पटना(ब्यूरो)। राजधानी सहित पूरे पटना जिले में अपराध चरम पर है। कई ऐसी वारदातें हुई हंै जिन्हेें अंजाम ऑटंों वालों के द्वारा दिया जा रहा है। पिछले एक महीने में पांच के करीब ऐसी वारदातेंं हुई हैं। इससे लोगों में ऑटो वालों के प्रति डर व्याप्त हो गया है। इसकी मुख्य वजह है कि शहर के हर इलाके में तेजी से ऑटो की संख्या बढ़ रही है। इनके पहचान व चरित्र प्रमाण के बारे में किसी के पास जानकारी नहीं होती, जबकि पिछले सालों में ऐसे नियम बने थे कि हर थाने में पटना में संचालित होने वाले ऑटो चालकों का रिकॉर्ड होता था। यहां तक कि दिल्ली-मुंबई की तर्ज पर यहां के ऑटो वालों को भी वर्दी व बिल्ला लगाना था, पर यह सभी नियम सिर्फ घोषणा बन कर रह गए। पढ़ें यह रिपोर्ट।

शहर में करीब 32 हजार ऑटो

राजधानी में वर्तमान समय में नए-पुराने मिलाकर करीब 32 हजार ऑटो सड़क पर चल रहे हैं। इनमें 2 सालों में 10 हजार से अधिक नए ऑटो शामिल हुए हैैंं, जो बिना पुलिस कोड के धड़ल्ले से दौड़ रहे हैं। शहर के अंदर चल रहे अधिकांश ऑटो पर अब पुलिस कोड लिखा नहीं होता है। न तो ऑटो ड्राइवर पुलिस कोड लिख्वाने के लिए अपने इलाके के थानों में जा रहे हैं और न ही पुलिस इसके लिए इन्हें रोक-टोक रही है। इसका फायदा शातिर ऑटो ड्राइवर जबरदस्त तरीके से उठा ले रहे हैं।

राजधानी में सक्रिय ऑटो लिफ्टर गैंग

हाल के दिनों में ऑटो लिफ्टर गैंग राजधानी में एक बार फिर सक्रिय हो गए हैं जो रात के अंधेरे में ही नहीं अब दिन के उजाले में खुले रूप से लूट, मारपीट आदि को अंजाम दे रहे हैं। पैंसेजर अपना सबकुछ गंवाकर मूकदर्शक बन रह रहे हैं। इस तरह की लूट की वारदातों को अंजाम देने के लिए ऑटो ड्राइवर अकेले नहीं होते हैं। पहले से ऑटो के अंदर अपने ही साथियों को वो पैसेंजर्स के रूप में बैठाए रखते हैं। ऐसे शातिरों के निशाने पर लेट नाइट या बाहर से सफर कर पटना आने वाले पैसेंजर्स ही होते हैं, जिन्हें उनके डेस्टिनेशन पर पहुंचाने के नाम पर ऑटो ड्राइवर अपने साथियों के साथ मिलकर लूट लेते हैं।

ध्वस्त हो गई व्यवस्था

पैसेंजर्स के साथ लूटपाट की वारदातों को रोकने के लिए ऑटो पर पुलिस कोड लिखने की व्यवस्था बनाई गई थी। ऑटो ड्राइवर को अपने इलाके के थाने पर जाना होता था। वहां ऑटो का ऑर्नर बुक और ड्राइवर को अपने ड्राइविंग लाइसेंस की ओरिजनल कॉपी दिखानी पड़ती थी और फोटो कॉपी को जमा करना पड़ता था। इसके बाद थाना की तरफ से ऑटो के लिए पुलिस कोड दिया जाता था। इसका फायदा पैसेंजर्स को मिलता था। इस सख्ती के बाद से बीच के कुछ सालों में रात के वक्त पैसेंजर्स के साथ लूटपाट की वारदातों में काफी कमी आ गई थी लेकिन पुलिस कोड मिलने की व्यवस्था ही पूरी तरह से ध्वस्त हो गई। न तो ऑटो ड्राइवर खुद से थाने जाते हैं और न ही पटना पुलिस की तरफ से इसके लिए कोई कार्रवाई की जाती है। इसी वजह से एक बार फिर से पटना मे ऑटो ड्राइवर और उनके साथी आपराधिक वारदातों को अंजाम दे रहे हैं।

पुलिस कोड जरूरी पर डर से नहीं जाते थाने

ऑटो रिक्शा चालक संघ के अध्यक्ष पप्पू यादव के अनुसार पैसेंजर्स के साथ लूटपाट की वारदातों को रोकने के लिए पुलिस कोड का ऑटो पर लिखा जाना बेहद जरूरी है। यह कदम पैसेंजर्स की सेफ्टी के लिए बहुत जरूरी है। दूसरी बात यह है कि पुलिस कोड की वजह से उन शातिर ऑटो ड्राइवर पर लगाम लग जाती थी जो आपराधिक प्रवृति के थे। पुलिस और उनकी कार्रवाई का उन्हें डर लगा रहता था। मगर, पुलिस वालों की वजह से ही यह व्यवस्था धवस्त हो गई है। संघ के अध्यक्ष का आरोप है कि थाना जाने पर पुलिस वाले रुपए मांगते थे। उनकी डिमांड की डर से ऑटो ड्राइवर अब थाना जाने से कतराते हैं। ऐसी स्थिति में पैसेंजर्स को खुद से अपनी सेफ्टी का ख्याल रखना होगा। यदि आप लेट नाइट सफर कर रहे हैं तो ऑटो में बैठने से पहले अपने फोन से ऑटो नंबर या उसके ड्राइवर का फोटो क्लिक कर लेना चाहिए। ताकि उनके साथ अगर किसी प्रकार की अनहोनी हो तो फोटो से पहचान कर ऑटो ड्राइवर व पैसेंजर बनकर बैठे उसके साथी को पकड़ा जा सके।

वर्दी सिर्फ घोषणा बन कर रह गई

अध्यक्ष पप्पू यादव ने बताया कि यहां सिर्फ जुबानी बातें चलती हैं। मुंबई-दिल्ली की तर्ज पर बिहार में भी ऑटो वाले को वर्दी में रहेंगे यह घोषणा करीब 7 साल पहले हुई थी। यहां तक कहा गया था कि वर्दी का पैसा परिवहन विभाग देगा, लेकिन आजतक यह सिर्फ घोषणा ही रह गई, धरातल पर नहीं उतर सकी।

शुरू हुई पुलिस कोड की चर्चा

पटना में चलने वाले ऑटो के ऊपर पुलिस कोड लिखा है या नहीं, इस बात पर किसी का ध्यान नहीं था, लेकिन जैसे ही 6 अगस्त 2021 को उजाला होने से पहले एमआईटी पुणे के स्टूडेंट अमन राज के साथ पटना में ऑटो ड्राइवर ने लूटपाट की तो वैसे ही इसकी चर्चा फिर से शुरू हो गई। इतना ही नहीं साल 2020 में एक महिला टीचर के साथ ऑटो ड्राइवर और उसके साथियों ने चिरैयाटांड़ पुल पर लूटपाट की थी। विरोध करने पर महिला को अपराधियों ने गोली मार दी थी। इसमें महिला की मौत हो गई थी। इन दोनों ही वारदातों में एक बात सामान्य थी, वो ये कि इन ऑटो के ऊपर पुलिस कोड लिखा हुआ नहीं था।

बाहरी ऑटो वाले दे रहे घटना को अंजाम

ऑटो वालों की माने तो शहर में ऑटो के द्वारा वारदात को अंजाम देने वालों में बाहरी ऑटो चालक ही सक्रिय है। जो शहर में वारदात को अंजाम देकर आराम से निकल जाते है। इसका खुलासा पिछले महीने पुलिस ने किया है। महिला से राजीवनगर में चैन स्नेचिंग करने वाले दो ऑटो चालक थे। जो सगे भाई है और फुलवारीशरीफ के रहने वाले थे। वहीं ऑटो वालों का कहना है कि परमिट नहीं मिलने की वजह से भी पुलिस कोड नहीं लेने जा रहे है। थाने में जाने पर पैसे की डिमांड की जाती है।