कहानी :
आर्टिकल 15 हरिजन, बहुजन और जन
संविधान की धारा 15 :
(1) राज्य, किसी नागरिक के विरुद्ध के केवल धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, जन्मस्थान या इनमें से किसी के आधार पर कोई विभेद नहीं करेगा।
(2) कोई नागरिक केवल धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, जन्मस्थान या इनमें से किसी के आधार पर--
(क) दुकानों, सार्वजनिक भोजनालयों, होटलों और सार्वजनिक मनोरंजन के स्थानों में प्रवेश, या
(ख) पूर्णतः या भागतः राज्य-निधि से पोषित या साधारण जनता के प्रयोग के लिए समर्पित कुओं, तालाबों, स्नानघाटों, सड़कों और सार्वजनिक समागम के स्थानों के उपयोग, के संबंध में किसी भी निर्योषयता, दायित्व, निर्बन्धन या शर्त के अधीन नहीं होगा।
(3) इस अनुच्छेद की कोई बात राज्य को स्त्रियों और बालकों के लिए कोई विशेष उपबंध करने से निवारित नहीं करेगी।
(4) इस अनुच्छेद की या अनुच्छेद 29 के खंड (2) की कोई बात राज्य को सामाजिक और शैक्षिक दृष्टि से पिछड़े हुए नागरिकों के किन्हीं वर्गों की उन्नति के लिए या अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए कोई विशेष उपबंध करने से निवारित नहीं करेगी।
ये हमारे संविधान का कहना है, पर फिर भी यहां की राजनीति जाति और धर्म की नींव पे खड़ी है, फिर भी हम इस तबके के बारे में कुछ भी नहीं जानते। आर्टिकल 15 वो फ़िल्म है जो हम सबको ज़रूर देखनी चाहिए, ताकि हम जाति से ऊपर उठने का प्रयास कर सकें।
समीक्षा :
अनुभव सिन्हा की 'मुल्क' में तापसी का किरदार एक सवाल उठाता है, कि जाति, धर्म पे किये जा रहे अत्याचारों को आतंकवाद की श्रेणी में क्यों न लाया जाए। उसी थॉट को अनुभव अपनी इस फ़िल्म के थ्रू एड्रेस करते हैं। वोट बैंक पोलिटिक्स में दलित वर्ग को मवेशियों की तरह यूज़ किया जाता हूं, फिर एब्यूज किया जाता है और ज़्यादातर कोई सुनवाई नहीं होती 'इन लोगों' की। कौन हैं ये लोग, ये सवाल ही इस फ़िल्म का मेन हिस्सा है। कहानी 2014 की एक वारदात पे आधारित है, पर ऐसा कोई दावा नहीं करती। फ़िल्म बहुत ही सलीके से लिखी गई है, और फ़िल्म को गरीब वर्ग के दलितों की मुश्किलातों को बड़े ही इम्पैक्टफुल तरीके से दिखाया गया हैं। संविधान के प्रति अलग अलग तबकों का रवैया भी ठीक तरीक़े से दिखाया गया है। फ़िल्म किसी को नहीं छोड़ती एक तरफ कास्ट बेस्ड पॉलिटिक्स को तो दिखाती ही है, वहीं दूसरी तरफ बदलाव की गुहार भी लगाती है। फ़िल्म बहुत ही बढ़िया शूट की गई है और फ़िल्म का पार्श्वसंगीत भी ऑन पॉइंट है। फ़िल्म के शुरवात में जो लोक गीत है, बहुत ही अच्छा है। फ़िल्म के डायलॉग बहुत अच्छे हैं, और फ़िल्म कहीं भी बोर नहीं करती, आयुष्मान का लवट्रैक कहानी को कोई फायदा नहीं पहुंचाता, थैंकफुली ज़्यादा नहीं है। एडिटिंग बढ़िया है।
अदाकारी :
आयुष्मान खुराना अपने रोल में घुस जाते हैं, इसमे कोई शक नहीं कि ये पिछले कुछ सालों में आई पुलिसिया फिल्मों में ये फ़िल्म बेहतर है, और इसका एक बड़ा कारण आयुष्मान का बैलेंस्ड काम है। पर शो स्टील करते हैं, कुमुद मिश्र और मनोज पाहवा, बिल्कुल मुल्क फ़िल्म की तरह ये दोनों इस फ़िल्म की जान हैं। छोटे छोटे रोलज़ में सयानी गुप्ता, रोंजीनि, ज़ीशान अयूब और नासेर भी कमाल करते हैं, ओवरऑल कास्टिंग बढ़िया है।
ये फ़िल्म हम सब को ज़रूर देखनी चाहिए, खासकर उन लोगों को जो अभी भी जाति देख के वोट देते है।
रेटिंग : 4.5 स्टार
Review by: Yohaann Bhaargava
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