पटना ब्यूरो। 38वां प्रांगन आयोजित पाटलिपुत्र नाट्य महोत्सव के दूसरे दिन कालिदास रंगालय में एक्सपोजर रांची की ओर से संजय लाल निर्देशित और स्वदेश दीपक लिखित नाटक कोर्ट मार्शल का मंचन किया गया। भारतीय पुरातनपंथी और समाज में मौजूद जातिवाद व सामंतवाद की भावना पर कटाक्ष करते हुए इस नाटक की प्रस्तुति से दर्शक खूब प्रभावित हुए। नाटक की शुरुआत कर्नल सूरत सिंह के संवाद से होती है। कोर्ट मार्शल के मंचन के माध्यम से दर्शकों ने एक सैनिक की कहानी देखी जो अपने ही अधिकारी की हत्या व जानलेवा हमले का आरोप झेल रहा है। पढि़ए रिपोर्ट
-सामंतवादी सोच निम्न वर्ग के लोगों को प्रताडि़त करती है
नाटक कोर्ट मार्शल में दिखाया गया है जातिवादी एवं सामंतवादी सोच रखने वाले लोग निम्न वर्ग के लोगों को न सिर्फ प्रताडि़त करते हैैं बल्कि लोगों का जीना मुहाल कर देती है। स्थिति नियंत्रण से बाहर हो जाती है.
तो सिपाही रामचंदर अपने ही अधिकारी की गोली मारकर हत्या कर देता है। अधिकारी की हत्या के जुल्म
सिपाही रामचंदर को कोर्ट मार्शल होता है। इस दौरान अधिवक्ताओं और कर्नल आदि के बीच लंबी जिरह चलती है। लगातार कोशिश के बाद जब हत्या का आरोपी सैनिक रामचंदर बोलता है तो पता चलता है अधिकारी उसे प्रताडि़त करते थे। उसकी मां के खिलाफ द्वेष भावना के चलते गलत शब्दों के प्रयोग से क्षुब्ध होकर सैनिक हत्या करने को बाध्य हो जाता है। जज पूरा मामले को सुनने के बाद
सिपाही रामचंदर के प्रति सहानुभूति रखते हैं, लेकिन फांसी की सजा भी सुना देते हैं।
मंच पर
कर्नल सूरत सिंह - रोशन प्रकाश
जज एडवोकेट - रितिका कुमारी
सलाहकार जज - चांदनी कुमारी
जज 1- शरद प्रभाकर
जज 2 - राहुल कुमार
मेजर पुरी - उपेंद्र कुमार
कैप्टन विकास राय - कुमारी नीतू
रामचंदर - हर्ष कुमार
डॉक्टर गुप्ता - किरणमय महतो
कैप्टन बी डी कपूर - रतन तिगा
बलवान सिंह - अंकित कुमार
लेफ्टिनेंट कर्नल बृजेंद्र रावत - सुभाष साहू
सिपाही 1 नीरज कुमार
सिपाही 2 - पीटर पार्कर
गार्ड - विक्की कुमार
- प्याज के फूल- परत-दर परत उधेड़ा
ड्रामाटर्जी आर्ट्स एंड कल्चर सोसाइटी की ओर से पाटलिपुत्र नाट्य उत्सव में प्रियम जानी लिखित और सुनील चौहान और साक्षी द्वारा निर्देशित नाटक प्याज के फूल का मंचन किया गया। नाटक में दिखाया गया कि एक स्त्री अपने पति के विवाहेत्तर संबंधों की पड़ताल करती हुए वेश्यालय तक पहुंच जाती है। वहां मौजूद महिलाओं और अन्य लोगों से लड़ाई झगड़ा होने लगता है। वहां मौजूद महिलाओं और पुरुषों ने तर्क दिए और कोई एक दूसरे से सहमत नहीं होता है। इस लड़ाई का कोई परिणाम नहीं निकलता है मगर स्त्री के नजरिए से पुरुष एक प्याज बन जाता है जिसको परत-दर परत उधेड़ा जाता है.
मंच पर
वेश्या- गौरी गुप्ता
पत्नी - अंकिता
गोविंद- मो। अकिब
नर्तकी- मनीषा शर्म