डॉक्टर ने जवाब दे दिया है

वैष्णवी को न्यूरो फेबरो मेटासिस बीमारी है। इसी बीमारी ने उसे 14 साल की उम्र में डिसएबल बना दिया। महावीर कैंसर संस्थान से लेकर टाटा मेमोरियल हॉस्पीटल तक के डॉक्टर ने जवाब दे दिया है। इस बीमारी के कारण उसके शरीर में गांठ पड़ती जा रही है। इस दुनिया में वह ज्यादा दिनों की मेहमान नहीं है, फिर भी उसका आत्मविश्वास ही है कि उसने अबतक इस बीमारी को पीछे छोड़ रखा है। उसे यह नहीं पता कि भ्रष्टाचार मिटेगा या नहीं, वह अन्ना से भ्रष्टाचार मिटाने की उम्मीद नहीं कर रही है। बल्कि इस लड़ाई में उनके साथ कदम से कदम मिलाकर चलना चाहती है। जबतक है जान, लडऩा चाहती है। अपने जीते जी इस लड़ाई को जीतना चाहती है। पूरे स्टेट में घूम-घूमकर फिजिकली चैलेंज्ड पीपुल के लिए काम करती है, साथ ही भ्रष्टाचार के खिलाफ लोगों को अवेयर करती है।

हमें चाहिए व्यवस्था में बदलाव

केपीएस कॉलेज, नदवा से आट्र्स सब्जेक्ट से ग्रेजुएशन कर रही वैष्णवी कहती है कि विकलांगों को सर्टिफिकेट तक के लिए दफ्तरों का चक्कर काटना पड़ता है। उसके बाद भी जब तक पैसा न दो किसी भी डिस्ट्रिक्ट में सर्टिफिकेट इश्यू किया जाता है। गवर्नमेंट से हमारे लिए आने वाली सुविधाओं को उसी के लोग खा जाते हैं। ज्यादातर फिजिकली चैलेंज्ड लोग निरीह होते हैं। उन्हें ज्यादा समझ भी नहीं होती है। लोग उन्हें मूर्ख बनाकर अपना उल्लू सीधा करते हैं। यह अब नहीं चलेगा। हम अन्ना के साथ इसके विरोध में हल्ला बोलेंगे। वहीं कुर्जी का रहने वाला फिजिकली चैलेंज्ड राकेश कुमार अन्ना से थोड़ा नाराज दिखते हैं, फिर भी अन्ना के साथ भ्रष्टाचार के विरोध में खड़ा है। वह कहता है कि अन्ना खुर्शीद अहमद के बारे में नहीं बोले। उसने विकलांगों की ट्राई साइकिल निगल ली, लेकिन उनके आंदोलन से ऐसी प्रॉब्लम दूर हो जाएगी। मुझे इस बात का पूरा विश्वास है। यही विश्वास वहां मौजूद दर्जनों विकलांग में भी दिख रही थी।

वैष्णवी ने लोक नृत्य में जीता मेडल

कभी वैष्णवी क्लास की डांसर हुआ करती थी। उसने लोकल लेवल पर लोक नृत्य में कई मेडल भी जीते थे। जब वह 14 वर्ष की थी, तभी कैंसर ने उसे जकड़ लिया। हमने जब इस बारे में बात की तो उसकी आंखें भर आईं। मन उदास हो गया। वह पुरानी यादों में खो गई। वैष्णवी कहती हैं कि जब वह डांस करती थी, तो लोग तालियां बजाते थे, पर कैंसर की वजह से डिसएबल हो गई और फिर डांस पर ब्रेक लग गया, बावजूद उसने हार नहीं मानी। उसे मरने का डर नहीं है, बस अपने अधूरे काम को पूरा नहीं कर पाने से डरती है। पहले कुछ दिन तो वह घर में रही, लेकिन 2008 में हिम्मत कर घर से निकली और डिसएबल लोगों के लिए कुछ करने की ठानी। तब से वह राष्ट्रीय विकलांग मंच सह वैष्णो स्वाबलंबन संस्था के जरिए विकलांगों की सेवा करने लगी। वह कहती है इससे मुझे एनर्जी मिलता है।

पा चुकी है खेल सम्मान

वैष्णवी डिसएबल होने के बाद कई स्पोट्र्स में पार्टिसिपेट कर चुकी है। नेशनल लेवल पर आयोजित स्वेटर बुनाई टूर्नामेंट में वह गोल्ड मेडल जीत चुकी है। 2008 में उसे सेकेंड पोजिशन हासिल हुआ था। 2010 में अपने परफॉर्मेंस में सुधार आया और गोल्ड मेडल पर कब्जा जमाया। 2011 में इसी आधार पर उसे खेल सम्मान दिया गया।

12 घंटे करती है काम

वैष्णवी को पता है कि कभी भी उसकी मौत हो सकती है, फिर भी वह कहती है कि अब उसे मौत से डर नहीं लगता है, बल्कि मौत मुझसे डरती है। डॉक्टर्स द्वारा जवाब दे देने के बाद भी मैं पूरे हौसले के साथ अपनी जिंदगी को जी रही हूं। आज भी मैं आम आदमी की तरह 12 घंटे काम करती हूं। सुबह 9 बजे घर से निकलती हूं और रात को 9 बजे वापस आती हूं। इस दौरान डिसएबल लोगों के लिए काम करती हूं।

Profile

नाम : कुमारी वैष्णवी

पिता : उमाकांत द्विवेदी

मम्मी : मीरा द्विवेदी

पता : मौर्य बिहार, ट्रांसपोर्ट नगर।

एजुकेशन : 10वीं : सोनमति संस्कृत हाईस्कूल विशम्भरपुर, विक्रम।

ग्रेजुएशन : केपीएस कॉलेज, नदवा।