- सिटी में बढ़ रहे एंजाइटी ऑफ गेटिंग डिजीज के मरीज

- दूसरों की बीमारी के सिम्पटम्स खुद पर होते हैं महसूस

- हेल्दी इंसान भी बन जाता है बीमार, लापरवाही बरतने पर खत्म हो जाता है करियर

GORAKHPUR : उम्र ख्0 साल। हाइट भ् फीट क्क् इंच। वेट 7भ् केजी। देखने में रजनीश किसी हीरो से कम नहीं। इसके बावजूद एक, दो नहीं बल्कि एक दर्जन बीमारी का इलाज चल रहा है। जिसमें डायबिटीज, ब्लड प्रेशर, हार्ट प्रॉब्लम, किडनी प्रॉब्लम, फीवर, वीकनेस, डिप्रेशन तक शामिल हैं। रजनीश जहां भी जाता है, वहां से एक नई बीमारी लेकर आता है। नौबत ये है कि अब रजनीश को पैरेंट्स घर से बाहर भेजने में भी डरते हैं। यह हालत अकेले रजनीश की नहीं है बल्कि ऐसे कई लोग जिले में है, जो अनेक तरह की बीमारी से परेशान हैं। इतनी बीमारी का इलाज चलने के बावजूद न तो उनकी सेहत पर कोई इफेक्ट पड़ता है और न ही कोई अन्य प्रॉब्लम होती है। इन सब के पैरेंट्स भी इलाज करा कर थक गए हैं। डॉक्टर भी हैरान हैं। आखिर रजनीश जैसे लोगों को प्रॉब्लम महसूस हो रही है तो डॉक्टर को नजर क्यों नहीं आ रही? आखिर इनको ऐसी कौन सी बीमारी है? इस अनोखी बीमारी से सिर्फ रजनीश नहीं, बल्कि सैकड़ों लोग परेशान हैं। भूकंप के झटकों ने ऐसे मरीजों की संख्या अचानक बढ़ा दी है। हालांकि ये प्रॉब्लम नई नहीं है, मगर झटकों ने जब मरीजों को डॉक्टर तक पहुंचाया तब इन्हें अपनी बीमारी का पता चला।

भूकंप ने बढ़ाए मरीज

भूकंप के झटकों ने सिर्फ धरती को नहीं बल्कि लोगों को भी हिला दिया। कई ऐसी नई बीमारी के मरीज भी सामने आए, जो कई सालों से पीडि़त थे, मगर सही जानकारी के अभाव में भटक रहे थे। भूकंप के झटकों के बाद अचानक मरीजों की संख्या बढ़ गई। कुछ असल में बीमार हुए तो कुछ उन्हें देख कर। ऐसे ही कई मरीज जब हॉस्पिटल पहुंचे तो डॉक्टर ने बताया कि एंजाइटी ऑफ गेटिंग डिजीज के मरीज बहुत आ रहे हैं। इस बीमारी में मरीज को कोई परेशानी नहीं होती। बस वह सामने वाले से बात करते समय उसकी समस्या या बीमारी को सुन उसे खुद पर महसूस करने लगता है। उसे लगता है कि फीवर सामने वाले को हैं तो उसे भी है। ये एक साइकोलॉजिकल बीमारी है। इसमें दूसरों को होने वाले बीमारी के सिम्पटम्स खुद पर महसूस होने लगते हैं। इससे व्यक्ति काफी परेशान हो जाता है। इस बीमारी में वैसी कोई दिक्कत नहीं होती मगर पूरा परिवार डिस्टर्ब जरूर रहता है।

केस-क्

राप्ती नगर के रहने वाले सलीम एक साल पहले दिल्ली में एक प्राइवेट कंपनी में काम करते थे। अचानक उनकी नौकरी चली गई क्योंकि वे अक्सर बीमार रहते थे। कभी लूज-मोशन, कभी डायबिटीज प्रॉब्लम तो कभी हार्ट प्रॉब्लम। आखिर तंग आकर कंपनी से सलीम को निकाल दिया गया। सलीम वापस घर आ गया, मगर बीमारी का सिलसिला खत्म नहीं हुआ। सलीम जब घर से निकलता है तो उसे जो बीमारी रहती है घर लौटते-लौटते वह चेंज हो जाती है। मतलब अगर पूरे हफ्ते की बात करें तो ऐसी कोई बीमारी नहीं, जो सलीम को न हो। तंग आकर सलीम के पिता ने कई डॉक्टर से इलाज कराने के बाद सोखाओं से भी दिखाया, मगर कोई फायदा नहीं हुआ। लास्ट में पड़ोसी के कहने पर पैरेंट्स सलीम को लेकर साइकिएट्रिस्ट के पास पहुंचे। जहां डॉक्टर ने उनका मर्ज पकड़ते हुए कहा कि ये एक साइकोलॉजिकल डिजीज है। जिसमें मरीज अक्सर सामने वाले की बीमारी सुनते ही खुद में उसके सिम्पटम्स महसूस करने लगता है।

केस-ख्

सहजनवां निवासी विजय की उम्र ख्ख् साल है। वह घर में ही रहता है जबकि विजय के साथी जॉब कर फैमिली की जिम्मेदारी उठा रहे हैं। डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल आए विजय के पिता रामानंद ने बताया कि वह बहुत बीमार है। हालांकि उसे देख कर बीमारी का अंदाजा लगाना मुश्किल होता है। शरीर ठीक-ठाक है, मगर कभी उसे कोई बीमारी पकड़ लेती है तो कभी कोई। कई बीमारी तो ऐसी होती है कि बिना दवा खाए और डॉक्टर के पास बिना जाए ही ठीक हो जाती है, मगर हर दूसरे दिन उसे नई बीमारी हो जाती है। खासतौर पर वह बीमारी जो आसपास किसी को होती है, वह ही विजय को अधिक परेशान करती है। कई डॉक्टर से इलाज कराया, मगर कोई फायदा नहीं हुआ। मंदिर-मस्जिद में पूजा भी कराई, मगर इससे भी कोई लाभ नहीं मिला। अब साइकिएट्रिस्ट के पास दिखाने आया हूं। मेरा बेटा पागल नहीं है। डॉक्टर साहब ने उसे एक अजीब सी बीमारी बताई है जिसमें बीमारी न होते हुए भी महसूस होती है।

केस-फ्

खजनी निवासी शालिनी बहुत बीमार रहती थी। उसका इलाज डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल में चल रहा है। शालिनी के पिता ने बताया कि एक साल पहले शालिनी को आए दिन कोई न कोई बीमारी लगी रहती थी। कभी पेट दर्द, कभी कमर दर्द, कभी कमजोरी तो कभी तेज बुखार। गांव से लेकर शहर तक के कई डॉक्टर से इलाज कराया, मगर कोई फायदा नहीं हुआ। एक दिन मुझे लगा कि वह नौटंकी करती है। इसलिए मैंने उसे खाना नहीं दिया। सोचा कि भूख लगेगी तो मांगेगी। बीमारी में पड़ी शालिनी ने कुछ नहीं खाया। तब मैं परेशान हो गया। शालिनी को लेकर कई जगह दिखाया। फिर एक दिन अपने मित्र की सलाह पर उसे साइक्रेएटिस्ट से दिखाया। तब पता चला कि उसे एक अजीब तरह की बीमारी है जिसमें वह दूसरों को होने वाली बीमारी को खुद पर महसूस करने लगती है। अब उसका इलाज चल रहा है।

ब्रेन में केमिकल इंबैलेंस से सोचने की क्षमता पर इफेक्ट पड़ने लगता है। ब्रेन इतना अधिक सेंसटिव हो जाता है कि वह हर चीज को खुद पर महसूस करने लगता है। खासतौर पर जिंदगी से जुड़ी चीज या बीमारी। इसे एंजाइटी ऑफ गेटिंग डिजीज कहते हैं। इसके मरीजों की संख्या बढ़ रही है। जानकारी के अभाव में इसके मरीज डॉक्टर तक आने के बजाए ऐसे ही भटकते रहते हैं। इस बीमारी में न सिर्फ मरीज परेशान होता है बल्कि पूरा परिवार डिस्टर्ब रहता है। हालांकि इससे अन्य कोई प्रॉब्लम नहीं होती है।

डॉ। सीपी मल्ल, साइकिएट्रिस्ट