उनकी पहचान कभी अरुणा राय के जूनियर साथी के रूप में, तो कभी कुछ अलग पहचान बनाने में जुटे आरटीआई कार्यकर्ता और कभी मेगसेसे पुरस्कार से सम्मानित स्वयंसेवी के रूप में होती रही है.
लेकिन भारत के घर-घर में केजरीवाल की तस्वीर पहुंची टीवी स्क्रीन के प्राइम टाइम और अखबारों के पहले पन्ने पर चढ़ कर वर्ष 2011 में.
केजरीवाल हमेशा भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ मुहिम छेड़ने वाले अन्ना हज़ारे की बगल में बैठे दिखते, उनके कान में फुसफुसाते, उनके वाक्यों को सँभालते, और बात बिगड़ती देख उन्हें पत्रकारों के बीच में से उठाकर ले जाते दिखे.
अक्सर आधी बांह वाली कमीज़ पहनने वाले केजरीवाल दो साल पहले कहीं से लीडर नहीं लगते थे, लेकिन आज वो ऐसे खांटी नेता हैं जिसने सत्ताधारी कांग्रेस और विपक्षी भारतीय जनता पार्टी, दोनों की सत्ता की डगर को मुश्किल बना दिया.
भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस के जो नेता उनको नेता नहीं मान रहे थे, वो आज आप से सीखने की बात कर रहे हैं. कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने कहा कि वो आप से सीख लेंगे.
वहीं बीजेपी को भी मानना पड़ा कि उनकी जीत चौंकानेवाली थी.
तीसरा विकल्प
भले ही आम आदमी पार्टी को सरकार बनाने का फैसला लेने में वक्त लगा लेकिन केजरीवाल ने आखिरकार फैसला ले ही लिया. बारह महीने में ही उनके नए नए तैयार हुए राजनीतिक दल ने न सिर्फ दिल्ली की राजनीतिक में बलचल मचा दी है बल्कि बड़े राजनीतिक दलों को चिंता में डाल दिया है.
कहा जा रहा है कि आम आदमी पार्टी दिल्ली के बाहर के उन वोटरों के लिए एक विकल्प बन सकती है जो लंबे समय से भाजपा और कांग्रेस में ही किसी एक को चुनने को मजबूर थे.
एक वक्त दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित आम आदमी पार्टी को कोई तवज्जो तक देने को तैयार नहीं थीं. वो तो इसे अभी राजनीतिक पार्टी मानने को भी तैयार नहीं थी.
जब अरविंद केजरीवाल ने राजनीति में उतरने के लिए अन्ना हजारे से अपने रास्ते अलग कर लिए थे तो बहुत से लोगों ने कहा था कि वो अन्ना हजारे के बिना कुछ नहीं कर पाएंगे.
सिस्टम की 'सफ़ाई'
इससे पहले केजरीवाल ने विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद से लेकर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के दामाद रॉबर्ट वाड्रा से जुड़े कथित भ्रष्टाचार के मामलों में मुहिम चलाई.
केजरीवाल ने भ्रष्टाचार के इन मामलों को तब उठाया जब कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार पर एक के बाद एक घोटालों का आरोप लग रहे थे. हालांकि उनके आलोचक कहते हैं कि वो सस्ती लोकप्रियता के लिए ऐसे हथकंडे अपना रहे हैं.
लेकिन इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता है कि अरविंद केजरीवाल ने चुप्पी की एक संस्कृति को तोड़ा है. जो उनके मन में था, उसे वो ज़ुबान पर लाए हैं.
अरविंद केजरीवाल ये कहते हुए साल भर पहले राजनीति के मैदान में कूदे कि - “देश को बेचा जा रहा है और सभी पार्टियां इसके लिए दोषी हैं. हमें ये सिस्टम साफ़ करना होगा.”
पूर्व नौकरशाह अरविंद केजरीवाल को सामाजिक कार्य और भ्रष्टाचार से लड़ने के लिए मुहिम चलाने के लिए 2006 में रामन मेगसेसे पुरस्कार से सम्मानित किया गया.
वर्ष 2010 में उन्होंने भ्रष्टाचार के विरोध में 'इंडिया अगेंस्ट करप्शन' की स्थापना की, जिसका मकसद सरकार पर भ्रष्टाचार विरोधी कड़े कानून बनाने के लिए दबाव डालना था.
लेकिन 45 वर्षीय केजरीवाल सुर्खियों में तब आए जब उन्होंने अन्ना हजारे के भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन में पर्दे के पीछे अहम भूमिका निभाई.
आईआईटी से इंजीनियरिंग की
भ्रष्टाचार के विरुद्ध आंदोलन का चेहरा बेशक 74 वर्षीय अन्ना हजारे रहे, लेकिन इसकी सफलता के पीछे जिन लोगों ने अहम भूमिका निभाई उनमें टीम अन्ना के सदस्य अरविंद केजरीवाल का खासा योगदान रहा.
हरियाणा के हिसार में साल 1968 में जन्मे केजरीवाल ने आईआईटी खड़गपुर से मैकेनिकल इंजीनियरिंग में डिग्री हासिल की थी.
कुछ दिनों तक निजी क्षेत्र के टाटा समूह के साथ काम किया और फिर वो वर्ष 1992 में राजस्व अधिकारी के तौर पर भारतीय प्रशासनिक सेवा में शामिल हो गए.
केजरीवाल ने वर्ष 2006 में स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली और पब्लिक कॉज़ रिसर्च फाउंडेशन के नाम से एक गैर सरकारी संगठन की स्थापना की थी. इसके साथ ही उन्होंने सरकारी तंत्र में पारदर्शिता को बढ़ावा देने और सूचना के अधिकार के प्रति जागरुकता पैदा करने का अभियान शुरू कर दिया.
अंग्रेजी पत्रिका कारवाँ में छपे एक लेख के मुताबिक खुद केजरीवाल को भ्रष्टाचार की वजह से कभी कोई कष्ट नहीं झेलना पड़ा है.
इस लेख में कहा गया है कि “वरिष्ठ अधिकारी की अच्छी खासी नौकरी छोड़ने और सामाजिक कार्यकर्ता बनने की वजह कोई रोष या कड़वाहट नहीं थी. लेकिन सरकारी तंत्र में दस साल तक काम करने के बाद उनका इसमें भरोसा नहीं रहा.”
'दिन गिनना शुरू करो'
राजनीति के मैदान में आने के बाद केजरीवाल जनता को सत्ता के हस्तांतरण, भ्रष्चार से लड़ने, महंगाई को काबू करने और किसानों को उनकी उपज का उचित दाम दिलवाने की बात कर रहे हैं.
अपनी राजनीतिक पारी की शुरुआत करते हुए उन्होंने कहा था, “आज से आम लोग राजनीति में दाखिल हो रहे हैं, भ्रष्ट नेताओं, अपने दिन गिनना शुरू कर दो.”
अरविंद केजरीवाल राजनीति के पहले दौर में तो सफल हो गए हैं अब उनपर जिम्मेदारी और साथ ही बोझ होगा जनता को किए गए वादे को पूरा करने का. अगर वो सफल हो जाते हैं तो कहा जाएगा कि वाकई एक आम आदमी भी ठान ले तो राजनीतिक में बदलाव ला सकता है.
और अगर उनके हाथ नाकामी लगती है, तो इसे उसी गणतांत्रिक प्रक्रिया का एक अंग माना जाएगा जहां लोकतंत्र चुनाव के साथ शुरू होता है और उनमें जीत दर्ज करने के बाद समाप्त हो जाता है.
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