23 साल पुराने केस में ट्रायल कोर्ट ने सुनाया फैसला, चार को सुनायी जाएगी सजा

तत्कालीन विधायक की हत्या में पहली बार इस्तेमाल हुई थी एके-47

PRAYAGRAJ: 23 साल दो महीने, 18 दिन के लम्बे अंतराल के बाद फाइनली तत्कालीन विधायक जवाहर यादव पंडित हत्याकांड में करवरिया ब्रदर्स को को ट्रायल कोर्ट ने दोषी पाया है। जांच ट्रांसफर, सुनवाई पर रोक, मुकदमा वापसी जैसे झंझावातों से जूझने वाले इस केस का फैसले के लिए 174 गवाही दोनों पक्षों की ओर से हुई। अभियोजन पक्ष ने सिर्फ 18 गवाहों को पेश किया जो हत्याकांड को साबित करने में सफल रहे। बचाव पक्ष की ओर से 156 गवाहों को पेश किया गया। गुरुवार को दो घंटे तक चली सुनवाई के बाद अपर सत्र न्यायाधीश पंचम बद्री विशाल पांडेय ने करवरिया ब्रदर्स को दोषी करार दे दिया। सभी को सजा चार नवंबर को सुनायी जायेगी।

सुबह से थी गहमागहमी

जवाहर पंडित हत्याकांड की सुनवाई एडीजे कोर्ट नंबर पांच में होनी थी। हाई प्रोफाइल केस होने के चलते सुबह से ही कोर्ट के बाहर गहमा-गहमी का माहौल था। यहां सुबह से ही दोनों पक्षों के लोग जुटे हुए थे। नैनी कारागार से आरोपियों करवरिया बंधुओं और रामचंद्र त्रिपाठी को अदालत में 1.50 बजे पेश किया गया। कोर्ट ने अपना फैसला सुना दिया लेकिन इसकी प्रति बचाव पक्ष के अधिवक्ता को 3.25 बजे मिली। बता दें कि सभी पक्षों की बहस और दलीलें सुनने के बाद ट्रायल कोर्ट ने 18 अक्टूबर को फैसला सुरक्षित कर लिया था। स्पेशल एमपी/एमएलए कोर्ट ने फैसला सुनाने के लिए 31 अक्टूबर की तारीख तय की थी। सपा विधायक जवाहर पंडित हत्याकांड के फैसले को लेकर उनकी पत्नी पूर्व विधायक विजमा यादव के साथ ही उनके बच्चों और समर्थकों की भी निगाहें लगी हुई थीं।

पांच आरोपी, एक की हो चुकी है मौत

जवाहर पंडित हत्याकांड में पूर्व सांसद कपिलमुनि करवरिया, उनके भाई पूर्व विधायक उदयभान करवरिया, पूर्व एमएलसी सूरजभान करवरिया और चचेरे भाई रामचंद्र त्रिपाठी आरोपी हैं। यह सभी पिछले कई साल से नैनी कारागार में बंद हैं। इस मामले में एक अन्य आरोपित श्याम नारायण करवरिया उर्फ मौला की मौत हो चुकी है। बता दें कि इस केस में भाजपा के वरिष्ठ नेता रहे और मौजूदा समय में राजस्थान के गवर्नर कलराज मिश्रा की भी गवाही हो चुकी है।

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13

अगस्त 1996 को हुई थी विधायक जवाहर पंडित की हत्या।

18

अक्टूबर को पूरी हुई थी इस केस की सुनवाई।

23

साल से ज्यादा चली सुनवाई पूरी हुई तो कोर्ट ने सुरक्षित रखा था फैसला।

18

गवाह अभियोजन की ओर से कोर्ट में किए गए पेश।

156

गवाह बचाव पक्ष ने कोर्ट में पेश कर की थी बहस।

224

पेज का फैसला लिखवाया है कोर्ट ने

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दहल उठा था सिविल लाइंस

-सिविल लाइंस बाजार स्थित पैलेस सिनेमा के पास घटना को अंजाम दिया गया था।

-इस घटना में एके-47 इस्तेमाल की गई थी। तबके लिए यह बहुत बड़ी बात थी।

-विधायक जवाहर पंडित, ड्राइवर गुलाब यादव, राहगीर कमल कुमार दीक्षित की मौके पर ही मौत हो गई थी।

-इस घटना में पंकज कुमार श्रीवास्तव और कल्लन यादव भी घायल हो गए थे।

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सुलाकी थे चश्मदीद गवाह

-विधायक जवाहर पंडित के सगे भाई सुलाकी यादव मामले में चश्मदीद गवाह थे। उन्होंने सिविल लाइंस थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई थी।

-तहरीर में बताया था कि मेरे भाई जवाहर पंडित से कपिल मुनि करवरिया व उनके परिवार के लोगों से रंजिश है।

-यह लोग उनकी हत्या के लिए पीछे पड़े थे, सुरक्षा मांगने के बावजूद शासन से उन्हें मदद नहीं मिली।

-वारदात के वक्त सफेद कलर की जीप और मारुति कार का प्रयोग कपिल मुनि करवरिया, उदयभान करवरिया व सूरजभान करवरिया, रामचंद्र मिश्र और श्याम नारायण करवरिया उर्फ मौला ने किया था।

-रामचंद्र मिश्र के ललकारने पर अभियुक्तों ने फायर झोंका, इससे मेरे भाई व दो लोगों की मौत हो गई, हमलावर भाग निकले।

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परिणाम नहीं जान सकेंगे सुलाकी

जवाहर पंडित हत्याकांड की विवेचना स्थानीय पुलिस ने की।

इसके बाद सीबीसीआईडी ने भी विवेचना की।

आखिरी बार की विवेचना में सीबीसीआईडी ने 20 जनवरी 2004 को पेश किया था।

इस बीच सुलाकी यादव को कई मर्तबा गवाही के लिए बुलाया गया। उनकी गवाही रिकार्ड की गई।

कोर्ट में भी सुलाकी यादव गवाही दर्ज कराई तथा अभियुक्तों की पहचान भी की थी।

इस बीच बीमारी के कारण सुलाकी का निधन हो गया।

अब इस केस का परिणाम सुनने के लिए वह इस दुनिया में नहीं रहे।

क्या कहती है सीआरपीसी की धारा-321

इसके अभियोजन पक्ष सार्वजनिक हित में मुकदमा वापस लेने की अर्जी दाखिल करता है

इसके लिए सरकारी वकील सरकार से स्वीकृति लेता है

वह कोर्ट में दलील पेश करता है कि सार्वजनिक हित में मुकदमा चलाना ठीक नहीं है। लिहाजा केस वापस लेने की अनुमति दी जाए

अदालत सरकारी वकील की दलीलों से संतुष्ट होती है, तभी वह मुकदमा वापस लेने की अनुमति देती है।

सरकारी पक्ष की दलीलों से अदालत संतुष्ट नहीं है तो वह मुकदमा वापस लेने की अर्जी को ठुकरा सकती है।

क्या हुआ करवरिया ब्रदर्स केस में

सरकारी वकील की रिपोर्ट के आधार पर योगी सरकार ने करवारिया बंधुओं के खिलाफ दर्ज मुकदमा सार्वजनिक हित में वापस लेने का फैसला लिया

सीआरपीसी की धारा 321 के तहत कोर्ट में मुकदमा वापस लेने के लिए अर्जी दाखिल की गयी

लोअर कोर्ट में मुकदमा वापस लेने की अर्जी पर सुनवाई के दौरान विजमा पक्ष ने मजबूती से अपना पक्ष रखा

गवाही पूरी हो जाने के बाद मुकदमा वापस लिये जाने को उन्होंने सार्वजनिक हित मानने से इंकार कर दिया

बहस सुनने के बाद ट्रायल कोर्ट ने मुकदमा वापस लेने के सरकार के फैसले को ठुकरा दिया।

करवरिया बंधुओं की ओर से ट्रायल कोर्ट के फैसले को हाई कोर्ट में चैलेंज किया गया

चीफ जस्टिस गोविंद माथुर की बेंच ने सुनवाई के याचिका पर 19 जुलाई 2019 को अपना फैसला सुनाया

हाई कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के फैसले को सही ठहराते हुए याचिका खारिज कर दी

कौन हैं करवरिया ब्रदर्स

करवरिया ब्रदर्स के रूप में जाने जाने वाले परिवार में कपिल मुनी करवरिया, सूरज भान करवरिया और उदयभान करवरिया सगे भाई हैं। ये मूल रूप से मंझनपुर तहसील के चक गांव के रहने वाले हैं। इनके पिता का नाम वशिष्ठ नारायण करवरिया है। तीनो भाइयों के जन्म के समय यह इलाहाबाद का हिस्सा हुआ करता था। बाद में कौशांबी सेपरेट जिला बन गया तो मंझनपुर जिला मुख्यालय हो गया।

संक्षिप्त परिचय कपिल मुनी करवरिया

2 मार्च 1967 को जन्मे कपिलमुनी करवरिया के जरिये ही करवरिया फैमिली ने राजनीति में दस्तक दी। कपिलमुनी वर्ष 2000 में कौशांबी जिला पंचायत के सदस्य और फिर अध्यक्ष बने। पांच साल तक जिला पंचायत अध्यक्ष की कुर्सी संभालने के बाद उन्होंने बसपा के टिकट पर 2009 में फूलपुर लोकसभा निर्वाचन क्षत्र से किस्मत आजमायी। तकदीर का साथ मिलने के बाद वह सांसद बनकर लोकसभा पहुंच गये। उन्होंने इसी सीट से 2014 में भी लोकसभा चुनाव लड़ा लेकिन कौशांबी के ही रहने वाले वर्तमान समय में यूपी के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्या ने उन्हें करारी शिकस्त दी। 28 अप्रैल 2015 से वह जेल में बंद हैं। कल्याणी देवी एरिया में रहने वाले कपिलमुनी करवरिया इलाहाबाद में सबसे बड़ी रामलीला की आयोजक संस्था पथरचट्टी रामलीला कमेटी के लम्बे समय तक अध्यक्ष रहे।

संक्षिप्त परिचय सूरजभान करवरिया

सूरजभान करवरिया राजनीति में सक्रिय तो हुए लेकिन अपना मूल निवास नहीं छोड़ा। वह भी कौशांबी के जिला पंचायत अध्यक्ष पद पर निर्वाचित हुए। इसके अलावा वह विधान परिषद सदस्य भी रह चुके हैं। 28 अप्रैल 2015 को वह जेल गये। इसके बाद से वह जेल में हैं। करीब चार साल से अधिक समय से जेल में बंद रहने के चलते राजनीति से भी उनकी दूरी बन गयी है।

संक्षिप्त परिचय उदयभान करवरिया

भारतीय जनता पार्टी से जुड़ कर उन्होंने राजनीति में कदम रखा। बारा निर्वाचन क्षेत्र को अपनी कर्मभूमि के रूप में चुना। यहां की जनता से उन्हें स्नेह भी भरपूर मिला। जनता ने उन्हें 2002 से 2012 तक विधायक चुनकर भेजा। इसके बाद यह सीट सुरक्षित हो गयी तो उन्हें ठिकाना बदलना पड़ गया। उन्होंने शहर उत्तरी विधानसभा सीट से किस्मत आजमायी लेकिन पब्लिक ने नकार दिया। वह 1 जनवरी 2014 से जेल में हैं। उनकी राजनीति विरासत वर्तमान समय में उनकी पत्‍‌नी नीलम करवरिया संभाल रही हैं। वह मेजा से भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर विधायक हैं।

इन धाराओं में आरोप सिद्ध

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302

3077/149

7 क्रिमिनल लॉ अमेंडमेंट एक्ट

मुझे ईश्वर के साथ न्याय व्यवस्था पर पूरा भरोसा था। 23 साल का समय लग गया लेकिन अंतत: न्याय हुआ है।

विजमा यादव,

पूर्व विधायक पत्‍‌नी जवाहर यादव 'पंडित'

कौन थे जवाहर यादव पंडित

जवाहर यादव पंडित मूल रूप से जौनपुर जिले के बक्शा ब्लाक के खैरपारा गांव के रहने वाले थे। उनकी शादी विजमा यादव के साथ हुई थी। वह राजनीति में सक्रिय थे। 1996 में फूलपुर विधानसभा को झूंसी के नाम से जाना जाता था। जवाहर पंडित यहां से दूसरे प्रयास में चुनाव जीते थे। हत्या के समय वह झूंसी सीट से विधायक थे। पत्‍‌नी विजमा यादव बताती हैं कि उन्हें सुहाग का जोड़ा सिर्फ छह साल के लिए नसीब हुआ था। पति की हत्या हुई तब बड़ी बेटी की उम्र सिर्फ साढ़े तीन साल थी। दूसरे नंबर का बेटा ढाई साल का था और सबसे छोटी बेटी सिर्फ दस माह की थी। ऐसे वक्त में पति का साया सिर से उठ जाने के बाद सरवाइल के लिए लम्बा संघर्ष करना पड़ा। अब ईश्वर ने सब ठीक कर दिया है। विजमा यादव के अनुसार उनके पति की हत्या सिर्फ मजलूमों की आवाज बनकर उभरने के चलते की गयी थी।