अनिल कपूर ने सेट पर रुला दिया था: जूही चावला
मुंबई (ब्यूरो): हिंदी फिल्म 'चॉक एन डस्टर' की रिलीज के तीन साल बाद जूही चावला 'एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा' में नजर आएंगी। शैली चोपड़ा धर निर्देशित इस फिल्म की कहानी समलैंगिकता के मुद्दे को भी छुएगी। जूही से प्रियंका सिंह की बातचीत के प्रमुख अंश : 

इस फिल्म को हां करने की क्या वजह रही? 
- मैं किसी फिल्म को करके एक्टिविस्ट नहीं बनना चाहती हूं। ऐसा नहीं है कि मैं एक फिल्म से दुनिया बदल दूंगी। अच्छी और मनोरंजक स्कि्रप्ट मेरी प्राथमिकता होती है। इसकी कहानी में एक अपनापन था। फिल्म का अंत बेहद भावुक है। यही वजह रही इसे चुनने की। 

अपने किरदार के बारे बताएं? 
फिल्म में हंसी-मजाक के साथ रोमांस और सुख-दुख सब होना चाहिए। मेरे किरदार में वह सब कुछ है। मैं असल जीवन में पंजाबी हूं। फिल्म में भी पंजाबी महिला का किरदार निभा रही हूं। पटियाला और चंडीगढ़ में शूटिंग हुई है। वहां का वातावरण और खानपान अलग ही होता है। जब आप उसी पृष्ठभूमि से होते हैं, तो काम करने में मजा आता है। 

एक दशक के बाद आप अनिल कपूर के साथ काम कर रही हैं। उनमें कोई बदलाव देखती हैं? 
- अनिल जी अपने काम को लेकर बहुत ही प्रतिबद्ध रहते हैं। वह खुद मेहनत करते हैं और चाहते हैं कि दूसरे भी मेहनत करें। पहले से ज्यादा बेहतर एक्टर बन गए हैं। अनिल का शॉट होने पर निर्देशिका शैली फैंटास्टिक कहती थीं, जबकि मेरा शॉट होने पर सिर्फ गुड बोलकर आगे बढ़ जाती थीं। उनकी परफॉमर्ेंस में वाकई कुछ खास था। अपने क्राफ्ट में वह पहले से ज्यादा बेहतर हो गए हैं। 

अनिल कपूर के साथ आपने कई फिल्में की हैं। कोई ऐसा सीन, जो हमेशा याद रह गया हो? 
- सोनम अक्सर मुझे सेट पर पूछा करती थीं कि आपने और पापा ने सेट पर किस तरह काम किया है। मैंने उन्हें बताया कि तुम्हारे पापा ने मुझे एक बार सेट पर रुला दिया था। 'बेनाम बादशाह' के सेट पर एक सीन शूट हो रहा था। मैं और अनिल जी घर के दरवाजे पर खड़े हैं और एक जूनियर आर्टिस्ट आकर हमें एक संदेश देता है। कैमरा हमारे पीछे लगा था, वह आर्टिस्ट सामने खड़ा था। अनिल जी को देखकर वह डायलॉग्स भूल रहा था। मैंने शॉट के बीच में उससे कहा कि आराम से डायलॉग बोलो, डरो मत। अनिल जी रीटेक से इतने परेशान हो गए थे कि उन्होंने मुझे डांटकर कहा तुम चुप बैठो, बीच में क्यों बोल रही हो। मुझे कभी किसी ने डांटा नहीं है। मैं सेट पर चुपचाप रहने लगी। एक दिन उन्होंने मुझे पूछा कि तुम ठीक तो हो। मैंने उन्हें कहा कि आपने चुप रहने के लिए कहा था। यह कहकर मेरी आंखों से आंसू टपक गए। अनिल जी ने दीवार के सहारे सिर नीचे और पैर ऊपर करके मुझसे मांफी मांगी थी। 

सोनम कपूर और राजकुमार राव के साथ काम करने का अनुभव कैसा रहा? 
- मैं उनके काम के तरीके देखकर हैरान हूं। सोनम को मैंने कभी निर्देशक से कोई सवाल पूछते नहीं देखा। एक दिन मैंने सोनम से इस बारे में पूछा। उन्होंने बताया कि फिल्म शुरू होने से पहले ही निर्देशक साथ कई मीटिंग्स कर लेती हैं और अपनी जिज्ञासा शांत कर लेती हैं। राजकुमार राव बहुत ही शांत इंसान हैं। शॉट के बाद चुपचाप बैठकर अगले शॉट की तैयारी करते थे। 

अब महिला केंद्रित किरदार लिखे जा रहे हैं। आपकी उसे लेकर क्या प्रतिक्रिया है? 
- हर साल कोई न कोई ऐसी फिल्म आई है, जो महिलाओं पर केंद्रित रही है। पहले भी जो फिल्में बनी हैं, उसमें महिलाओं का किरदार सशक्त होता था। शबाना आजमी और स्मिता पाटिल इसका उदाहरण हैं। विद्या बालन और तब्बू ने कई सशक्त महिलाप्रधान फिल्में की हैं। यह नई बात नहीं है। आज की कहानियां बस थोड़ी अलग हो गई हैं। 

फिल्म 'चलते-चलते' के बाद आपने किसी फिल्म का निर्माण नहीं किया? 
- मैं एक्टर ही ठीक हूं। फिल्म निर्माण सिरदर्दी भरा होता है। रात-दिन उसमें रमना पड़ता है। एक्टर मेहनत करते हैं, लेकिन उन्हें इस बात की फिक्र नहीं होती कि लाइट्स कहा हैं, पैसे कितने खर्च होने हैं। आप अपना काम खत्म करके घर चले जाते हैं।

मुंबई (ब्यूरो): हिंदी फिल्म 'चॉक एन डस्टर' की रिलीज के तीन साल बाद जूही चावला 'एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा' में नजर आएंगी। शैली चोपड़ा धर निर्देशित इस फिल्म की कहानी समलैंगिकता के मुद्दे को भी छुएगी। जूही से प्रियंका सिंह की बातचीत के प्रमुख अंश : 

इस फिल्म को हां करने की क्या वजह रही? 

- मैं किसी फिल्म को करके एक्टिविस्ट नहीं बनना चाहती हूं। ऐसा नहीं है कि मैं एक फिल्म से दुनिया बदल दूंगी। अच्छी और मनोरंजक स्कि्रप्ट मेरी प्राथमिकता होती है। इसकी कहानी में एक अपनापन था। फिल्म का अंत बेहद भावुक है। यही वजह रही इसे चुनने की। 

अपने किरदार के बारे बताएं? 

फिल्म में हंसी-मजाक के साथ रोमांस और सुख-दुख सब होना चाहिए। मेरे किरदार में वह सब कुछ है। मैं असल जीवन में पंजाबी हूं। फिल्म में भी पंजाबी महिला का किरदार निभा रही हूं। पटियाला और चंडीगढ़ में शूटिंग हुई है। वहां का वातावरण और खानपान अलग ही होता है। जब आप उसी पृष्ठभूमि से होते हैं, तो काम करने में मजा आता है। 

एक दशक के बाद आप अनिल कपूर के साथ काम कर रही हैं। उनमें कोई बदलाव देखती हैं? 

- अनिल जी अपने काम को लेकर बहुत ही प्रतिबद्ध रहते हैं। वह खुद मेहनत करते हैं और चाहते हैं कि दूसरे भी मेहनत करें। पहले से ज्यादा बेहतर एक्टर बन गए हैं। अनिल का शॉट होने पर निर्देशिका शैली फैंटास्टिक कहती थीं, जबकि मेरा शॉट होने पर सिर्फ गुड बोलकर आगे बढ़ जाती थीं। उनकी परफॉमर्ेंस में वाकई कुछ खास था। अपने क्राफ्ट में वह पहले से ज्यादा बेहतर हो गए हैं। 

अनिल कपूर के साथ आपने कई फिल्में की हैं। कोई ऐसा सीन, जो हमेशा याद रह गया हो? 

- सोनम अक्सर मुझे सेट पर पूछा करती थीं कि आपने और पापा ने सेट पर किस तरह काम किया है। मैंने उन्हें बताया कि तुम्हारे पापा ने मुझे एक बार सेट पर रुला दिया था। 'बेनाम बादशाह' के सेट पर एक सीन शूट हो रहा था। मैं और अनिल जी घर के दरवाजे पर खड़े हैं और एक जूनियर आर्टिस्ट आकर हमें एक संदेश देता है। कैमरा हमारे पीछे लगा था, वह आर्टिस्ट सामने खड़ा था। अनिल जी को देखकर वह डायलॉग्स भूल रहा था। मैंने शॉट के बीच में उससे कहा कि आराम से डायलॉग बोलो, डरो मत। अनिल जी रीटेक से इतने परेशान हो गए थे कि उन्होंने मुझे डांटकर कहा तुम चुप बैठो, बीच में क्यों बोल रही हो। मुझे कभी किसी ने डांटा नहीं है। मैं सेट पर चुपचाप रहने लगी। एक दिन उन्होंने मुझे पूछा कि तुम ठीक तो हो। मैंने उन्हें कहा कि आपने चुप रहने के लिए कहा था। यह कहकर मेरी आंखों से आंसू टपक गए। अनिल जी ने दीवार के सहारे सिर नीचे और पैर ऊपर करके मुझसे मांफी मांगी थी। 

सोनम कपूर और राजकुमार राव के साथ काम करने का अनुभव कैसा रहा? 

- मैं उनके काम के तरीके देखकर हैरान हूं। सोनम को मैंने कभी निर्देशक से कोई सवाल पूछते नहीं देखा। एक दिन मैंने सोनम से इस बारे में पूछा। उन्होंने बताया कि फिल्म शुरू होने से पहले ही निर्देशक साथ कई मीटिंग्स कर लेती हैं और अपनी जिज्ञासा शांत कर लेती हैं। राजकुमार राव बहुत ही शांत इंसान हैं। शॉट के बाद चुपचाप बैठकर अगले शॉट की तैयारी करते थे। 

अब महिला केंद्रित किरदार लिखे जा रहे हैं। आपकी उसे लेकर क्या प्रतिक्रिया है? 

- हर साल कोई न कोई ऐसी फिल्म आई है, जो महिलाओं पर केंद्रित रही है। पहले भी जो फिल्में बनी हैं, उसमें महिलाओं का किरदार सशक्त होता था। शबाना आजमी और स्मिता पाटिल इसका उदाहरण हैं। विद्या बालन और तब्बू ने कई सशक्त महिलाप्रधान फिल्में की हैं। यह नई बात नहीं है। आज की कहानियां बस थोड़ी अलग हो गई हैं। 

फिल्म 'चलते-चलते' के बाद आपने किसी फिल्म का निर्माण नहीं किया? 

- मैं एक्टर ही ठीक हूं। फिल्म निर्माण सिरदर्दी भरा होता है। रात-दिन उसमें रमना पड़ता है। एक्टर मेहनत करते हैं, लेकिन उन्हें इस बात की फिक्र नहीं होती कि लाइट्स कहा हैं, पैसे कितने खर्च होने हैं। आप अपना काम खत्म करके घर चले जाते हैं।

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