-बीएचयू के संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान संकाय में फिरोज खान की नियुक्ति पर जारी है विवाद

- विरोध में धरना दे रहे छात्रों से मिलने पहुंचे स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद, नियुक्ति को बताया गलत

बीएचयू के संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान संकाय के साहित्य विभाग में असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर फिरोज खान की नियुक्ति को लेकर लगी आग की चिंगारी अब पूरे देश में फैल चुकी है। पिछले 14 दिन से चल रहा यह विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा। बीते सात नवंबर से वीसी हाउस के बाहर चल रहे धरने का समर्थन करते हुए गुरुवार को स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद भी छात्रों से मिले। धरने पर बैठे छात्रों से बातचीत के बाद उन्होंने विरोध को जायज ठहराया। कहा कि सनातन धर्म की रक्षा के लिए मालवीय जी ने जिस विभाग की स्थापना की थी उसमें किसी गैर हिंदू का प्रवेश नहीं होना चाहिए। यह पूरी तरह से गलत है।

बीएचयू प्रशासन मौन क्यों

फिलहाल इस पूरे मामले पर बीएचयू प्रशासन अब भी मौन साधे हुए है। वीसी के आवास के ठीक सामने छात्रों का धरना चल रहा है लेकिन वाइस चांसलर अभी तक प्रोटेस्ट कर रहे स्टूडेंट्स से मिलने नहीं आए। ऐसा क्यों है इसका जवाब वीसी ही देंगे। हालांकि चीफ प्रॉक्टर धरना दे रहे छात्रों से मिलकर यह आश्वासन जरुर दिया कि यह मसला जल्दी हल कर लेंगे। लेकिन अब जिस तरीके से ये मामला राजनीतिक राजनीतिक बनता जा रहा है उससे फिलहाल हल निकलना मुश्किल लग रहा है।

धर्म के आधार पर भेदभाव गलत

एक तरफ जहां फिरोज खान की नियुक्ति का संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान संकाय के कुछ छात्र विरोध कर रहे हैं तो वहीं दूसरी ओर बीएचयू के ही छात्रों का एक संगठन ज्वाइंट एक्शन कमेटी के बैनर तले बीएचयू के सिंह द्वार पर डॉक्टर फि़रोज़ के समर्थन में जुटा है। बुधवार की शाम छात्रों ने रैली निकाल कर फिरोज खान के सपोर्ट में नारे लगाए। अपने मार्च में छात्रों ने 'कबीर दास की धरती पर फिरोज खान का स्वागत है', 'महामना की धरती पर फिरोज खान का स्वागत है'और 'महामना की कामना सद्भावना-सद्भावना' के नारे लगाए। उनका कहना है कि धर्म के आधार पर भेदभाव गलत है।

नियुक्ति गलत नहीं

बीएचयू उर्दू विभाग के अध्यक्ष प्रो। आफताब अहमद आफाकी कहते हैं कि यूनिवर्सिटी का मतलब है कि चाहे वह कोई हो किसी धर्म, जाति का हो अगर योग्य है तो नियुक्ति करना गलत नहीं है। अगर चयन समिति ने डॉ। फिरोज खान की योग्यता के आधार पर चयनित किया है तो इसका विरोध बिल्कुल गलत है। विभिन्न यूनिवर्सिटी में कई ऐसे छात्र हैं जो संस्कृत पढ़ रहे हैं। इसके अलावा कुछ ऐसे छात्र भी है जो उर्दू पढ़ रहे हैं। बीएचयू में ही संस्कृत पढ़ने वाली एक मुस्लिम छात्रा को दीक्षांत समारोह में टॉपर होने पर सर्वाधिक मेडल मिल चुका है। क्या ऐसे लोग संस्कृत नहीं पढ़ सकते हैं।