पटना (ब्यूरो)। विचारों से ही लेखकों की शिनाख्त होती है। बिना विचार किए लेखन आसान नहीं होता। ये बातें शनिवार को लेखिका वंदना राग ने बिहार संग्रहालय परिसर में कही । बिहार संग्रहालय परिसर में अहद-अनहद, नवरस स्कूल आफ परफार्मिंग आट््र्स, इंस्टीट््यूट फार ह्यूमन डेवलपमेंट व बिहार संग्रहालय के संयुक्त तत्वावधान में शनिवार को साहित्यिक-सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कार्यक्रम के दूसरे दिन लेखकों, विचारकों और बुद्धिजीवियों का जमावड़ा लगा रहा। ङ्क्षचतन और साहित्य विषय पर लोगों ने अपने विचार व्यक्त किए। राकेश मंजुल ने कबीर के संदर्भ में अनहद की चर्चा की। कवि प्रकाश उदय ने कहा कि स्मृतियां हमें रचना तैयार करने में मदद करती हैं। आधुनिक जीवनशैली में समय की अवधि को कम कर दिया है। इससे सोच की गुणवत्ता और साहित्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। कार्यक्रम के दौरान अतिथि लेखकों से बातचीत फिल्म समीक्षक विनोद अनुपम ने किया।

आदिवासियों की कहानी उतारा

कार्यक्रम के दूसरे सत्र में युवा लेखक व पत्रकार आशुतोष भारद्वाज की पुस्तक मृत्यु कथा व सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी व लेखक व्यास मिश्रा की पुस्तक कौन तार से बीनी चदरिया पर बातचीत हुई। वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश ने बातचीत की। आशुतोष भारद्वाज ने कहा कि किसी भी संकटग्रस्त इलाके में रहना और उसकी रिर्पोङ्क्षटग करना काफी मुश्किल भरा होता है। रिपोर्टिंग के दौरान माओवादी इलाकों में शुमार छत्तीसगढ़ (बस्तर) इलाके में काम करने का मौका मिला। भारतीय सत्ता के बीच चल रहे गृह युद्ध और इसके शिकार हुए आदिवासियों की कहानी को पुस्तक में उतारा गया है। 2008 में हुए चुनाव के बाद वहां की स्थितियां बदलने लगीं। लोग इंटरनेट से जुडऩे लगे और उनकी दुनिया बदलने लगी। प्रशासन से लोगों का सीधा संपर्क होने लगा और देखते-देखते माओवादी की शक्ति भी छीन होते चली गई। कौन तार से बीनी चदरिया पर व्यास मिश्र ने कहा कि पुस्तक में मध्य बिहार के कई गांवों का संघर्ष को दिखाया गया है। अस्सी के दशक में मध्य बिहार में नक्सलियों का बोलबाला था। गया, जहानाबाद, अरवल समेत इन जगहों पर समाज के कमजोर वर्ग अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करते थे। उन इलाकों में एमसीसी पार्टी का प्रभाव था। डा। विनयन ने अलग-अलग मोर्चे पर मध्य बिहार के कई गांवों में संघर्ष किया। दैनिक मजदूरी करने वाले लोगों के हक के लिए जन आंदोलन को संगठित एवं संचालित करते हुए हमेशा सक्रिय रहे। सैकड़ों परिवार उन्हें देव तुल्य समझते थे।

कोरोना त्रासदी को बयां करती पुस्तक

कार्यक्रम के दौरान अमर देसवा के लेखक प्रवीण कुमार ने कोरोना त्रासदी में उपजे हालात को शब्दों में बयां किया है। प्रवीण ने कहा कि कोरोना काल में सरकारी तंत्र फेल हो गए थे। कई मौतें ऑक्सीजन की कमी से हुई थीं। हॉस्पिटल का खर्च आम आदमी के बजट से बाहर था। कोरोना ने सिर्फ भारत को नहीं, बल्कि हर मुल्क का बार्डर पार कर लोगों को अपनी चपेट में ले लिया था। लेखक से बातचीत लेखिका गीताश्री ने की। गीताश्री ने कहा कि लेखक को धैर्य की जरूरत होती है। प्रवीण कुमार ने कहा कि यह पुस्तक धैर्य के साथ ही लिखा गया है।

अज्ञेय ने आधुनिकता को दिया था जन्म

अज्ञेय और निर्मल वर्मा ङ्क्षहदी साहित्य के वो दो बड़े नाम है, जिनके बिना ङ्क्षहदी साहित्य अधूरा है। अक्षय मुकुल ने अज्ञेय के बारे में कहा कि वे एक लेखक, क्रांतिकारी और सैनिक थे। ङ्क्षहदी साहित्य में आई आधुनिकता के जनक अज्ञेय थे। विनित गिल गिल ने कहा कि निर्मल वर्मा से कई सीख मिलती है। उन्होंने प्रेमचंद के अच्छे गुणों को पसंद भी किया है। अज्ञेय को अज्ञेय का नाम प्रेमचंद ने ही दिया था। लेखकों से बातचीत त्रिपुरारी शरण ने की। आइ नो द साइकोलाजी आफ रैटस के लेखक सईद मिर्जा ने अपनी पुस्तक के बारे कहा कि यह पुस्तक अपने दोस्त कुंदन को समर्पित है। उन्होंने कहा कि युवा पीढ़ी पुस्तकों का अध्ययन नहीं करते। लोक आलोक कार्यक्रम के दौरान अभय कुमार, ङ्क्षचकी सिन्हा, संतोष ङ्क्षसह ने बिहार के संदर्भ में अपनी बात रखी। कितना राज कितना काज पुस्तक के लेखक संतोष ने कहा कि पुस्तक में बिहार के राजनीतिक, सामाजिक, साहित्यिक, सांस्कृतिक ङ्क्षबदुओं को केंद्रित कर लिखा गया है। सत्र का संचालन अतुल ठाकुर ने किया। मुकाम पोस्ट नरेंद्रपुर सत्र के दौरान गांव में होने वाले वास्तविक जीवन की कहानियों के बारे में प्रकाश डाला गया। वंदना राग, पुष्यमित्र, संकर्षण ठाकुर ने अपने विचार व्यक्ति किए। स्मृति व कल्पना के बीच कार्यक्रम के दौरान ग्रामीण जीवन, उनके संघर्ष, रीति रिवाज के बारे में प्रकाश डाला गया। अनिल यादव के साथ प्रवीण कुमार ने बातचीत की। नोट््स फ्राम फ्रंटलाइन सत्र के दौरान योगेश जैन, शाह आलम खान, सईद अहमद और अजीत कुमार झा ने कोरोना के विभिन्न पहलुओं पर व्यापक चर्चा की। न्यूर्याक से आई शकीप मालुशी ने संक्षिप्त परिचय दिया। वहीं, हर लाइफ स्टोरी पर पद्मश्री उषा किरण खान और अनीश अंकुर के साथ बातचीत की गई। कार्यक्रम समापन पर प्रियंका सिन्हा झा की पुस्तक फोक टेल्स आफ बालीवुड का विमोचन किया गया। पुस्तक के बारे में प्रियंका ने कहा कि इसमें फिल्मी सितारों के जीवन में आए उतार-चढ़ाव के साथ उनके संघर्षों की कहानी है। सभागार में बैठे लोगों ने कार्यक्रम का भरपूर आनंद उठाया। कार्यक्रम के दौरान डॉ। अजीत प्रधान, प्रो। तरुण कुमार समेत अन्य मौजूद थे।