नयी दिल्ली (पीटीआई)। भारतीय इतिहास का सबसे महत्वपूर्ण और बहुप्रतीक्षित फैसला शनिवार को आ गया। चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ ने एक सदी से अधिक पुराने विवाद को अपने फैसले से खत्म कर दिया। इस विवाद से देश के सामाजिक ताने-बाने को काफी नुकसान पहुंचा है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मंदिर का निर्माण प्रमुख स्थान पर किया जाना चाहिए, जहां हिंदू मानते हैं कि भगवान राम का जन्म हुआ था। कोर्ट ने मंदिर निर्माण के लिए तीन महीने के भीतर एक ट्रस्ट के गठन का निर्देश दिया है।

विवादित भूमि भगवान राम लला को

16वीं सदी में बाबरी मस्जिद बनाई गई थी, हिंदुओं का मानना है कि इस स्थान पर भगवान राम का जन्म हुआ था। इस मस्जिद को 6 दिसंबर, 1992 को हिंदू कारसेवकों ने नष्ट कर दिया था। न्यायमूर्ति एसए बोबडे, डी वाई चंद्रचूड़, अशोक भूषण और एस अब्दुल नजीर की संवैधान पीठ ने अपने फैसले में यह भी कहा कि विवादित 2.77 एकड़ भूमि का अधिकार भगवान राम लला को सौंपा जाएगा, जो इस मामले में तीन मुकदमों में से एक में पक्षकार हैं। हालांकि इसका कब्जा केंद्र सरकार के रिसीवर के पास रहेगा।

परिसर के बाहरी हिस्से में हिंदू और मस्जिद में मुस्लिमों का था कब्जा

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हिंदू इस बात को साबित करने में सफल रहे कि वे विवादित भूमि परिसर के बाहरी हिस्से में पूजा करते थे जबकि यूपी सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड इसमें नाकाम रहा। हालांकि मुस्लिम शुक्रवार की नमाज अदा करने मस्जिद में आते था। इससे यह साबित होता है कि उन्होंने न तो मस्जिद को विरान छोड़ा था और न ही उससे अपना कब्जा खोया था। अपने फैसले में सर्वोच्च अदालत ने मुस्लिमों को नई मस्जिद के लिए वैकल्पिक भूमि देने का निर्देश दिया।

एएसआई ने नहीं कहा कि मंदिर तोड़ बनी थी मस्जिद

फैसले में कहा गया है कि इस बात के सबूत हैं कि बाधा उत्पन्न करने के बावजूद लोगों ने मस्जिद में नमाज पढ़ना बंद नहीं किया था। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि अयोध्या स्थित विवादत स्थल के नीचे संरचना इस्लामिक नहीं थी लेकिन भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) ने अपनी रिपोर्ट में यह नहीं कहा कि मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाई गई थी। ऐसे में एएसआई के साक्ष्यों को सिर्फ एक राय नहीं माना जा सकता। इसकी विश्वसनीयता पर कोई शक नहीं है।

भगवान राम के जन्मस्थान को लेकर कोई विवाद नहीं

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हिंदू विवादित स्थल को भगवान राम का जन्मस्थान मानते हैं, यहां तक कि मुस्लिम भी इस भूमि के बारे में ऐसा ही कहते हैं। हिंदुओं का विश्वास कि विवादित ढांचा जिसे ढहा दिया गया था उसी स्थान पर भगवान का जन्म हुआ था, इसमें कोई विवाद नहीं है। बेंच ने कहा कि सीता रसाेई, राम चबूतरा और भंडार गृह की उपस्थिति से भी इस भूमि के धार्मिक महत्व की पुष्टि होती है। हालांकि साथ ही कोर्ट ने यह भी कहा कि इस मुकदमे का निपटारा धार्मिक भावनाओं और विश्वास के आधार पर नहीं किया जा सकता, ये चीजें विवाद को हल करने में संकेत भर हैं।

इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ 14 याचिकाएं

अयोध्या विवाद को लेकर 2010 में आए इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में 14 याचिकाएं दाखिल की गईं थी। हाई कोर्ट ने अपने फैसले में 2.77 एकड़ विवादित भूमि को तीन बराबर हिस्सों में तीनों पक्षकारों सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लला के बीच बंटवारा कर दिया था। निचली अदालत में पांच वाद दाखिल किए गए थे। एक मामला राम लला के भक्त गोपाल सिंह विशारद ने 1950 में दाखिल किया था, जिसमें उन्होंने विवादित स्थल पर हिंदुओं को पूजा करने की अनुमति देने की मांग की थी।

1959 में निर्मोही अखाड़ा ने भी ठोक दिया दावा

1950 में ही परमहंस रामचंद्र दास ने भी एक वाद दाखिल करके विवादित जमीन पर बने ढांचे के बीच वाले गुंबद में मूर्ति रखकर पूजा करने का अधिकार मांगा था। हालांकि बाद में यह वाद वापस ले लिया गया था। इसके नौ साल बाद 1959 में निर्मोही अखाड़े ने भी भक्त के तौर पर विवादित 2.77 एकड़ जमीन के प्रबंधन के अधिकार की मांग की थी। 1961 में उत्तर प्रदेश सुन्नी वक्फ बोर्ड ने विवादित संपत्ति को लेकर अपना दावा कोर्ट में एक वाद के रूप में दाखिल किया।

विवादित जमीन के लिए भगवान राम लला ने ठोका दावा

भगवान राम लला विराजमान ने अपने करीबी इलाहाबाद हाई कोर्ट के पूर्व जज देवकी नंदन अग्रवाल के जरिए और राम जन्मभूमि ने 1989 में विवादित संपत्ति पर मालिकाना हक के लिए अदालत में वाद दायर कर दिया। 6 दिसंबर, 1992 में विवादित ढांचे के ढहाए जाने के बाद देश में सांप्रदायिक दंगे भड़क गए। इसके बाद ये सभी वाद इलाहाबाद हाई कोर्ट में ट्रांसफर कर दिए गए। मध्यस्थता फेल होने के बाद इस साल 6 अगस्त से सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में डे टू डे हियरिंग शुरू कर दी थी। मैराथन सुनवाई के बाद 16 अगस्त को बेंच ने फैसला सुरक्षित रख लिया था।

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