- मई 1999 में पाक घुसपैठिये ने भारतीय चौकी पर कब्जा किया

- 7 जुलाई को आपरेशन विजय में हुए शामिल

- 25 सितंबर को घुसपैठिये से लड़ते हुए घायल हुए

- 200 मीटर खाई में गिर गये

- 11 दिन मौत से जूझते रहे

- 6 अक्टूबर को वीरगति को प्राप्त हो गये

-बेटे की शहादत से गौरवान्वित मेजर रीतेश शर्मा के पिता सत्यप्रकाश शर्मा की सरकार से मांग

-कहा, 'भारत मां की रक्षा में मुझे भी जान देनी पड़े तो पीछे नहीं हटूंगा'

LUCKNOW : 'मेरे बेटे ने भारत मां की रक्षा के लिये अपने प्राण न्योछावर किये हैं, इसका मेरे परिवार को गर्व है। अगर मुझे भी देश के लिये जान देने की जरूरत पड़ी तो मैं पीछे नहीं हटूंगा.' यह कहना है ऑपरेशन विजय के दौरान घुसपैठियों को धूल चटा देने वाले अमर शहीद मेजर रीतेश शर्मा के पिता सत्यप्रकाश शर्मा का। पुलवामा हमले के बाद मोदी सरकार द्वारा पाकिस्तान में जवाबी कार्रवाई की वे प्रशंसा करते हैं। उनका कहना है कि पाकिस्तान तभी सुधरेगा जब तक वहां छिपे आतंकी सरगनाओं को लादेन की तरह मौत के घाट नहीं उतारा जाएगा।

घुसपैठियों को चटा दी थी धूल

मई 1999 में लाइन ऑफ कंट्रोल को पार कर पाकिस्तानी घुसपैठिये व आर्मी ने कारगिल की पहाडि़यों पर स्थित भारतीय चौकियों पर कब्जा जमा लिया। इसकी जानकारी मिलते ही भारतीय सेना ने ऑपरेशन विजय शुरू किया। मेजर रीतेश शर्मा व उनकी यूनिट को कारगिल में तैनात किया गया और उन्हें प्वाइंट 4875, पिंपल 1, पिंपल 2 व मश्कोह घाटी को पाकिस्तानी सैनिकों व घुसपैठियों से आजाद कराने की जिम्मेदारी दी गई। मेजर शर्मा व उनकी यूनिट ने एक-एक कर सभी पहाडि़यों से घुसपैठियों को धूल चटाते हुए खदेड़ दिया। मेजर रीतेश व उनकी यूनिट की बहादुरी की वजह से उनकी यूनिट को मश्कोह रक्षक' कहलाने का गौरव प्राप्त हुआ।

आतंकियों से मुठभेड़ में दी प्राणों की आहूति

कारगिल संघर्ष के दौरान घायल होने के बावजूद 7 जुलाई 1999 में फिर से युद्ध में शामिल हो गए। ऑपरेशन विजय के दौरान ही सेना ने कश्मीर के सीमावर्ती कुपवाड़ा जिले में छिपे आतंकियों के खिलाफ भी अभियान चलाया। मेजर रीतेश व उनकी यूनिट को यह महत्वपूर्ण टास्क सौंपा गया। कुपवाड़ा सेक्टर में कई घुसपैठियों व आतंकियों को मार गिराने के बाद 25 सितंबर 1999 को आतंकवादियों से मुठभेड़ के दौरान बुरी तरह घायल होकर 200 मीटर गहरी खाई में गिर पड़े। इस हादसे में मेजर रीतेश कोमा में चले गए। उन्हें इलाज के लिये सेना के उत्तरी कमांड अस्पताल ऊधमपुर में लगातार 11 दिन तक जिंदगी मौत से जूझते रहे। आखिरकार, 6 अक्टूबर 1999 को उन्होंने वीरगति प्राप्त की।

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सफलता चूमती गई कदम

सिंचाई विभाग से सुपरीटेंडिंग इंजीनियर पद से रिटायर्ड सत्य प्रकाश शर्मा और उनकी पत्‍‌नी दीपा शर्मा के इकलौते बेटे रीतेश ने बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी से बीकॉम ऑनर्स किया था। ग्रेजुएशन कंपलीट करते ही उनका सेलेक्शन कमीशंड अधिकारी के प्रशिक्षण के लिये इंडियन मिलिटरी अकादमी देहरादून में हो गया। आईएमए देहरादून से 1995 में कमीशन हासिल कर 17 जाट रेजिमेंट के तहत उनकी पहली पोस्टिंग श्रीगंगानगर, राजस्थान में सेकेंड लेफ्टिनेंट के रूप में हुई। वहां पोस्टिंग के दौरान ही रीतेश ने विभिन्न प्रशिक्षण व कमांडो ट्रेनिंग में सफलता प्राप्त की। रीतेश की यूनिट की अगली पोस्टिंग आतंकवाद विरोधी अभियान के तहत श्रीनगर में हो गई। इसी बीच मोर्टार ट्रेनिंग की विशेषज्ञता के लिये उन्हें मध्य प्रदेश के महो भेजा गया। जहां से मई 1999 में उन्होंने सफलता पूर्वक अपनी ट्रेनिंग पूरी की।

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कार्रवाई ऐसी हो कि बने नजीर

पाकिस्तान पर जारी कार्रवाई की सत्यप्रकाश शर्मा तारीफ करते हैं। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान वर्षो से देश में आतंकवाद फैला रहा है। लेकिन, हमारी सरकारें इसकी सिर्फ निंदा करके चुप बैठ जाती थीं। बरसों बाद ऐसा मौका आया है जब किसी सरकार ने पाकिस्तान के खिलाफ इतना कठोर कदम उठाया है। ऐसे में यह कार्रवाई जारी रखनी चाहिये। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान को इस बार ऐसा सबक देना चाहिये ताकि, वह नजीर बने और भविष्य में पाकिस्तान भारत के खिलाफ कुछ भी सोचने से पहले कांप उठे।