रिपोर्टर : मुझे एंबुलेंस चाहिए.
एंबुलेंस चालक : पेशेंट कहां है भईया?
रिपोर्टर : पेशेंट नहीं है, तभी तो एंबुलेंस चाहिए.
एंबुलेंस चालक : मैं कुछ समझा नहीं.
रिपोर्टर : अरे कुछ नहीं, बस कुछ कार्टन हाजीपुर भेजना है.
एंबुलेंस चालक : पेशेंट के बदले कार्टन?
रिपोर्टर : एंबुलेंस को कोई रोकता नहीं है, इसलिए बोल रहे हैं।
एंबुलेंस चालक : लगता है, दो नंबर का माल है।
रिपोर्टर : अरे नहीं, दो नंबर का नहीं है, पर एक नंबर वाला भी नहीं है.
एंबुलेंस चालक : तो, माल क्या है?
रिपोर्टर : तभी सरोज ने दूसरे एंबुलेंस वाले बंटी को बुलाकर कहा, भईया का माल पहुंचाना है।
बंटी : कोई बात नहीं, मैं पहुंचा दूंगा। एक आदमी को साथ में चलना होगा। घबराइए नहीं, मेरे एंबुलेंस में पर्दा भी लगा हुआ है।
रिपोर्टर : गांधी सेतु पर तो कोई रोकेगा नहीं ना?
अरे एंबुलेंस से जा रहे हैं, कोई नहीं रोकेगा। कई लोगों का सामान लेकर गया हूं। हां, पर पैसा अधिक लगेगा। बोतल है तो वह भी चाहिए। माल पहुंचाने के बाद फौरन निकल जाऊंगा.

इन्हें बस पैसे मतलब रहता है
अपने शहर में सैकड़ों एंबुलेंस चलती हैं। इनमें से कुछ ऐसी हैं, जिनसे
पिछले तीन सालों से जिंदा या मुर्दा लोगों के अलावा 'सामान' को भी ढोया जा रहा है। इनके ड्राइवर के अनुसार जरूरत पडऩे पर एंबुलेंस का ल्यूमैक हटा दिया जाता है, वरना ऐसे ही चलती हैं। ये वो एंबुलेंस हैं, जो पीएमसीएच कैंपस में लगी रहती हैं। यहां की सुविधाओं के आधार पर ही इधर-उधर जाती रहती हैं। इनलोगों से इस बात से कोई लेना-देना नहीं कि एंबुलेंस में पेशेंट जा रहा है या नहीं, इन्हें बस पैसे मतलब रहता है। पेशेंट को ले जाने का रेट और सामान को ले जाने के रेट में दो से तीन गुणा का अंतर होता है। हमने जब कुछ सामान हाजीपुर ले जाने की बात की, तो साढ़े चार हजार रुपए में मामला फिट हो गया। हमें सेफ्टी भी दी गई और एंबुलेंस में हरा पर्दा लगा दिया गया।

एंबुलेंस के पास हर मर्ज की दवा
शहर के बाहर एनएच से लेकर आसपास के एरियाज में आने वाली बसों व गाडिय़ों पर इन एंबुलेंस वालों की नजर होती है। यह किसी न किसी प्राइवेट नर्सिंग होम से जुड़े होते हैं। इनका काम एनएच पर पेशेंट की बीमारी को सुनकर ठीक हो जाने का आश्वासन देना और फिर जल्दी से उठाकर अपने निजी नर्सिंग होम लेकर आ जाना। इस काम के लिए पेशेंट के हिसाब से तीस से पांच सौ रुपए एक्स्ट्रा दिया जाता है। सिर्फ पीएमसीएच में ही चार से पांच सौ एंबुलेंस लगी रहती हैं। सौ से अधिक एनएमसीएच और आईजीआईएमएस कैंपस में भी दिख जाती हैं। वहीं, डिस्ट्रिक्ट ट्रांसपोर्ट ऑफिसर के पास सिर्फ साढ़े सात सौ एंबुलेंस का रजिस्ट्रेशन ही अवेलेबल है। आखिर इतनी ज्यादा एंबुलेंस कैसे चल रही हैं, पर अफसोस इसकी जानकारी किसी के पास नहीं है.

फिट रखने के लिए 'अनफिट' एंबुलेंस
आपको जानकर हैरत होगी कि शहर में चलने वाले एंबुलेंस पूरी तरह से फिट नहीं हैं। बॉडी फिटनेस के अलावा यह एमसीआई के नॉम्र्स का भी फॉलो पालन नहीं करता है। इसके तहत कम से ऑक्सीजन सिलेंडर, लाइव सेविंग ड्रग्स, गद्देदार बेड व नर्सिंग स्टॉफ तो होने ही चाहिए, पर इनमें एक ऑक्सीजन सिलेंडर तक मौजूद नहीं रहता.

और वैन बन जाता है एंबुलेंस
प्राइवेट नर्सिंग होम में जिस एंबुलेंस का यूज होता है, एक्चुअली वह अस्पताल का वैन होता है। वैन के खराब व डैमेज होते ही इसे एंबुलेंस बना दिया जाता है. 

रास्ते भर होती है परेशानी
एक भी एंबुलेंस अप टू मार्क नहीं होने की वजह से सड़कों पर उछलती-कूदती जाती है। इस कारण बेड पर सोया पेशेंट और सीट पर बैठे अटेंडेंट की हालत खराब हो जाती है। इलाज के नाम पर ये लूटते हैं और लोग लुटाते चले जाते हैं.

Straight Forward
आपने लास्ट टाइम एंबुलेंस कब चेक किया?
- कभी नहीं। मुझे याद नहीं है कि एंबुलेंस को चलते हुए कभी रोका गया हो.
तो कैसे होता है काम? 
- हमलोग एंबुलेंस को फिटनेस देखने के ख्याल से चेक करते हैं, जो नियत जगह पर ही देखा जाता है.
शहर की एंबुलेंस फिट है?
 -पूरी तरह से तो नहीं कहा जा सकता है, लेकिन यह कहने में भी गुरेज नहीं है कि अनफिट की संख्या कम नहीं होगी.
आपको पता है कि इसमें शराब और हथियार भी ढोए जा रहे हैं.
- देखिए, यह हमलोगों का काम नहीं है। चेकिंग के दौरान कभी निकल गया, तो ठीक, वरना हमलोग चेक नहीं करते। यह काम पुलिस का है, पर कंप्लेन करने पर डीटीओ भी नजर रख सकता है.
दिनेश राय, डीटीओ

आपलोगों ने कभी भी एंबुलेंस की चेकिंग की है?
- शहर में चलने वाली प्राइवेट एंबुलेंस से हमारा कोई लेना-देना नहीं है। इसके लिए कोई गाइड लाइन भी नहीं दी गई है।
प्राइवेट नर्सिंग होम वाले भी चलाते हैं.
- मेरे पास नर्सिंग होम एक्ट ही नहीं है, तो फिर वो जो चलाएं, उससे मेरा कोई लेना नहीं है।
पर, शहर की मेडिकल व्यवस्था तो आपके हाथों में है.
- मैं छापेमारी करने में असमर्थ हूं। मैं नहीं कर सकता हूं। मैं अपने 23 एंबुलेंस के प्रति ही उत्तरदायी हूं.
वैन का यूज एंबुलेंस बनाकर किया जा रहा है.
डॉ। लखींद्र प्रसाद, सिविल सर्जन

Report By Shashi Raman