- आईवीआरआई सभागार में आयुर्वेद को लेकर कांफ्रेंस, देशभर से आए जानकारों ने दी अपनी राय

- दावा कि अब ऐलोपैथ पहले जैसी कारगर नहीं, शरीर के 107 रोगनिरोधी बिंदुओं पर भी बात

बरेली : जिस तेजी से विकास हो रहा है, बीमारियां भी उसी रफ्तार से बढ़ रही हैं। संक्रामक के साथ ही असंक्रामक बीमारियां लोगों को चपेट में ले रही हैं। अत्याधिक तनाव, भागदौड़, प्रदूषण के कारण मधुमेह, ब्लड प्रेशर, गठिया, थायराइड आदि रोग बढ़ रहे हैं। सिर्फ लक्षणों को रोक पाने वाली एलोपैथ चिकित्सा बीमारियों को जड़ से समाप्त नहीं कर पा रही। इसलिए लोगों में आयुर्वेद की स्वीकार्यता बढ़ी है।

उत्तराखंड आयुर्वेदिक विश्वविद्यालय, देहरादून के कुलपति प्रो। सुनील जोशी ने आइवीआरआई सभागार में आयोजित अंतरराष्ट्रीय कांफ्रेंस में ये बातें कहीं। जनरल ऑफ आयुर्वेद रिसर्च आयष्य एवं इंटरनेशनल जनरल ऑफ आयुर्वेद साइंसेज अमृताम की ओर से इंनोवेटिव रिसर्च ऑफ आयुष साइंसेज विषय पर हुई कांफ्रेंस में उन्होंने वैदिक काल के आयुर्वेद सिद्धांत को अपनाने पर जोर दिया। कहा, आयुर्वेद की मर्म चिकित्सा से असंक्रामक रोगों को दूर किया जा सकता है। अवद्रवीय भूत चिकित्सा से शरीर के 107 बिंदुओं पर दबाव कर रोग दूर किए जाते हैं। वे बोले, जनमानस को स्वस्थ रखना है तो किसी भी अतिरिक्त संसाधन की जरूरत नहीं। आयुर्वेद की रसायन चिकित्सा में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाकर बचाव किया जा रहा है। वक्ताओं ने योग का महत्व बताया। विशिष्ट अतिथि महापौर डॉ। उमेश गौतम ने शोध को समय की जरूरत बताया। केंद्रीय यूनानी अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली के वैज्ञानिक डॉ। जावेद अख्तर ने यूनानी चिकित्सा में हो रहे खोजों पर प्रकाश डाला। कांफ्रेंस में राष्ट्रीय आयुर्वेद संस्थान जयपुर के प्रो। शमसा फियाज एक्सीलेंस अवार्ड और राजकीय आयुर्वेद कॉलेज लखनऊ के डॉ। रामा नंद को बेस्ट थिसिस अवार्ड दिया गया। बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के विशेषज्ञ प्रो। बीएम सिंह ने बच्चों में आयुर्वेद के प्राथमिकता पर जोर दिया। इस दौरान आयोजन सचिव डॉ। सीम सचान, डॉ। संतोष कुमार, डॉ। विभा द्विवेदी, डॉ। डीके द्विवेदी, डॉ। अतुल कुमार समेत देश भर से आए आयुर्वेद चिकित्सक, शिक्षक मौजूद रहे।