- मिथिला भ्रमण के लिए पहुंचे जगद्गुरु शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती

- दरभंगा के नवादा गांव में दीक्षा ग्रहण सह राष्ट्र अध्यात्म धर्म पर की परिचर्चा

DARBHANGA: वैदिक वर्णाश्रम व्यवस्था पूरी तरह से व्यवस्थित है। इसमें कर्म के आधार पर रोजगार का जन्मसिद्ध अधिकार प्राप्त है। वर्तमान शिक्षा पद्धति हमारी सभ्यता-संस्कृति और सनातन परंपरा को नष्ट करने का कारण बनकर रह गई है। यह बातें गोवर्धन मठ पुरी के पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती महाराज ने कहीं। वे मिथिला भ्रमण के दूसरे दिन ट्यूजडे को नवादा में दीक्षा ग्रहण सह राष्ट्र अध्यात्म धर्म पर परिचर्चा में बोल रहे थे। जगद्गुरु ने कहा कि वेद-उपनिषद आदि सभी विषयों का ज्ञान देते हैं। इनमें विज्ञान और अंतरिक्ष का जो वर्णन है, उसके सहस्रांश तक भी आधुनिक विज्ञान नहीं पहुंच पाया है। मनुष्य वैदिक अध्यात्म को अपनाकर सदाचार से देवत्व की प्राप्ति कर सकता है।

वेद सभी विषयों के ज्ञान के स्रोत

जगद्गुरु ने कहा कि वेद और उपनिषद सभी तरह के ज्ञान का स्रोत है सनातन धर्म में वैदिक जीवन स्थायी और संपूर्ण विकासपरक है। भौतिकता से प्राप्त विकास क्षणिक और नश्वर है। यह सृष्टि के विनाश का कारक होगा।

पर्यावरण संरक्षण की मिलती सीख सनातन धर्म में प्रकृति के हर सोपांग और घटक का पूजन और विवरण हमें पर्यावरण संरक्षण की सीख देते हैं। राज-व्यवस्था सहित लोक सेवा का उत्कृष्ट उदाहरण हमारे प्राचीन ग्रंथों में है। दुनिया को ज्ञान, विज्ञान, दशमलव हमने दिया है। आज सारी दुनिया हमारे सनातन ग्रंथों और संस्कृति को ग्रहण कर रही है और हम भूल रहे। अत: वैदिक संस्कृति से ही संसार का कल्याण संभव है। मंदिर सभ्यता-संस्कृति और जनकल्याण के केंद्र हैं। आडंबर से बचना चाहिए।

दो दर्जन से अधिक लोगों ने ली दीक्षा

उन्होंने कहा कि यहां शक्तिपीठ (नवादा भगवती स्थान) है, जहां आकर अलौकिक शक्ति का अनुभव हो रहा है, मगर यहां स्थान के अनुरूप स्तरीय सुविधाओं की कमी है। अगर इनका सुचारु संचालन हो जाए तो लोक-कल्याण होगा। संगोष्ठी के बाद दीक्षा कार्यक्रम में पुराने शिष्यों ने उनका स्वागत किया। दो दर्जनों से अधिक लोगों ने दीक्षा भी ली।