पटना (ब्यूरो)। म्यूजियम में जाकर अपनी पुरानी संस्कृति व विरासत को जानने वालों के साथ ही आम दर्शकों के लिए अच्छी खबर है। दरअसल बिहार म्यूजियम ने अपने दर्शकों के लिए बड़ी संख्या में ऐसे पुरावशेष को दर्शक दीर्घा में लगाया है। जिसे अभी तक किसी ने नहीं देखा था।

कई दीर्घा में पुरावशेष
बिहार म्यूजियम के डायरेक्टर दीपक आनंद ने बताया कि दरअसल कई ऐसे पुरावशेष थे, जो पटना म्यूजियम के संग्रह कक्ष में रखे गए थे और दर्शक उनको नहीं देख सके थे। उन सभी को इन दर्शक दीर्घा में प्रदर्शित किया जा रहा है। दर्शकों के लिए यह पुरावशेष दीर्घा ए, दीर्घा बी व दीर्घा सी में रखे गए हैं। इन सभी पुरावशेष के लिए समुचित परिवेश को विशेष रूप से तैयार किया गया है।

हर दीर्घा में अलग पुरावशेष
दीपक आनंद ने बताया कि दीर्घा ए में प्रागऐतिहासिक पुरावशेष, हड़प्पा सभ्यता के पुरावशेष, प्राचीन सिक्के व टेराकोटा की कलाकृतियों को रखा गया है जबकि दीर्घा बी में विभिन्न प्रकार के प्राचीन सिक्के व बौद्ध प्रतिमाएं तथा दीर्घा सी में सिक्के, शेरशाह सूरी की तोप, मध्यकालीन औजार, पांडलिपि तथा दीर्घा ई में विभिन्न प्रकार के दृष्टव्य भंडार रखे गये हैं। इन सभी दीर्घा में करीब 20 हजार सिक्के, पेंटिंग, टेराकोटा, प्रस्तर प्रतिमाएं व प्रागऐतिहासिक काल के औजारों को भी दर्शक देख सकेंगे।

समय के अनुसार विभक्त
दीपक आनंद ने बताया कि म्यूजियम की इन इतिहास दीर्घाओं को समय के अनुसार विभक्त किया गया है। इनमें प्रागैतिहासिक काल से मध्यकाल के बिहार व भारतीय इतिहास को विभिन्न पुरावशेषों, कलाकृतियों के द्वारा दर्शाया गया है। दीर्घा ए में पाषाण युग से मौर्य साम्राज्य तक, दीर्घा बी में शुंग, कुषाण, गुप्त व पाल जैसे चार महान राजवंश, दीर्घा सी में बिहार के मध्यकालीन इतिहास में घटी घटनाओं के पुरावशेष, कलाकृतियां प्रदर्शित की गई हैं। इस दीर्घा में इस कालखंड में समाज में घटी घटनाओं को वीदरी कला, चित्र, प्रस्तर प्रतिमा व सिक्के व धातु प्रतिमाओं द्वारा देखा जा सकता है।

देख सकेंगे शेरशाह की तोप व सिक्के
दीपक आनंद ने बताया कि दर्शकों के लिए सूर वंश के शासक शेरशाह सूरी की तोप को विशेष तौर पर देखा जा सकता है। इसे अलावा इस वंश द्वारा तब चलाए गए सिक्कों को भी विशेष रूप से प्रदर्शित किया गया है।

- बिहार म्यूजियम अपने आप में अलग है। यह धरोहरों को सहेजने की पूरी कोशिश हो रही है। हमारी कोशिश आम लोगों तक उन धरोहरो, पुरावशेषों के जानकारी देने की है, जिसे लोग अब तक नहीं देख सके हैं।
- दीपक आनंद, डायरेक्टर, बिहार म्यूजियम