादकारियों को भारी परेशानी उठानी पड़ रही है। बेतरतीब रखी फाइलों के अंबार से फाइलें निकाल पाना मुश्किल काम है। महानिबन्धक कार्यालय में पुराने निर्णित फाइलों के मुआयने या पारित आदेश की नकल या अदम पैरवी में खारिज हो चुकी याचिका को पुनस्र्थापित करने की हजारों की संख्या में अर्जियां लंबित हैं। इस ढेर के बीच से फाइल ढूढ़ने में महीनों कार्यालय के चक्कर लगाने पड़ रहे हैं। स्कैन फाइलें ऑनलाइन हो जाएं तो इस समस्या का समाधान मिल जाएगा।