-मासूमों को सेक्स एजुकेशन के प्रति अवेयर करने के लिए शुरू किया गया अभियान
-ओपीडी में लगातार आ रहे थे मामले, प्रयागराज ने लिया इनीशिएटिव
PRAYAGRAJ: यह वाकई सच है। बच्चे अपने दिल की बात सभी से नहीं कह पाते। अगर कोई उनके साथ चाइल्ड एब्यूज (बाल यौन शोषण) की कोशिश करता है तो वह घबरा जाते हैं। उन्हें कुछ समझ नहीं आता। अक्सर वह डरे और सहमे से रहते हैं। अगर आपके बच्चों के साथ भी ऐसा कुछ हो रहा है नजरअंदाज मत कीजिए। मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम के तहत डॉक्टर्स और मनोवैज्ञानिक से संपर्क कर सकते हैं।
प्रयागराज ने शुरू किया कार्यक्रम
देशभर में बच्चों के साथ लगातार बढ़ रही चाइल्ड एब्यूज की घटनाओं पर लगाम लगाने की जिम्मेदारी सर्वप्रथम प्रयागराज ने उठाई है। मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम के तहत गुड एंड बैड टच कार्यक्रम की शुरुआत की गई है। अब तक तीन स्कूलों के बच्चों को इसकी जानकारी दी गई है। उन्हें मनोचिकित्सक और मनोवैज्ञानिकों ने बताया कि शरीर के किस अंग पर किस तरह का स्पर्श सही या गलत है। अगर ऐसा किसी ने किया तो तत्काल पैरेंट्स से बताएं।
क्या कहते हैं आंकड़े
24212
एक जनवरी 2019 से 30 जून 2019 तक इंडिया में चाइल्ड एब्यूज के मामले
01
मामला दर्ज हो रहा है प्रति पांच मिनट में चाइल्ड एब्यूज का
01
नंबर पर है चाइल्ड एब्यूज में यूपी द बैटर इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार
85
फीसदी घटनाओं में घर या जान-पहचान के लोग हैं शामिल
39
फीसदी मामलों में गलत पाए गए रिश्तेदार
90
फीसदी मामलों में चाइल्ड एब्यूज की नहीं दर्ज कराई गई रिपोर्ट
ऐसे पहचानें चाइल्ड एब्यूज
-खिलौनों के साथ अजीब सा खेल खेलना।
-रात को डरावने सपने आना या नींद में चौंकना।
-अकेले में खुद को बंद रखना।
-व्यक्तित्व और मिजाज में अजीब सा परिवर्तन।
-किसी व्यक्ति विशेष से डरकर रहना।
-बच्चों के पास से अननोन सोर्सेज से गिफ्ट होना।
-खुद को चोट पहुंचाना।
-प्राइवेट पार्ट्स पर चोट के निशान।
नहीं ध्यान दिया तो यह होगा परिणाम
-चाइल्ड एब्यूज का शिकार बच्चे पोस्ट ट्रामैटिक स्ट्रेस डिसार्डर, एंजाइटी डिसआर्डर, डिप्रेशन, सुसाइड आदि।
-भविष्य में यह बच्चे नशे या डिप्रेशन के शिकार हो सकते हैं।
ओपीडी में कई ऐसे मामले सामने आते हैं। जब पैरेंट्स बताते हैं उनका बच्चा अचानक शांत हो गया या किसी से बातचीत नहीं करता है। कई बच्चे ठीक से बता भी नही पाते। लेकिन उनकी हरकतों से मामले की जानकारी हो जाती है। गुड एंड बैड टच के तहत हर महीने कम से कम एक स्कूल में जाकर बच्चों को अवेयर किया जा रहा है।
-डॉ। ईशान्या राज, नैदानिक मनोवैज्ञानिक, काल्विन हॉस्पिटल
जिन बच्चों को काउंसिलिंग से आराम नहीं मिलता है उनका इलाज भी किया जाता है। सामाजिक विकृति और लोगों में मन जन्म ले रही कुंठा के चलते वह ऐसी हरकतें करते हैं। ऐसे लोगों से बच्चों को बचाकर रखने की जरूरत है। घर में आने-जाने वालों पर भी नजर रखें।
-डॉ। राकेश पासवान, मनोचिकित्सक, काल्विन हॉस्पिटल