- बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन के 101वें स्थापना दिवस पर एकमत से दिया प्रस्ताव

- विविध अलंकरणों से विभूषित हुए साहित्यकार

श्चड्डह्लठ्ठड्ड@ढ्ढठ्ठद्ग3ह्ल.ष्श्र.द्बठ्ठ

क्कन्ञ्जहृन् :

जिस देश की अपनी कोई राष्ट्रभाषा नही होती, वह देश कंठ में स्वर रख कर भी गूंगा होता है। उसकी कोई राष्ट्रीय अस्मिता नहीं होती और वहां कभी भावनात्मक एकत्व नही हो सकता। यह अत्यंत चिंताजनक है कि भारत की कोई एक राष्ट्रभाषा नहीं है। इसलिए अविलंब हिंदी को राष्ट्रभाषा घोषित किया जाना चाहिए और उसकी लिपि देवनागरी हो। यह मांग सर्वसम्मति से पारित करते हुए बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन के 101 वें स्थापना दिवस समारोह के अवसर पर की गई।

सम्मेलन के अध्यक्ष डॉ अनिल सुलभ ने कदमकुआं स्थित सम्मेलन सभागार में बताया कि यह मांग भारत के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री से की गई है। सभागार के मुख्य-द्वार पर इस आशय का एक प्रस्ताव लगा कर रखा गया था। जिस पर सभी प्रतिभागियों ने अपना हस्ताक्षर किया। सम्मेलन अध्यक्ष डॉ अनिल सुलभ की अध्यक्षता में आयोजित इस उत्सव का उद्घाटन पटना हाई कोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूíत संजय कुमार ने दीप प्रज्वलित कर किया।

साहित्य में योगदान करने वाले सम्मानित

इस अवसर पर हिन्दी भाषा और साहित्य के उन्नयन में मूल्यवान अवदान देने वाली विदुषियों और मनीषी विद्वानों को, बिहार की मुर्धन्य साहित्यिक विभूतियों के नाम से नामित अलंकरण प्रदान कर, सम्मानित किया गया। न्यायमूíत संजय कुमार ने चेन्नई से मंगाए गए विशेष वंदन-वस्त्र, स्मृति-चिन्ह और प्रशस्ति-पत्र देकर ये सम्मान प्रदान किए। उद्घाटन संबोधन में न्यायमूíत ने कहा कि बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन स्वतंत्रता सेनानियों का केंद्र रहा है। यहां जब भी आता हूं, गौरव की अनुभूति होती है। हम सबको यह प्रयास कराना चाहिए कि हिन्दी विज्ञान और तकनीक की भाषा बने और देश की राष्ट्र भाषा बने।

हिंदी सर्वमान्य भाषा

समारोह के मुख्य अतिथि और पटना उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूíत राजेंद्र प्रसाद ने कहा कि इस देश की भाषाएं अनेक हैं। कोई घोषित करे न करे, किंतु हिन्दी इस देश की सर्वमान्य राष्ट्र भाषा है। जिस देश की अपनी भाषा नहीं है, वह देश कभी सार्थक उन्नति नहीं कर सकता। डा अनिल सुलभ ने सम्मेलन के अग्रज साहित्यकारों को स्मरण करते हुए बिहार के सभी साहित्यकारों और हिन्दी प्रेमियों को स्थापना दिवस की बधाई दी। राष्ट्र-भाषा के संबंध में प्रस्ताव पारित करने के लिए कृतज्ञता का भाव प्रकट किया।

अलंकरण से सम्मानित किया

इस अवसर पर मंच का संचालन सम्मेलन के उपाध्यक्ष डॉ शंकर प्रसाद तथा साहित्य मंत्री डॉ भूपेन्द्र कलसी ने संयुक्त रूप से किया। सम्मेलन की उपाध्यक्ष डॉ कल्याणी कुसुम सिंह, डॉ वासुकीनाथ झा, कृष्णरंजन सिंह, डॉ शालिनी पाण्डेय, वंदन-वस्त्र पहनाकर अतिथियों का स्वागत किया। धन्यवाद-ज्ञापन कवि योगेन्द्र प्रसाद मिश्र ने किया।

सामापन सम्मेलन के कला विभाग की ओर से कलामंत्री डा पल्लवी विश्वास के निर्देशन में प्रस्तुत राधायण नृत्य-नाटिका की रंगारंग प्रस्तुति के साथ हुआ। इस मौके पर कई विद्वानों को अलंकरण से सम्मानित किया गया। इनमें डॉ मिथिलेश मधुकर को आचार्य शिवपूजन सहाय सम्मान, डॉ मनोज कुमार को महापंडित राहुल सांकृत्यायन सम्मान, अलख निरंजन प्रसाद सिन्हा को रामवृक्ष बेनीपुरी सम्मान, डॉ संजय कुमार सिंह, उड़ीसा को राम गोपाल शर्मा रूद्र सम्मान, रामेश्वर द्विवेदी को महाकवि आरसी प्रसाद सिंह सम्मान से नवाजा गया। अन्य अनेक विद्वान भी सम्मानित हुए।