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PATNA प्रकाश झा की पहली फिल्म दामुल में अभिनय करने वाले ओम कुमार आज सड़कों पर अखबार बेच रहे हैं। सुनकर आश्चर्य हुआ लेकिन बिहार में कला की कुछ ऐसी ही कदर है। दामुल जैसी फिल्म में बुधवा का रोल निभाकर लोगों का दिल जीतने वाले ओम आज गुमनामी की जिंदगी जी रहे हैं। वे एक-एक पैसे के लिए मोहताज है। अखबार बेचकर जो कमाई होती है, उसी से जीवन का गुजर बसर होता है। ओम को कुदरत ने अभिनय का वरदान दिया था लेकिन आर्थिक परिस्थितियों ने उसे कलाकार से हॉकर बना दिया। आज भी उनके दिल में एक कलाकार कुलबुलाता रहता है लेकिन 4 बच्चों की जिम्मेदारियां उन्हें फिर हाथ में अखबार पकडऩे को मजबूर कर देती हैं.

शिष्य पहुंच गया दबंग तक
आपको दबंग फिल्म के वो सिपाही चौबे जी तो याद होंगे जो सलमान खान के साथ हमेशा रहते हैं। रियल लाइफ में इनका नाम राम सुजान सिंह है और ये पटना के रहने वाले हैं। ओम बताते हैं कि राम उनका शिष्य है। वह हमेशा अभिनय सीखने में कई गलतियां करता था, जिन्हें वे सुधारा करते थे.आज वह जिस मुकाम पर है, उसमें ओम का भी बहुत सहयोग रहा है। वह अपने पारिवारिक परिस्थितयों के कारण बिहार से बाहर नहीं जा सके है और बिहार में कला के लिए कुछ है नहीं.
और वे ओम कपूर बन गए
ओम बताते हैं कि बचपन से अभिनय का शौक था। 1976 में अनिल मुखर्जी के सानिध्य में थिएटर ज्वाइन किया.तब कक्षा 7 में थे। स्कूल से जैसे ही समय मिलता अभिनय करने पहुंच जाते। पिता अखबार बेचकर घर चलाते थे। आर्थिक विवशता ने हमेशा आगे बढऩे से रोका, लेकिन शौक प्रकाश झा की पहली फिल्म तक ले गया। जब थिएटर में प्रकाश जी ने अभिनय करते देखा तभी फिल्म में रोल दे दिया। उन्होंने एक दलित की भूमिका निभाई थी। इस फिल्म के बाद ही नया नाम मिला ओम कपूर.

आर्थिक लाचारी ने मार दिया हीरो को
ओम का यह बताते हुए गला भर आया कि मेरा अरमां तो बॉलीवुड के आसमां तक जाने की थी लेकिन पेट की आग ने पटना से बाहर ही नहीं जाने दिया। कम उम्र में ही शादी हो गई। पत्नी फिर 4 बच्चे, पिता का देहांत। ऐसे में सबसे पहले पेट की आग दिखाई दी। इस आग ने सपने कब जल गए पता ही नहीं चला. 

भोजपुरी फिल्मों में भी किया अभिनय
ओम कपूर ने भोजपुरी की कई बड़ी फिल्मों में अभिनय किया है। प्रेम लीला और हमार घरवाली जैसी बड़ी फिल्मों में अहम भूमिका निभाई है। ओम बताते हैं कि भोजपुरी फिल्मों की शूटिंग के लिए वे कई बार मुंबई गए लेकिन खाली जेब के कारण वापस पटना आना पड़ा. 

नहीं मिल रहा है गुजारा भत्ता
पूर्ण कालिक कलाकारों को सरकार की ओर से उतना भी भत्ता नहीं मिलता की वो दो वक्त की रोटी खा सके। और अपनी कला का प्रदर्शन करने की हिम्मत जुटा सकें। सरकार को चाहिए की बुनियादी सुविधाओं पर ध्यान दें नहीं तो कला दिवस भी एक आयोजन बनकर रह जाएगा.

नहीं बनी सांस्कृतिक नीति

कलाकारों में कला के प्रति रूझान बढ़ाने के लिए आज तक सांस्कृतिक नीति नहीं बनाई गई । यही कारण है कि ओम जैसे कई कलाकार आज गुमनामी में खो गए.
-राजन कुमार सिंह, नाट्य कलाकार

सामने आएं कलाकार  

कला को बढ़ावा देने के लिए विभाग की ओर से लगातार कार्य किया जा रहा है । कलाकार अपनी समस्या से अवगत कराएंगे तो निश्चित रूप से निदान होगा.
- शिवचन्द्र राम, मंत्री कला संस्कृति एवं युवा विभाग
शिष्य पहुंच गया दबंग तक
आपको दबंग फिल्म के वो सिपाही चौबे जी तो याद होंगे जो सलमान खान के साथ हमेशा रहते हैं। रियल लाइफ में इनका नाम राम सुजान सिंह है और ये पटना के रहने वाले हैं। ओम बताते हैं कि राम उनका शिष्य है। वह हमेशा अभिनय सीखने में कई गलतियां करता था, जिन्हें वे सुधारा करते थे.आज वह जिस मुकाम पर है, उसमें ओम का भी बहुत सहयोग रहा है। वह अपने पारिवारिक परिस्थितयों के कारण बिहार से बाहर नहीं जा सके है और बिहार में कला के लिए कुछ है नहीं.
और वे ओम कपूर बन गए
ओम बताते हैं कि बचपन से अभिनय का शौक था। 1976 में अनिल मुखर्जी के सानिध्य में थिएटर ज्वाइन किया.तब कक्षा 7 में थे। स्कूल से जैसे ही समय मिलता अभिनय करने पहुंच जाते। पिता अखबार बेचकर घर चलाते थे। आर्थिक विवशता ने हमेशा आगे बढऩे से रोका, लेकिन शौक प्रकाश झा की पहली फिल्म तक ले गया। जब थिएटर में प्रकाश जी ने अभिनय करते देखा तभी फिल्म में रोल दे दिया। उन्होंने एक दलित की भूमिका निभाई थी। इस फिल्म के बाद ही नया नाम मिला ओम कपूर.

आर्थिक लाचारी ने मार दिया हीरो को
ओम का यह बताते हुए गला भर आया कि मेरा अरमां तो बॉलीवुड के आसमां तक जाने की थी लेकिन पेट की आग ने पटना से बाहर ही नहीं जाने दिया। कम उम्र में ही शादी हो गई। पत्नी फिर 4 बच्चे, पिता का देहांत। ऐसे में सबसे पहले पेट की आग दिखाई दी। इस आग ने सपने कब जल गए पता ही नहीं चला. 

भोजपुरी फिल्मों में भी किया अभिनय
ओम कपूर ने भोजपुरी की कई बड़ी फिल्मों में अभिनय किया है। प्रेम लीला और हमार घरवाली जैसी बड़ी फिल्मों में अहम भूमिका निभाई है। ओम बताते हैं कि भोजपुरी फिल्मों की शूटिंग के लिए वे कई बार मुंबई गए लेकिन खाली जेब के कारण वापस पटना आना पड़ा. 

नहीं मिल रहा है गुजारा भत्ता
पूर्ण कालिक कलाकारों को सरकार की ओर से उतना भी भत्ता नहीं मिलता की वो दो वक्त की रोटी खा सके। और अपनी कला का प्रदर्शन करने की हिम्मत जुटा सकें। सरकार को चाहिए की बुनियादी सुविधाओं पर ध्यान दें नहीं तो कला दिवस भी एक आयोजन बनकर रह जाएगा.

नहीं बनी सांस्कृतिक नीति

कलाकारों में कला के प्रति रूझान बढ़ाने के लिए आज तक सांस्कृतिक नीति नहीं बनाई गई । यही कारण है कि ओम जैसे कई कलाकार आज गुमनामी में खो गए.
-राजन कुमार सिंह, नाट्य कलाकार

सामने आएं कलाकार  

कला को बढ़ावा देने के लिए विभाग की ओर से लगातार कार्य किया जा रहा है । कलाकार अपनी समस्या से अवगत कराएंगे तो निश्चित रूप से निदान होगा.
- शिवचन्द्र राम, मंत्री कला संस्कृति एवं युवा विभाग