पटना(ब्यूरो)। बिहार प्रगतिशील लेखक संघ के 17वें राज्य सम्मेलन के दूसरे दिन रविवार को भी साहित्यकार, लेखक-कवि आदि ने अपनी भागीदारी से सम्मेलन को यादगार बना दिया। इस कार्यक्रम के पहले सत्र का विषय इककीसवीं सदी में तरक्कीपसंद उर्दू-हिंदी अदब के फि़क्री बुनियाद थी। कार्यक्रम के संचालक मणिभूषण ने अपने संबोधन में कहा कि 'तरक्कीपसंद तहरीक को पढ़ाते समय किन दुश्वारियों का सामना करना पड़ता उससे उस्ताद लोग वाकिफ है। यह जलसा इस अंजुमन के लिए तारीखी महत्व का है। विषय प्रवेश करते हुए कथान्तर के सम्पादक राणा प्रताप ने कहा आजादी के बाद गद्द का विकास होता है। गद्य एक जनतान्त्रिक विधा है।

कई अस्मिताएं एक साथ टकरा रहीं
मुजफ़्फरपुर प्रलेस के रमेश ऋतंभर ने कई कहानियों का उदाहरण बात को आगे बढ़ाते हुए कहा- आज सबसे ज्यादा सुरक्षित हो अराजनीतिक होने की प्रवृत्ति बढ़ रही है। आज कई -कई अस्मिताएं एक साथ टकरा रही हैं। हम तकनीक का इतना अपमान कर रहें हैं कि बिना आधुनिक बने इसका इस्तेमाल कर रहें हैं। लेखन का छद्म व पाखंड उजागर हो रहा है। श्रेष्ठता का दम्भ इतना खतरनाक है कि हर सीढ़ी का आदमी अपने से नीचे वाले को नीची निगाह से देखता है। बिना सौंदर्यशास्त्र की परवाह करते हुए दलित, आदिवासी साहित्य आ रही है। कैसे रूढि़ तोड़ रहें हैं समाज के विभिन्न तबके के लोग इसे सामने आ रहें हैं। बिहार साहित्य की सबसे बड़ी प्रयोग भूमि है। प्रगतिशील वामपंथी दलों के कार्यकर्ता ही आपके काम आएंगे। अपने समाज का प्रभुशाली वर्ग दूसरे जाति के प्रभु वर्ग को बिठाता है वह अपनी जाति के गरीब को साथ नहीं बिठाता है।