प्रयागराज के लोगों ने लॉकडाउन को लेकर जाहिर किए अपने विचार

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कोरोना वायरस ने पूरे देश को लॉकडाउन कर रखा है। संक्रमण की आशंका से हर कोई डरा हुआ है। सड़कें वीरान हैं और मार्केट में इक्का-दुक्का लोग दिखाई दे रहे हैं। हालात को देखकर लग रहा है कि जैसे 'आपातकाल' लागू हो गया है। इसी मुद्दे को लेकर दैनिक जागरण-आई नेक्स्ट ने उन लोगों से बातचीत की जो आपातकाल और कफ्र्यू को देख चुके हैं।

फिर कभी न आए ऐसा समय

1975 में पिता के साथ सरकार पर गुस्सा दिखाने-जताने में शामिल रहा करता था। हम सत्ता की कारगुजारियों से त्रस्त थे। पिता भूमिगत थे और हम घरों में डरे-सहमेआलमोस्ट कैद थे। 1984 में सत्ता का दंभ था और कहीं न कहीं नातेदारी से जुड़ी एक कौम की हिफाजत की चिंता थी। 1992 के कफ्र्यू को हमने अपनी युवा अवस्था में देखा। मैं एक ऐसे मोहल्ले में था, जहां अर्धसैनिक बल लगाए गए थे.मुझे याद है कि हमने खूब नया लिखा, खूब नया बनाया खाया। एक बार हम फिर घरों में कैद हैं। एक अजीब सी चिंता और दुख है। हमारे पास ढेर सारे अखबार, टीवी न्यूज चैनल, सोशल मीडिया, इंटरनेट है, पर बहुत अकेला हो जाने सा अहसास हो रहा है। इतना अकेलापन कभी नहीं रहा।

धनंजय चोपड़ा,

प्रभारी, सेंटर ऑफ मीडिया स्टडीज, इलाहाबाद यूनिवर्सिटीे

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इस तरह आफिस बंद करने की नहीं दिखी कभी नौबत

1947 से देश में कई बार आपातकाल जैसी स्थिति को देखने वाले रामबालक पांडेय एजी आफिस के वरिष्ठ लेखाकार पद से रिटायर्ड हैं। कहते हैं कि आज के जैसे हालात कभी नहीं देखे थे। 1965 के वार के समय गांव खाली कराए गए थे। चार महीने बाद लोगों की अपने गांव में वापसी हुई थी। 1971 वॉर के समय काफी बदलाव हो चुका था। उस समय भी देश में लगभग आपातकाल की स्थिति जैसे ही हालात थे। लेकिन आराम से ऑफिस जाते थे। 1975 में आपातकाल की घोषणा के बाद भी ऐसी स्थिति नहीं बनी थी कि कोई ऑफिस आदि नहीं आ सकता था। एहतियातन पास भी जारी किये गये थे। आज के जैसी स्थिति कभी देखने को नहीं मिली। लोगों में ऐसी दहशत है कि कोई किसी से हाथ तक मिलाने को तैयार नहीं। आज के हालात को लेकर जिस प्रकार पीएम मोदी ने आह्वान किया, ठीक उसी प्रकार का आह्वान पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने भी किया था। शास्त्री जी ने कहा था कि एक दिन देश के सभी नागरिक अन्न ग्रहण ना करें। आज भी वह दिन याद है।

-रामबालक पांडेय,

रिटायर्ड एजी ऑफिस