पटना ब्‍यूरो। आज के समय में कंडक्टिव हियरिंग लॉस की समस्या तेजी से बढ़ रही है। कान में कई तरह की समस्याओं के कारण लोग सुनने की क्षमता खो बैठते हैं। ऐसे में बोन एंकर्ड हियरिंग एड (बाहा) इम्प्लांट उनके लिए किसी वरदान से कम नहीं हैं। बाहा इम्प्लांट की जरूरत कब पड़ती है, इसके क्या फायदे हैं और यह कैसे काम करता है, इसके बारे में वरिष्ठ कान, नाक, गला (ईएनटी) रोग विशेषज्ञ डॉ। अभिनीत लाल ने विस्तार से जानकारी दी है। डॉ। अभिनीत बताते हैं कि बाहा इंप्लांट तब किया जाता है जब बाहरी या मध्य कान में कोई दिक्कत होती है जिसकी वजह से ध्वनि तरंगें आंतरिक कान तक नहीं पहुंच पातीं। इसे कंडक्टिव हियरिंग लॉस कहा जाता है।

कैसे करता है काम: बाहा इंप्लांट में कान के ऊपरी हिस्से के अंदर से एक बहुत ही छोटा सा डिवाइस लगाया जाता है, जिसे बोन एंकर्ड हियरिंग एड (बाहा) कहा जाता है। यह डिवाइस कान के नीचे स्थाई रूप से इस तरह लगा दिया जाता है जिससे यह आमतौर पर बाहर से दिखाई नहीं पड़ता है। इसके बाद ऊपर से एक ब्लूटूथ जैसा सूक्ष्म डिवाइस लगाया जाता है जिससे ध्वनी तरंगें बाहा डिवाइस से जुड़ जाती हैं और मरीज आसानी से कुछ भी सुन पाता है। बाहा इम्प्लांट में 30 से 40 मिनट का समय लगता है। इम्प्लांट के करीब एक हफ्ते के बाद डिवाइस का स्वीच ऑन कर दिया जाता है। एक बार इम्प्लांट कराने के बाद मरीज को दोबारा कभी इसकी जरूरत नहीं पड़ती है। बाहा इम्प्लांट किसी भी उम्र के मरीज में किया जा सकता है। मगर इस बात का जरूर ध्यान रखना चाहिए कि इम्प्लांट करने वाले डॉक्टर प्रशिक्षित हों और इसकी विशेषज्ञता रखते हों।

डॉ लाल बताते हैं कि बाहा इंप्लांट आज के समय में कोई नई चीज नहीं है मगर इसमें नया डेवलपमेंट यह है कि बाहा डिवाइस में काफी इंप्रूवमेंट आया है। इसके कारण इस इंप्लांट का सफलता दर बहुत अधिक है। हमारे क्लीनिक में इसका बहुत ही एडवांस वर्जन उपलब्ध है जो हम मरीजों को लगते हैं।

कब किया जाता है बाहा इम्प्लांट: डॉ। अभिनीत बताते हैं कि हमारे कान में तीन भाग होते हैं। बाहरी कान, मध्य कान और आंतरिक कान। कई बार कान के इंफेक्शन की वजह से कान की हड्डी सड़ जाती है। इससे मरीज के सुनने की क्षमता कम हो जाती है या खत्म हो जाती है। कई बार कान के अंदर की हड्डी इतनी सड़ जाती है कि उसके अंदर आर्टिफिशियल हड्डी भी लगाना संभव नहीं हो पाता है। ऐसे में एक आदर्श समाधान के रूप में हम मरीजों को बाहा इम्प्लांट कराने की सलाह देते हैं। कई बार ऐसा भी होता है कि मरीज का एक कान बिल्कुल सामान्य ढंग से काम करता है जबकि दूसरे कान में परेशानी होती है। ऐसी स्थिति में खराब कान में बाहा इम्प्लांट करके उसके सुनने की क्षमता को सामान्य किया जा सकता है।

महंगा है इलाज मगर बीमा से मिल सकता है लाभ: डॉ। लाल बताते हैं कि जहां तक खर्च की बात है तो अभी इसका इलाज थोड़ा महंगा है। हालांकि हम बोरिंग रोड के सुदामा भवन स्थित डॉ। अभिनीत लाल ईएनटी क्लिनिक में इसका इलाज इंश्योरेंस के जरिए बिल्कुल मुफ्त में करते हैं। हम इस इंप्लांट के लिए मरीज को लगभग हर तरह के इंश्योरेंस का फायदा देते हैं। हमने पिछले साल करीब 10 से 12 इंप्लांट किये। सभी सफल रहे। सभी मरीज अभी बिल्कुल ठीक हैं। और सबसे खास बात यह है कि इनमें से सभी मरीजों का इंप्लांट किसी न किसी इंश्योरेंस के जरिए हुआ। तो कुल मिलाकर इंप्लांट का खर्च महंगा होते हुए भी उनका इलाज लगभग मुफ्त में हो गया।

डॉ। लाल बताते हैं कि इसके अलावा हम मुक बधिर बच्चें के लिए एक विशेष कार्यक्रम के तहत कोक्लियर इम्प्लांट भी करते हैं। इसमें पांच साल से कम उम्र के बच्चे शामिल होते हैं।