दुनिया भर में चरमपंथ की स्थिति पर जारी अपनी सालाना रिपोर्ट में अमरीकी विदेश मंत्रालय का कहना है लश्करे तैबा पाकिस्तान में खुलेआम प्रशिक्षण कैंप चला रहा है और रैलियां निकाल रहा है.

रिपोर्ट के अनुसार ये गुट पाकिस्तान में तो पैसा जुटा ही रहा है, उसे खाड़ी और मध्यपूर्व के देशों और यूरोप से भी आर्थिक मदद मिल रही है. पाकिस्तानी मीडिया में इश्तिहार के ज़रिए भी वो चंदे की अपील करता है.

विदेश विभाग का कहना है कि लश्करे तैबा क्षेत्र में पहले से ही नाज़ुक आपसी रिश्तों में भारी तनाव पैदा कर सकता है.

'शीर्ष नेता सुरक्षित'

इस रिपोर्ट के अनुसार अफ़गानिस्तान और पाकिस्तान में अल क़ायदा काफ़ी कमज़ोर हुआ है लेकिन उसके शीर्ष नेता अभी भी उसी इलाके के सुरक्षित पनाहगाहों से काम कर रहे हैं.

अल क़ायदा के तार तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान और हक्कानी नेटवर्क के साथ जुड़े हुए हैं और इन संगठनों ने घनी आबादी वाले इलाकों, सरकारी प्रतिनिधियों और अमरीकी नागिरकों पर निशाना लगाना जारी रखा है.

लश्करे तैबा के ख़िलाफ़ पाक में कोई कार्रवाई नहीं: अमरीका

रिपोर्ट का कहना है कि अफ़गान तालिबान और हक्कानी नेटवर्क को अभी भी पाकिस्तान में सुरक्षित पनाहगाह हासिल है और इन गुटों के ख़िलाफ़ पाकिस्तानी अधिकारियों ने कुछ ख़ास फ़ौजी या क़ानूनी कार्रवाई नहीं की है.

'अदालतों की धीमी रफ़्तार'

पाकिस्तान सरकार के बारे में विदेश विभाग की इस रिपोर्ट का कहना है कि वो आतंकवाद के ख़िलाफ़ कई नए क़ानून लागू करने की कोशिश कर रही है लेकिन आतंकवाद और दूसरे जुर्म के ख़िलाफ़ अदालतों की रफ़्तार बेहद धीमी है.

रिपोर्ट के अनुसार आतंकवाद विरोधी अदालतों में गवाहों, वकीलों, जजों और पुलिस को चरमपंथियों की तरफ़ से डराया-धमकाया जाता है. इन मामलों में अदालत की रफ़्तार धीमी होने और संदिग्धों के अक्सर बरी हो जाने की ये एक बड़ी वजह है.

जिन संगठनों को संयुक्त राष्ट्र ने आतंकवादी संगठन घोषित कर रखा है वो भी बड़ी आसानी अपने नाम बदलकर किसी भी तरह की पाबंदियों से बच निकलते हैं.

पिछले एक साल में इन पर रोक लगाने के लिए पाकिस्तान ने कदम उठाए हैं लेकिन अंतरराष्ट्रीय क़ानून के तहत आतंकवादी संगठनों की जमा-पूंजी ज़ब्त करने की कार्रवाई धीमी रही है.

अमरीकी विदेश विभाग हर साल कांग्रेस के सामने आतंकवाद की स्थिति पर एक रिपोर्ट पेश करता है.

चरमपंथ का बदलता चेहरा

बुधवार को जारी इस रिपोर्ट में कहा गया है कि पूरी दुनिया में आतंकवाद का चेहरा बदल रहा है क्योंकि अल क़ायदा और उससे जुड़े संगठन अब और ज़्यादा हिंसक हो रहे हैं और साथ ही सीरिया में आतंकवादियों की एक नई पीढ़ी सामने आ रही है.

रिपोर्ट के अनुसार नए स्थानीय गुट केंद्रीय नेतृत्व की भी नहीं सुन रहे हैं और कई ऐसे मामले सामने आए हैं जिनमें अल क़ायदा नेता अएमन अल ज़वाहिरी के आदेश को भी अनदेखा किया गया है.

रिपोर्ट के अनुसार 2013 में पूरी दुनिया में 9,700 चरमपंथी घटनाएं हुईं जो 2012 के मुक़ाबले 43 प्रतिशत ज़्यादा थीं.

इन हमलों में 17,800 लोग मारे गए लेकिन ये ज़्यादातर हमले छोटे थे और स्थानीय गुटों की तरफ़ से किए गए थे.

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