-पद्मश्री विष्णु श्रीधर वाकणकर के जन्म शताब्दी समारोह पर आयोजित हुआ राष्ट्रीय कवि सम्मेलन

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PRAYAGRAJ: 'प्रेम का शहर हो या गांव बचाए रखना, अपनी इंसानियत का भाव बनाए रखना, देश खुशहाल रहे काम यही करना है, फैसला जो भी सद्भाव बनाए रखना.' फेमस कवि शैलेन्द्र मधुर की इस कविता ने लोगों को राम मंदिर पर आने वाले किसी भी फैसले के बाद भी आपस में सौहार्द बनाने के प्रोत्साहित किया। मौका था पद्मश्री विष्णु श्रीधर वाकणकर के जन्म शताब्दी समारोह के मौके पर हुए राष्ट्रीय कवि सम्मेलन का। इस मौके पर कवियों ने रचनाओं के प्रवाह में लोगों को गोते लगाने के लिए मजबूर कर दिया।

'मैं अपने दिल की धड़कन में तिरंगा ले के चलती हूं'

हिन्दुस्तानी एकेडमी के सभागार में आयोजित कवि सम्मेलन की शुरुआत कवि योगेन्द्र मिश्र की रचनाओं से हुई। इसमें उन्होंने प्रेम और सद्भाव की बात करते हुए सुनाया, 'अमरदीप की तरह जलो तुम, मत बुझना तूफानों में। बढ़ते रहना रुक मत जाना जग वालों के तानों से.' इस दौरान नई दिल्ली से आई डॉ। अंजना सेंगर ने 'वतन से प्यार करने का मेरा जज्बा निराला है, मैं अपने दिल की धड़कन में तिरंगा ले के चलती हूं.' सुनाया। अयोध्या से आए जमुना प्रसाद उपाध्याय ने तीखे व्यंग्य में बुनी गजलें सुनाई। उन्होंने कहा कि 'हजारों योजनाओं के यहां बादल उमड़ते हैं, सबब क्या है कि इन फसलों का पीलापन नहीं जाता.' अध्यक्षीय काव्यपाठ करते हुए वरिष्ठ गीतकार सुधांशु उपाध्याय ने 'यहां झूठ की हरदम परदेदारी चलती है, चोरों की चौकस चौकीदारी चलती है.' सुनाया। संचालन शैलेन्द्र मधुर ने किया। इससे पूर्व संस्कार भारती के संस्थापक/संरक्षक पद्मश्री बाबा योगेन्द्र, चीफ गेस्ट पूर्व राज्यपाल केशरी नाथ त्रिपाठी, अध्यक्ष कल्पना सहाय ने दीप जलाकर कवि सम्मेलन का उद्घाटन किया।