पटना (ब्यूरो)। राजधानी पटना में एक बिल्डिंग ऐसी है जो हर साल करीब 81 हजार 600 लीटर पानी की बचत करती है। हम बात कर रहे हैं पटना स्थिति बिहार एनीमल साइंसेज यूनिवर्सिटी की लाइब्रेरी बिल्डिंग की। जब एक बिल्डिंग से इतना सारा पानी बच सकता है तो पटना में ऐसे हजारों बिल्डिंग से लाखों गैलन पानी की बचत आसानी से हो सकती है। जरूरत है बस एक इच्छा शक्ति की, ताकि सचमुच पानी की बचत हो और पटना का अंडरग्राउंड वाटर लेवल हमेशा बेहतर रहे। सिर्फ यही नहीं, पीने और खाना बनाने के लिए पानी को छोड़कर सभी प्रकार के काम के लिए स्टोर पानी, जैसे रेन वाटर हारवेस्टिंग में होता है, का यूज किया जा सकता है। इससे ग्राउंड लेवल वाटर के अनावश्यक यूज को भी बहुत हद तक घटाया जा सकता है।

2014 से नियम है मौजूद

पटना में करीब 280 से 360 फीट तक बोरिंग कर पीने का साफ पानी आसानी से मिल जाता है, जबकि बैंगलुरु शहर की बात करें तो वहां करीब एक हजार फीट से अधिक गहराई तक बोरिंग करने पर ही पानी साफ आता है। विशेषज्ञों की माने तो यदि पटना में जल्द ही ग्राउंड लेवल वाटर को बचाने के लिए लोग जागरूक नहीं हुए तो पटना में भी तेजी से वाटर लेवल नीचे चला जाएगा। हालांकि यहां पर रेन वाटर हार्वेेस्टिंग के लिए राज्य सरकार का निगम 2014 से ही अस्तित्व में है। बिहार बिल्डिंग बाइलॉज 2014 के मुताबिक नई बिल्डिंग में रेनवाटर हार्वेेस्टिंग सिस्टम लगाना अनिवार्य है। हालांकि ग्राउंड रियलिटी चिंताजनक है। ऐसी हजारों बिल्डिंग हैैं जो इससे पहले कंस्ट्रक्शन की गई हैं, में रेन वाटर हार्वेस्टिंग का प्रावधान नहीं किया गया है। साथ ही राजधानी पटना में छोटी श्रेणी के मकानों की बहुतायत है। इसलिए कई छोटीे बिल्डिंग नियमों की परिधि से बाहर हो जाते हैं।

लोगों में अवेयरनेस का अभाव

दैनिक जागरण आई नेक्स्ट की टीम ने बोरिंग रोड, राजा बाजार, कंकड़बाग आदि प्रमुख रिहाइशी इलाकों का विजिट किया, लेकिन मौके पर बड़ी बिल्डिंग में भी रेन वाटर हार्वेस्टिंग का प्रावधान नहीं दिखा। लोग इसे लेकर उदासीन दिखे तो कुछ इसे सरकारी नियम के रूप मेंं देखते हैं। वे इसे सार्वजनिक महत्व का विषय नहीं मानते हैं। वहीं, कुछ लोगों ने यह भी कहा कि पानी की कोई कमी नहीं है। इसकी व्यवस्था क्या अलग से करना जरूरी है? उधर, लोगों का यह भी कहना है कि कभी कोई इंस्पेक्शन के लिए भी नहीं आता है। एक अनुमान के मुताबिक यहां करीब 90 फीसदी अपार्टमेंट में रेन वाटर हारवेस्टिंग का प्रावधान नहीं है।

कितना पानी बचा सकेंगे

बिहार में जिस मात्रा में वर्षा जल प्राप्त होता है, उस लिहाज से एक आर्दश स्थिति में एक हजार वर्गमीटर के एरिया में 620 गैलन पानी बचाया जा सकता है। जिसका उपयोग पानी पीने को छोड़कर अन्य सभी कार्य के लिए किया जा सकता है। बड़े बिल्डिंग के कंस्ट्रक्शन में इसका पालन अनिवार्य रूप से करने का नियम है। सरकारी भवनों में तो रेन वाटर हार्वेस्टिंग का प्रावधान अनिवार्य रूप से किया जाता है। बिहार पुलिस भवन निर्माण निगम के अधीक्षण अभियंता सपनेश्वर मंडल का कहना है कि आम लोगों को भी इसके महत्व के बारे में जानना चाहिए। रेन वाटर हारवेस्टिंग करने से ग्राउंड वाटर लेवल को बचाने में मदद मिलती है।

केस वन

बिहार एनिमल साइंसेज यूनिवर्सिटी के कैंपस में लाइब्रेरी साइंस की बिल्डिंग है, जिसकी छत का आकार 9 हजार वर्ग फीट है। जिसकी छत पर तीन यूनिट लगा है। यानि हर तीन हजार वर्गफीट पर एक यूनिट कार्य का सिस्टम है, जो कि वाटर हारवेस्टिंग के लिए यूज किया जा रहा है। इन सभी तीन यूनिट की मदद से साल भर मे 81 हजार 600 लीटर पानी की बचत की जा रही है।

केस 2

जुलाजिकल सर्वे ऑफ इंडिया पटना, विजय नगर स्थित स्थित जुलाजिकल सर्वे ऑफ इंडिया की बिल्डिंग करीब एक हजार वर्गमीटर के क्षेत्र में फैला है। यह पूरी तरह वर्गाकार बिल्डिंग है जो कि वाटर हारवेस्टिंग के लिए पटना में एक अच्छा उदाहरण है। यहां इस बिल्डिंग की छत पर इस प्रावधान से साल भर में करीब 650 गैलन पानी की बचत की जाती है। यह एक आदर्श बचत है, जिसका प्रयोग पौधों में पानी देने, सैनिटेशन आदि के लिए यूज किया जाता है।