नई दिल्ली (एएनआई)। नागरिकता संशोधन बिल (Citizen Amendment Bill)& केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह लोकसभा में पेश किया है। इस पर बहस जारी है। इस बिल के पारित होने के बाद पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से गैर-मुस्लिम शरणार्थियों को भारतीय नागरिकता मिल सकेगी। इस बिल के माध्यम से हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई समुदायों के उन सदस्यों को भारतीय नागरिकता प्रदान की जाएगी, जो 31 दिसंबर 2014 तक भारत में आए हैं और धार्मिक उत्पीड़न का सामना कर रहे हैं। इसके अलावा देश में उन्हें अवैध अप्रवासियों के रूप में देखा जा रहा है। यह बिल विवादों में घिरा है, जबकि बीजेपी ने इसे 2014 और 2019 में अपने चुनावी वादे का हिस्सा बनाया था।

मिली-जुली प्रतिक्रियाओं को जन्म दिया

इस बिल ने समाज के विभिन्न वर्गों और राजनीतिक दलों से मिली-जुली प्रतिक्रियाओं को जन्म दिया है। देश के पूर्वोत्तर राज्यों में इस बिल का विरोध किया जा रहा है। इसके अलावा, कई छात्रों और स्वदेशी जन अधिकार संगठनों जैसे कि ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (AASU) और इंडीजिनस पीपुल्स फ्रंट ऑफ त्रिपुरा (IPFT) ने मार्च के माध्यम से और हड़ताल का आह्वान किया, उन्होंने CAB के खिलाफ भी विरोध प्रदर्शन किया। इससे पहले कल कांग्रेस के नेता और लोकसभा में विपक्ष के नेता अधीर रंजन चौधरी ने बैठक के बाद कहा कि कांग्रेस संसद में नागरिकता संशोधन बिल के दांत और नाखून का विरोध करेगी क्योंकि यह देश के संविधान के खिलाफ है।


नागरिकता संशोधन विधेयक का विरोध होगा
इसके अलावा कांग्रेस पार्टी की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी के 10 जनपथ स्थित आवास पर कांग्रेस संसदीय रणनीति समूह की बैठक के बाद उन्होंने पत्रकारों से कहा हम नागरिकता संशोधन विधेयक का विरोध करेंगे और यह हमारे संविधान, धर्मनिरपेक्ष लोकाचार, परंपरा, संस्कृति और सभ्यता का उल्लंघन है। सोनिया गांधी के आवास पर हुई बैठक में गुलाम नबी आजाद, गौरव गोगोई और एके एंटनी सहित कई कांग्रेस नेताओं ने हिस्सा लिया था। वहीं सीएबी के मुद्दे ने बहुजन समाज पार्टी (बसपा) जैसी पार्टियों के साथ एक बार के सहयोगी दलों को भी विभाजित किया, पहले बिल को विभाजनकारी और असंवैधानिक 'करार दिया और फिर कहा कि अगर केंद्र सरकार लेती है तो वह इसका समर्थन करेगी। यह एक सही निर्णय है।

शिवसेना, कैब पर अपना रुख साफ नहीं कर पाई
इस बीच, भाजपा की पूर्व सहयोगी, शिवसेना, कैब पर अपना रुख साफ नहीं कर पाई है। जबकि पहले शिवसेना पार्टी महाराष्ट्र और केंद्र में बीजेपी के साथ गठबंधन के दौरान बिल का समर्थन कर रही थी, लेकिन राज्य में कांग्रेस और राकांपा के साथ सरकार बनाने के बाद इसकी भावना बदल गई है। पार्टी के मुखपत्र सामना के संपादकीय कॉलम में सोमवार को यह खुलासा किया गया, जिसमें एक सवाल उठाया गया कि क्या पूरी कवायद भाजपा के 'वोट बैंक की राजनीति' की कवायद का हिस्सा है। बता दें कि इस वर्ष के शुरू में संसद के निचले सदन द्वारा विधेयक पारित किया गया था।

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